H1-B वीजा में बदलाव से भारतीय IT कपंनियां प्रभावित होंगी. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 17 अप्रैल 2013

H1-B वीजा में बदलाव से भारतीय IT कपंनियां प्रभावित होंगी.


अमेरिकी कामकाजी परिमट के बाद सर्वाधिक मांग वाले एच-1बी वीजा में प्रस्तावित संशोधनों से इन पर निर्भर भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियां बुरी तरह प्रभावित होंगी। व्यापक आव्रजन सुधार (सीआईआर) के तहत परिवर्तनों से उन कंपनियों के लिए एच-1बी वीजा के इस्तेमाल पर रोक लगेगी जिनके पास इस श्रेणी के तहत श्रम शक्ति का उच्च अनुपात है। ज्यादातर भारतीय कंपनियां इस वर्गीकरण के अंतर्गत आएंगी।

संशोधन मसौदे को यदि कांग्रेस से मंजूरी मिल जाती है और अमेरिकी राष्ट्रपति हस्ताक्षर कर यह कानून का रूप ले लेता है तो कंपनियों को एच-1बी वीजा हासिल करने के लिए अधिक शुल्क भी देना पड़ेगा।

‘बॉर्डर सिक्योरिटी, इकोनामिक अपॉर्चुनिटी एंड इमिग्रेशन मॉडर्नाइजेशन एक्ट-2013’ की 17 पृष्ठ वाली रूपरेखा के अनुसार एच-1 बी प्रणाली का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ अमेरिका कार्रवाई करेगा। विधेयक के मसौदे के अनुसार यदि नियोक्ता के पास 50 या इससे अधिक कर्मचारी हों और उसके पास 30 प्रतिशत से अधिक लेकिन 50 प्रतिशत से कम एच-1बी या एल-1 कर्मचारी हों (जिनकी ग्रीन कार्ड याचिका लंबित नहीं हो), तो नियोक्ता को इन दोनों स्थितियों में से एक में 5,000 डॉलर प्रति अतिरिक्त कर्मचारी शुल्क अदा करना पड़ेगा।

यदि नियोक्ता के पास 50 या अधिक कर्मचारी हों और इन कर्मियों में 50 प्रतिशत से अधिक एच-1 बी या एल-1 कर्मचारी हों, जिनकी ग्रीन कार्ड याचिका लंबित नहीं हो तो कंपनियों को इन दोनों स्थितियों में से एक में प्रति अतिरिक्त कर्मचारी 10,000 डॉलर का अतिरिक्त शुल्क देना पड़ेगा। इस तरह टीसीएस, विप्रो और इंफोसिस जैसी बड़ी भारतीय कंपनियों को प्रत्येक अतिरिक्त एच-1बी कर्मी के लिए 10,000 डॉलर का भुगतान करना पड़ेगा।

अमेरिका स्थित आईबीएम, इंटेल या माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों पर इसका असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि उनके कर्मचारियों में ज्यादातर अमेरिकी नागरिक हैं। टीसीएस, विप्रो और इंफोसिस जैसी कंपनियां इस तरह के प्रावधान से प्रभावित होंगी जिनके मुख्यालय भारत में हैं और जिनके बड़ी संख्या में ऑफसाइट कार्यालय हैं और जो अमेरिका में कम श्रम शक्ति पर निर्भर हैं।

विधेयक में प्रस्ताव है कि वित्त वर्ष 2014 में कंपनियों के पास 75 प्रतिशत से अधिक एच-1बी या एल-1 कर्मी होने की स्थिति में उनके द्वारा अतिरिक्त कर्मचारी लाए जाने पर रोक लगा दी जाएगी। विधेयक अमेरिकी कर्मियों की तुलना में एच-1बी या ओपीटीधारक कर्मियों को वरीयता दिए जाने पर भी रोक लगाता है। विधेयक के तहत श्रममंत्री को निगरानी के लिए एक वेबसाइट बनानी होगी जिसमें एच-1बी की स्थिति का पता लग सकेगा। इस साइट को नए विधेयक के पारित होने के 90 दिन के भीतर ऑनलाइन होना जरूरी होगा। 

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