मरु भूमि के अजूबों का मन मोही संग्रहालय
मरु भूमि का लोक साँस्कृतिक वैभव, हस्तकलाएँ, शिल्प स्थापत्य, अनूठी परम्पराएँ और लोक जीवन अपने आप में विलक्षणताओं भरे कई इन्द्रधनुषों का सदियों से दिग्दर्शन कराता रहा है। शेष दुनिया से दूर, रेगिस्तान के बीच और विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद यहाँ लोक संस्कृति, सभ्यता और परिवेशीय वैविध्य का मनोहारी संगम ऎसा कि दुनिया भर के लोग इस स्वर्ण धरा पर किसी अजीब से आकर्षण भरे मोहपाश से बँध कर खींचे चले आते हैं।
सैलानियों का मन मोहती है पुरातन सामग्री
स्थानीय मरु संस्कृति के तमाम आयामों के प्रति देश-दुनिया के जिज्ञासु सैलानियों का मेला जैसलमेर में हमेशा ही बना रहता है। भीषण गर्मी के दो-चार माहों को छोड़ दिया जाए तो यहाँ कोई दिन ऎसा नहीं जाता जब सोनार दुर्ग से लेकर स्वर्ण नगरी की वीथियों तक देशी-विदेशी पर्यटकों की बहार छायी हुई न हो। इन सैलानियों को मरु भूमि के पुरा वैभव व लोक साँस्कृतिक विलक्षणताओं से परिचित कराने के लिए स्थानीय जागरुक बाशिन्दों ने ऎतिहासिक प्रयास किए हैं। इन्हीं में बाबा महाराज के नाम से मशहूर श्री बृजरतन ओझा द्वारा स्थापित ’ जैसल लघु उद्योग केन्द्र ’ मरु सँस्कृति व शिल्प वैभव का प्रतिदर्श है जहाँ लोक मन को लुभाने वाली बहुमूल्य सामग्री का भण्डार उपलब्ध है।
सेवाकाल के अनुभवों ने लिया आकार
जैसलमेर जिला कलक्ट्री में वर्षो तक कार्यालय अधीक्षक के रूप में सेवाओं के दौरान देश-दुनिया की विशिष्ट हस्तियों के भ्रमण में उनके साथ रहकर गाईडिंग का दायित्व निभाने वाले बृजरतन ओझा ने मरु हस्तशिल्प की झलक एक ही स्थल पर दर्शाने के उद्दश्य से अपनी सेवानिवृत्ति के उपरांत जैसलमेर जिला मुख्यालय पर जैसलमेर लघु उद्योग केन्द्र की स्थापना लगभग ढाई दशक पहले की। जैसलमेर में हस्तशिल्प के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए इस केन्द्र को जिला एवं राज्य स्तर पर भी पुरस्कार मिल चुके हैं।
पाषाण निर्मित सामग्री का भण्डार
बाबा महाराज के इस संसार में लघु उद्योग व हस्तशिल्प की वह सारी सामग्री उपलब्ध है जो आम और खास सभी तरह के सैलानियों की दिली पसंद है। इस वजह से यहाँ पर्यटकों का आवागमन बना रहता है। इसमें जैसलमेरी पाषाण की बनी मूर्तियाँ, कटोरे, गिलास, फव्वारा, टेबल लैंप, छतरियाँ, फोर्ट मॉडल, जालीदार कलात्मक अनूठे झरोखे, जालियाँ, फूलदान, फ्लॉवर पॉट, जानवरों की मूर्तियाँ, मोबाईल स्टैण्ड आदि हैं। प्राचीनतम जीवाश्मों से बने पिरामिड, शिवलिंग, सोनार दुर्ग मॉडल, ग्लास, पाकिस्तान स्टोन से निर्मित टेलीफोन, लेंप, गिलास, चेस, लौटे, बरतन, पेपरवेट, जानवरों की आकृतियाँ और श्वेत मार्बल निर्मित दैव प्रतिमाएँ, बरतन, अगरबत्ती स्टैण्ड, खरल, लालटेन, सिलबट्टा आदि सामग्री यहाँ उपलब्ध है।
हर तरह के पत्थर से बनी सामग्री उपलब्ध
सोफ्ट स्टोन से निर्मित सामगर््री में विभिन्न प्रजातियों के जानवर, परफ्यूम, लैम्प, फूलदान, मोबाईल स्टैण्ड, टेराकोटा दीर्घा में रखे कछुए, दीपक, जानवर, झोंपड़ियाँ, ढांणियाँ तथा प्लास्टर ऑफ पेरिस की बनी देवी-देवताओं की मूर्तियाँ देखने लायक हैं।
दो शताब्दी पुरानी पेंटिंग्स
काले मार्बल में बनी शिव व नंदी प्रतिमाएँ, परफ्यूम लैम्प, सैण्ड स्टोन में हाबूर का छींटदार आकर्षक पाषाण शिल्प, काष्ठ निर्मित झरोखे, दर्पण, बड़ी फ्रेम्स, पेंटिंग्स फ्रेम, तस्वीरें, पैंटिग्स में मूमल-महेन्द्र, ढोला-मारु, पणिहारिन, राधा-कृष्ण, बणी-ठणी, नर्तकी, शंकर, ढांणी, मयूर, नायिका, स्वाँग रचाती नायिका आदि के साथ ही किले में प्रदर्शित पुरानी पेंटिंग्स की तरह ही 200 वर्ष पुरानी पेटिंग्स भी यहाँ देखने को मिलती है।
लोकनायकों की प्रतिमाएं
देवी-देवताओं, लोक देवियों और लोक देवताओं सवाईसिंह राठौड़, माजीसा, माता राणी भटियाणी जी, आवड़माता परिवार, क्षेत्रपाल आदि की मूर्तियाँ तथा हर प्रकार के पत्थर से बने चकले खरल मौजूद हैं। केन्द्र में हाबूर के पत्थर से निर्मित खूब सारी दुर्लभ सामग्री का भण्डार है। इनमें हर प्रकार के नगीने, संगे सितारा, लकी स्टोन, स्टोन टाईगर आई, हाबूर के पाषाण से निर्मित कलात्मक सामग्री के साथ ही जीवाश्मों में कप, मछली, घोंघा, भ्रूण आदि की आकृतियाँ उभरी हुई हैं।
बुरी नज़र से बचाते हैं वुड फॉसिल्स
इनमें कई वुड़ फॉसिल्स ऎसे हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि ये बुरी नज़र से बचाते हैं। इसी तरह के कुछ प्राचीन फॉसिल्स की टाईल्स सदियों से किलों, राजमहलों व पुराने आवासों में लगी हुई देखने को मिलती है। मान्यता है कि इनसे नकारात्मक ऊर्जा पूरी तरह नष्ट होकर हमेशा सकारात्मक ऊर्जा का संचार बना रहता है।
दही जमा देता है हाबुर का पत्थर
हाबूर के पत्थर में अजीब सी दिव्य ऊर्जा का होना माना जाता है। इसे एक्यूप्रेशर में इस्तेमाल करने के साथ ही यह पत्थर दूध में रख दिए जाने पर दही जमाने की भी अद्भुत क्षमता रखता है। जैसल लघु उद्योग केन्द्र में प्रदर्शित सामग्री जैसलमेर आने वाले पर्यटकों के लिए अविस्मरणीय सिद्ध होती है। इस केन्द्र में उत्पादित व प्रदर्शित सामग्री की मांग मुंबई, पुणे, जोधपुर, बैंग्लोर, जयपुर और देश के कई हिस्सों में है जबकि विदेशी पर्यटक भी अपनी पसंदीदा सामग्री यहाँ से खरीद कर ले जाते हैं।
शब्दचित्रों में संजोयी है स्वर्णनगरी
बाबा महाराज अपने इस कार्य को मरुभूमि की सेवा मानते हैं। उनके भण्डार में एक अमूल्य खजाना स्मृतियों से जुड़ा हुआ है। स्वर्णनगरी आए दुनिया भर के विशिष्टजनों के जैसलमेर के बारे में विचारों को उन्होंने संजो कर रखा है जिसमें ऎसी अद्भुत और विलक्षण महिमा का बखान है। बाबा महाराज की मंशा है कि इन स्वर्ण कणों को एक स्थान पर समाहित कर पुस्तकाकार दिया जाए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ जैसाण की महिमा का गान करती रहें।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com
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