चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने मंगलवार को कहा कि दोनों देशों को अपने सीमा से जुड़ी समस्या का एक निष्पक्ष, उचित और आपस में स्वीकार्य समाधान निकालने की समझ है। इसके साथ ही ली ने अपनी इस धारणा को दोहराया कि भारत, चीन को चाहिए कि वे 'हिमालय' लांघकर हाथ मिलाएं। व्यापारिक संस्था, 'फिक्की' और 'इंडियन काउंसिल फॉर वर्ल्ड अफेयर्स' (आईसीडब्ल्यूए) द्वारा दिल्ली के ताज पैलेस होटल में आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए ली ने दोनों एशियाई शक्तियों के बीच गहरे आर्थिक एकीकरण पर जोर दिया और वैश्विक परिदृश्य पर एक प्रभाव डालने के लिए दोनों देशों की 2.5 अरब आबादी की शक्ति समन्वित करने पर भी जोर दिया।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ कई मुद्दों पर स्पष्ट और मैत्रीपूर्ण बातचीत हुई और दोनों ही पक्ष बातचीत से संतुष्ट हैं। सीमा मुद्दे पर ली ने कहा कि दोनों देश अपने विशेष प्रतिनिधियों के जरिए समझौते को आगे बढ़ाने पर सहमत हुए हैं और प्रतिनिधियों की बैठक शीघ्र होने जा रही है। पिछले महीने लद्दाख में चीनी घुसपैठ के बाद दोनों देशों के बीच तीन सप्ताह तक गतिरोध बना रहा था।
ली ने कहा, "दोनों देशों के पास निष्पक्ष, यथोचित एवं परस्पर स्वीकार्य समाधान निकाले की समझ है।" उन्होंने आगे कहा कि दोनों देश अपने प्रासंगिक तंत्र का इस्तेमाल करें और सीमा पर शांति और सद्भाव सुनिश्चित कायम करने के लिए अपने रक्षा तंत्र को प्रबंधित करें। सीमा पार से बहने वाली नदी के प्रवाह के बारे में ली ने कहा कि चीन, नई दिल्ली की चिंताओं को समझता है और उसने मानवीय चिंताओं के कारण जलविद्युत संबंधित सभी सूचनाएं मुहैया कराई हैं। चीन से निकल कर भारत आने वाली ब्रह्मपुत्र नदी पर बन रहे बांधों को लेकर भारत ने चिंता जताई है।
व्यापार घाटे के बारे में ली ने चीनी बाजारों तक भारतीय उत्पादों की पहुंच बढ़ाने का आश्वासन दिया। अभी व्यापार का पलड़ा चीन की तरफ बहुत ज्याद झुका हुआ है। चीन के प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि वह भारत में चीनी निवेश का समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा, "हमारे पास भरतीय व्यापार असंतुलन को दूर करने की क्षमता है।" यह आश्वासन देते हुए ली ने कहा, "व्यापार संतुलन में गतिशीलता टिकाऊ होती है।"
सुरक्षा के मामले में उन्होंने कहा कि शांतिपूर्ण दक्षिण एशिया चीन के हित में है और दोनों पक्षों ने चिंता के सभी मामलों और मुद्दों के समाधान पर चर्चा की है। अपने सम्बोधन की शुरुआत ली ने भारतीय परम्परा के अनुसार 'नमस्ते' कहकर किया और उन्होंने अपने सम्बोधन में कई आकर्षक उद्धरणों का भी प्रयोग किया।
ली ने दोनों देशों को इस तरह के निकटवर्ती सम्बंध स्थापित करने पर जोर दिया, जिससे दोनों देश एकसाथ एशिया और वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव छोड़ सकें। ली ने कहा, "मुझे पूरा विश्वास है कि जब चीन और भारत एक सुर में बोलेंगे तो दुनिया को सुनना ही पड़ेगा।" लगभग इसी आशय की बातें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इससे पहले कह चुके हैं।
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