कोयला घोटाले में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करके बताया कि घोटाले की जांच से जुड़ी स्टेटस रिपोर्ट में बदलाव किए गए थे। ये बदलाव कानून मंत्री अश्विनी कुमार, अटॉर्नी जनरल जी.ई. वाहनवती के साथ-साथ पीएमओ और कोयला मंत्रालय के अफसरों के कहने पर किए गए। हालांकि सीबीआई ने भी दावा किया कि बदलाव स्वीकार किए जाने योग्य थे। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर अब 8 मई को सुनवाई होगी।
क्या सुप्रीम कोर्ट में कोयला घोटाले की स्टेटस रिपोर्ट को लेकर सरकारी पक्ष ने झूठ बोला था? क्या सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट में सरकार की तरफ से बदलाव किए गए? आखिर ये बदलाव क्या थे और किस स्तर पर हुए? कई दिनों से सियासी गलियारों को मथ रहे इन सवालों का जवाब आखिरकार सामने आ गया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन करते हुए सीबीआई ने सोमवार को अपना दूसरा हलफनामा दाखिल किया।
इस हलफनामे में सीबीआई ने कहा है कि स्टेटस रिपोर्ट को लेकर उसकी अलग-अलग लोगों से तीन बैठकें हुईं। ये बैठकें कानून मंत्री अश्विनी कुमार, अटॉर्नी जनरल गुलाम वाहनवती, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल हरिन रावल, पीएमओ के संयुक्त सचिव शत्रुघ्न सिंह और कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिव ए.के.भल्ला के साथ हुईं।
सीबीआई ने अपने हलफनामे में स्टेटस रिपोर्ट में हुए बदलावों का जिक्र भी किया है। सीबीआई के मुताबिक उसने अपनी स्टेटस रिपोर्ट में लिखा था कि किस आधार पर किस कंपनी को कोल ब्लॉक का आवंटन किया गया। इसके लिए क्या तरीका अपनाया गया, इसकी जांच होगी। सीबीआई के मुताबिक इसमें पीएमओ और कोयला मंत्रालय ने फेरबदल करवाया।
सीबीआई का कहना है कि कोयला खदान आवंटन के दौरान स्क्रीनिंग कमेटी ने कोई भी ऐसा चार्ट नहीं बनाया था, जिसमें कंपनियों की क्षमता और किस आधार पर उन्हें खदान दी जा रही है इसका कोई भी ब्योरा हो। सीबीआई के हलफनामे के मुताबिक कानून मंत्री ने जांच रिपोर्ट से ये बात हटवा दी। हलफनामे में कहा गया है कि सीबीआई ने स्टेटस रिपोर्ट में जांच का जो दायरा बनाया था, उसमें कानून मंत्री ने फेरबदल करवाए। सीबीआई ने अपनी स्टेटस रिपोर्ट में ये भी सवाल उठाया था कि खदानों का आवंटन उस वक्त क्यों हुआ, जब सरकार आवंटन के तरीकों को बदलने के बारे सोच रही थी। इसमें भी कानून मंत्री के कहने पर बदलाव किए गए।
लेकिन हलफनामे में सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा ये बताने में नाकाम रहे कि आखिर स्टेटस रिपोर्ट में ठीक-ठीक क्या बदलाव किए गए। उन्होंने बताया कि इन बैठकों का कोई ब्योरा नहीं रखा गया। इसलिए ये निश्चित तौर पर बताना आसान नहीं है कि आखिर किस शख्स ने क्या बदलाव करवाए। हालांकि उन्होंने ये जरूर दावा किया कि स्टेटस रिपोर्ट में दर्ज आरोपियों के नामों में कोई बदलाव नहीं किया गया और ना ही किसी का नाम हटाया गया। सीबीआई ने दावा किया कि ये सभी बदलाव स्वीकार किए जाने योग्य थे। उसने ये भी कहा कि सीबीआई मैनुअल में ये कहीं नहीं लिखा है कि उसे अपनी जांच रिपोर्ट किसी के साथ साझा करना चाहिए या नहीं।
हालांकि सीबीआई का ये दूसरा हलफनामा कोर्ट में सरकारी पक्ष के वकीलों के झूठ की पोल खोलता है। कोर्ट में अटॉर्नी जनरल एजी वाहनवती ने कहा था कि उन्होंने स्टेटस रिपोर्ट नहीं देखी थी। जबकि पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल हरिन रावल ने दावा किया था कि ये रिपोर्ट किसी ने नहीं देखी। लेकिन सीबीआई ने अपने दूसरे हलफनामे में ये साफ-साफ कहा है कि वाहनवती और हरिन रावल ने ना सिर्फ रिपोर्ट देखी बल्कि उसमें बदलाव भी सुझाए।
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