अठारह अप्रैल को भारतीय सेना के ब्रिगेडियर ने एक शिष्टमंडल के साथ लद्दाख के चुशूल में चीनी सेना के वरिष्ठ कर्नल से मुलाकात की. भारतीय सेना ने यह फ्लैग मीटिंग बुलाई थी. वह जानना चाहती थी कि भारतीय सीमा के करीब 10 किमी भीतर चीन की पीएलए (पीपल्स लिबरेशन आर्मी) के करीब 23 जवानों की एक प्लाटून वहां क्या कर रही थी. चीन के इन जवानों ने अपने तंबू तान लिए थे, जिसे एक दिन पहले भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) ने देखा था.
चीन ने इसका जो जवाब दिया उससे भारतीय शिष्टमंडल दंग रह गया. उन्होंने नवंबर 1959 में पहले प्रधानमंत्री चाउ एन लाइ के जवाहरलाल नेहरू को लिखे एक पत्र का हवाला दिया जिसमें इस इलाके पर अपने दावे को मजबूत करने की बात कही गई थी. भारतीय सेना के शिष्टमंडल को पीएलए ने उल्टे आरोप के दायरे में ले लिया कि भारतीय सेना, चीन के इलाके में बंकर बना रही है. चीनी जवान उन्हें देखने वहां पर आए थे. 23 अप्रैल की दूसरी बैठक भी गतिरोध नहीं सुलझ पाई. करीब 15 से 23 चीनी जवानों का समूह अपने तंबुओं में ही बना रहा.
भारत और चीन के सीमा पर अमन और शांति बनाए रखने की परस्पर सहमति के दो दशक बाद एक बार फिर से हो रही चीनी घुसपैठ पुराने परिचित तरीकों से ही हो रही है: विवादित 4,000 किमी लंबी सीमा के भीतर पीएलए के सैनिक घुस आते हैं और सिगरेट के पैकेट, सूप के कैन तथा पत्थरों पर लिखे नारों के रूप में अपने निशान छोड़ जाते हैं.
भारत ने 2010 के बाद से ऐसे 500 से ज्यादा मामले दर्ज किए हैं. इस बार हालांकि 17 अप्रैल की घटना ने भारत के सुरक्षा प्रतिष्ठान को हिलाकर रख दिया है. एक गुप्तचर अधिकारी के मुताबिक, ''चीनियों ने पहले कभी ऐसा नहीं किया था और इस बार वे लंबा रुकने के मूड में नजर आते हैं.
चीन के जवाब ने साउथ ब्लॉक स्थित सैन्य-कूटनीतिक महकमे को हिला दिया है क्योंकि घुसपैठ से पहले के महीनों में चीन ने भारत के साथ काफी सम्मानजनक बरताव किया था. सितंबर 2012 में चीन के रक्षा मंत्री जनरल लियांग गुआंगली की यात्रा ने संयुक्त सैन्याभ्यास को दोबारा बहाल किया जो 2010 में तब रोक दिया गया था, जब चीन ने भारतीय सेना की उत्तरी कमान के प्रमुख को वीजा देने से मना कर दिया था, इस साल चीन ने अपने प्रधानमंत्री ली केकियांग की भारत यात्रा की तारीख 20 मई तय कर दी है जो दोनों देशों के बीच कई उच्चस्तरीय दौरों में पहली होगी. जनवरी में विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कयास लगाया था कि यह साल चीन के साथ रिश्तों के मामले में अहम होगा.
भारत की ओर से हाल ही में उठाए गए कुछ शांतिपूर्ण कदमों के चलते रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने तो यहां तक कह डाला था कि चीन इस बार जापान के साथ अपने विवाद पर ज्यादा ध्यान दे रहा है और भारत को नाराज नहीं करना चाहता.
सच्चाई हालांकि कुछ और ही है. जिस तरह पूर्वी चीन सागर में स्थित विवादित सेंकाकू द्वीप के करीब जापान की सीमा में चीन के आठ तटरक्षक गश्ती जहाज घुस गए थे, ठीक उसी तर्ज पर लद्दाख के 10 किमी भीतर चीनी हेलिकॉप्टर अपने जवानों को उतार रहे थे. विदेश सचिव रंजन मथाई ने 19 अप्रैल को चीनी राजदूत वाई वाई को कूटनीतिक संदेश में इस पर आपत्ति जताते हुए 'सीमा पर यथास्थिति की बहाली’ की अपील की थी लेकिन यह कदम शर्मनाक तरीके से नाकाम हुआ क्योंकि चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस तरह के किसी भी उल्लंघन से ही इनकार कर डाला.
यह घटना काफी तेजी से रणनीतिक से कूटनीतिक हुई और फिर इसने राजनैतिक रंग ले लिया. रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने दिल्ली में कहा कि भारत ''अपने हितों की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएगा.” चीनी अतिक्रमण के तुरंत बाद उनके तंबू से 100 मीटर की दूरी पर उतनी ही संख्या में सेना के लद्दाख स्काउट्स और आइटीबीपी के जवानों ने अपना तंबू गाड़ लिया.
भारतीय सेना ने इन्हें धैर्य रखने की सलाह देते हुए दोनों ओर के डिविजन कमांडरों की बैठक बुलाई है लेकिन इसकी तारीख अभी तय नहीं हो पाई है. भारत इस मसले को जल्द हल कर लेना चाहता है, हालांकि यह नहीं पता कि चीनी वहां से कैसे हटेंगे. पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल कहते हैं, ''अगर चीन ने इसे अपनी इज्जत का सवाल बना लिया तो वह इधर से बिना किसी कार्रवाई के पीछे नहीं हटेगा. फिर दिक्कत हो जाएगी. भारत के पास वहां टिके रहने और कूटनीतिक स्तर पर मसले पर वार्ता करते रहने के अलावा ज्यादा विकल्प नहीं हैं.”
सेना की उत्तरी कमान के प्रमुख रहे लेफ्टिनेंट जनरल एच.एस. पनाग ने ट्वीट किया, ''तिब्बत की निगरानी करने और संघर्ष के चलते वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन तनाव बनाए रखेगा ताकि उसका फायदा मिल सके और कमजोर भारत को शर्मिंदा किया जा सके.”
वास्तविक नियंत्रण रेखा उत्तर-पूर्वी लद्दाख के दौलत बेग ओल्दी (डीबीओ) से लेकर दक्षिण के दमचोक तक 320 किमी लंबी है. भारत ने यहां के हिम मरुस्थल की ऊंचाइयों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए कदम उठाए हैं. भारतीय वायु सेना ने 2008 में डीबीओ में एलएसी से सिर्फ आठ किमी दूर 16,200 फुट की ऊंचाई पर बेकार हो चुकी एयरफील्ड को दोबारा काम में लाना शुरू कर दिया था. डीबीओ की इस पोस्ट पर सेना, लद्दाख स्काउट्स और आइटीबीपी के जवानों को एन-32 परिवहन विमान सप्लाई कर सकता है. पहले इन सुदूर पोस्ट पर पहुंचने में खच्चर से 10 दिन लग जाते थे. पिछले साल सेना ने श्योक नदी से डीबीओ तक 80 किमी लंबी एक सड़क तैयार की जो इन पोस्ट को सप्लाई कर सकती है. सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, ''सीमा युद्ध की स्थिति में चीन को जरूर अक्साई चिन की चिंता सता रही होगी.”
पिछले माह चीन के नए राष्ट्रपति जी जिनपिंग ने भारत के साथ रिश्ते सुधारने का पांच सूत्री फॉर्मूला सामने रखा जिसमें सीमा पर अमन-चैन बनाए रखना भी शामिल था. उसमें कहा गया था, ''इतिहास के साथ चलता आया सीमा से जुड़ा विवाद जटिल है और इसे सुलझ पाना आसान नहीं होगा.” जाहिर है, इसे घुसपैठ से तो नहीं ही सुलझाया जा सकता है.
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