हमारे आस-पास कई सारे लोग हैं जो आज को तो ढंग से जी नहीं पा रहे हैं लेकिन उन्हें हमेशा कल की चिन्ता सताती रहती है और इसी उधेड़बुन में लगे रहते हैं कि कल क्या होगा। इस किस्म में तमाम प्रकार सांसारिकों से लेकर वे सारे लोग हैं जो भिखारी हैं, बड़े-बड़े मठों के अधिष्ठाता और महंत हैं, विशालकाय मन्दिरों के पुजारी हैं और वे सारे लोग हैं जिन्हें संत-महात्मा, संन्यासी और तपस्वी कहा जाता है जिन्होंने संसार से वैराग्य ले रखा है। जो लोग संसार से दूर हैं वे भी, और जो संसार में पूरी तरह रमे हुए हैं, वे भी इस मायाजाल से घिरे हुए हैं। जो लोग कल की चिन्ता में डूबे रहते हैं वे वर्तमान का आनंद नहीं ले पाते हैं और वर्तमान को भी अच्छी तरह जी नहीं पाते हैं। इन लोगों को शायद यह भान नहीं है कि जो वर्तमान को ढंग से नहीं जी सकते हैं उनके लिए भविष्य भी सुकून देने वाला नहीं हो सकता। हर क्षेत्र में इस किस्म के लोगों की भारी भरमार है जो हमेशा अपने वर्तमान से शिकायत करते रहते हैं और भविष्य के प्रति आशान्वित होते हैं।
इस किस्म के लोगों के लिए वर्तमान कितनी ही खुशियाँ लेकर आ जाए, इन लोगों को वर्तमान में जीने का आनंद ही नहीं आता चाहे वे कितने ही जतन कर लें। यह सारा दोष हमारी मानसिकता का है। हममें से कई लोगों का स्वभाव ही न जाने किस तरह ऎसा हो जाता है कि उन्हें वर्तमान के सारे आनंद गौण लगते हैं और भविष्य के प्रति हर क्षण आशान्वित होते हैं। और यही स्थिति इन लोगों की मृत्यु तक बनी रहती है और भविष्य के आनंद से वंचित रहते हुए ही ऊपर की यात्रा के लिए चले जाते हैं। ये लोग हमेशा वर्तमान को कोसते रहते हैं। इस विचित्र मानसिकता के लोगों में से अधिकतर कालान्तर में मानसिक या शारीरिक रोगी हो जाते हैं तथा इनके जीवन का बचा-खुचा आनंद भी समाप्त होने लगता है। हमारे खूब सारे संपर्कितों, सहकर्मियों, मित्रों और कुटुुिम्बयों से लेकर अपने इलाके में ऎसे खूब सारे सनकी हैं जिनसे अब न अपने काम ढंग से हो पाते हैं न औरों के। वर्तमान के आनंद को पकड़ पाने से दूर रहने को विवश होकर जीवनबसर करने वाले ऎसे लोगों से उनके परिजन भी दुःखी और परेशान रहते हैं तथा वहां के लोग भी इनकी सनक से घिरी हरकतों की वजह से त्रस्त रहते हैं जहाँ इनका कार्यस्थल होता है।
इनमें से कई सनकियों की स्थिति तो और भी अधिक विचित्र रहती है। ये लोग वर्तमान से परेशान तो रहते ही हैं, इन लोगों की पूरी ऊर्जा वर्तमान को भूत बनाने के लिए लगी रहती है और इसके लिए ये दिन-रात षड़यंत्रों और खुराफातों को अंजाम देते रहते हैं। इनकी वजह से वे लोग मुश्किलों में आ जाते हैं जो अपने काम में मस्त रहने के आदी होते हैं। वर्तमान को धकियाना ऎसे विघ्नसंतोषियों के जीवन का पहला धर्म बन जाता है और ये हर वर्तमान के साथ बुरा व्यवहार इस आशा में करते हैं कि भविष्य अच्छा आने वाला है। पर होता इसका उलटा ही है। ये जिस भविष्य से आशा रखते हैं वह भी उनके पास आकर वर्तमान हो जाता है और जैसे ही वर्तमान होता है वह इनका शिकार होना शुरू हो जाता है जिसकी नियति अंततः अधःपतन से ज्यादा कुछ नहीं है। वर्तमान से हमेशा दुःखी रहने वाले लोग इस सत्य को भले ही स्वीकार न करें लेकिन यह शाश्वत सत्य है कि ऎसे लोग किसी न किसी सीमा तक मनोरोगी की श्रेणी मेंं ही आते हैं और ऎसे विचित्र एवं आत्म-मनोरोगियों का कहीं कोई ईलाज संभव नहीं है सिवाय इनके राम नाम सत्य के।
इनका ईलाज कोई करे भी तो कैसे। इनका अपना स्वजन तो वही हो सकता है जो खुद भी इनकी ही तरह सनकी और मनोरोगी हो, जिसे वर्तमान के सम्पूर्ण वैभवों के होने पर भी आनंद की बजाय शून्यता और अतृप्ति का अनुभव होता रहे। फिर जहां किसी कार्यस्थल पर ऎसे एकाधिक लोग दुर्भाग्यवश मिल जाएं तो फिर उस संस्थान या दफ्तर के तो कहने ही क्या। हम सभी लोग यह चाहते हैं कि सुनहरा कल आए, भविष्य बेहतर हो तथा उत्तरोत्तर सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी होती रहे लेकिन इन सभी के लिए सबसे प्राथमिक आवश्यकता है वर्तमान को पूरे आनंद से जीना। चाहे कितनी ही समस्याए, अभाव और विषमताएँ सामने आएँ, सकारात्मक चिंतन करें और वर्तमान की पूरी मस्ती लें। यह तय मानकर चलना चाहिए कि मानसिकता जैसी होगी वैसा ही भविष्य आकार लेता है। इसलिए वर्तमान को सँवारे, भविष्य अपने आप सुनहरे स्वरूप में महा आनंद का दिग्दर्शन कराएगा ही।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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