दिल्ली में 1993 में हुए एक बम विस्फोट के दोषी देविंदरपाल सिंह भुल्लर की पत्नी ने आज सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर आग्रह किया कि जब तक शीर्ष न्यायालय के फैसले के खिलाफ उसकी समीक्षा याचिका पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक उसके पति की मौत की सजा पर अमल को स्थगित रखा जाए।
अपने निवेदन में उसने कहा कि उसने उच्चतम न्यायालय के 12 अप्रैल के फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर की है। न्यायालय ने 12 अप्रैल के फैसले में भुल्लर की मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने संबंधी उसकी पत्नी की याचिका को खारिज कर दिया था।
मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदले जाने का आग्रह इस आधार पर किया गया था कि सरकार ने उसकी दया याचिका पर विचार करने में विलंब किया। सितंबर 1993 में हुए एक बम विस्फोट के मामले में खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के आतंकी भुल्लर को दोषी ठहराया गया था और उसे मौत की सजा सुनाई गई थी। इस विस्फोट में नौ लोग मारे गए थे और युवक कांग्रेस के अध्यक्ष एम एस बिट्टा सहित 25 अन्य लोग घायल हो गए थे।
शीर्ष अदालत ने 26 मार्च 2002 को मौत की सजा के खिलाफ भुल्लर की गई याचिका खारिज कर दी थी। उसे निचली अदालत ने अगस्त 2001 में मौत की सजा सुनाई थी और दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2002 में इसकी पुष्टि कर दी थी। भुल्लर की पुनर्विचार याचिका 17 दिसंबर 2002 को खारिज कर दी गई थी। इसके बाद उसने सुधारात्मक याचिका दायर की, लेकिन शीर्ष अदालत ने 12 मार्च 2003 को इसे भी खारिज कर दिया।
भुल्लर ने 14 जनवरी 2003 को राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की। राष्ट्रपति ने आठ साल के अंतराल के बाद 25 मई 2011 को इसे खारिज कर दिया। विलम्ब को आधार बताकर उसने फिर से मौत की सजा को उम्रकैद की सजा में तब्दील करने के लिए उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया, लेकिन यह भी खारिज कर दिया गया। शीर्ष अदालत ने गत एक मई को हत्या के दोषी एम एन दास की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था, जिसकी दया याचिका को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने खारिज कर दिया था। न्यायालय ने दास की अपील को स्वीकार कर लिया था, जिसमे मौत की सजा को घटाकर उम्रकैद में बदलने का आग्रह करते हुये कहा गया था कि राष्ट्रपति ने उसकी दया याचिका पर फैसला करने में 12 साल लगा दिए।
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