झारखंड : सेरका के गांवों में पहुंचा उजियारा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

बुधवार, 3 जुलाई 2013

झारखंड : सेरका के गांवों में पहुंचा उजियारा

साइकिल से मीलों दूरी तय कर रोज स्कूल आ रही हैं लड़कियां
झारखंड के लिए पंचायती राज एक बड़ी राहत है। केंद्र और राज्य के बाद ‘गांवों की सरकार’ का संवैधानिक दर्जा पंचायतों को दिया गया है। यह तीसरी सरकार भी है। गांवों की शक्ल-सूरत बदलने में यह सरकार क्रियाशील है। ‘जंगल की सरकार’ से आतंकित झारखंड में पंचायतों ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। खासकर पंचायत में जीतकर आयी ‘आधी आबादी’ ने।  

पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को 33 फीसदी और अब 50 फीसदी आरक्षण देने से वे राजनीतिक रूप से सक्त हुई हैं। अब वे न सिर्फ अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुई हैं बल्कि समाज के हित में वाजिब फैसले भी ले रही हैं। 2006 में 50 फीसदी आरक्षण देने का कारवां बिहार से चलकर राजस्थान, हिमाचल प्रदे, उत्तरांचल में भी पहंुच चुका है। ऐसे में केंद्र की ओर से सभी राज्यों में 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था किए जाने की पहल मील का पत्थर साबित हो रही है। झारखंड में पंचायत के लगभग 57 प्रतित पदों पर महिलाओं ने सफलता पायी है। और इनमें से कई महिला प्रतिनिधियों ने अपना जिम्मा बखूबी उठाते हुए पंचायत को मजबूत बनाने में ठोस पहल की है।

मुखिया कमरिता देवी 
कमरिता देवी। सेरका पंचायत की मुखिया। अपनी मेहनत की बदौलत सहिया से मुखिया बनने का सफर तय किया है। नक्सल प्रभावित गुमला जिले के सुदूरवर्ती पहाड़ी इलाके में बसे सेरका को पंचायत के माध्यम से माॅडल पंचायत बनाने के जतन में लगी हैं। पंचायतों के जरिए गांवों की तस्वीर बदलने की उनकी कोशिशों का असर सेरका में नजर आ रहा है। 

लातेहार-नेतरहाट के रास्ते में बिशुनपुर प्रखंड कार्यालय के पास है सेरका पंचायत। इनमें पांच राजस्व गांव हैं। सेरका, आडुप, किस्की, जालिम और हिचिर। सेरका को छोड़ दें तो बाकी चारों गांव पहाडि़यों के बीच बसे हैं। बीहड़ जंगल भी हैं। आवागमन की सुविधाएं नहीं हैं। कमरिता बताती हैं कि इन गांवों में स्कूल, अस्पताल मयस्सर नहीं हैं। कभी इन गांवों में बिजली नहीं पहुंची। पंचायत चुनाव के बाद ग्राम सभा की बैठक में सेरका, आडुप, किस्की, जालिम और हिचिर को अंधेरे के षाप से निकालने के उपर मंथन किया गया। 

फरवरी 2011 में झारखंड सरकार के रिन्यूवल एनर्जी विभाग की मदद ली गई। उनके द्वारा वैसे गांवों और परिवारों की सूची मांगी गई थी जो सोलर लैंप के लिए इच्छुक थे। बिना देर किए महीने भर के अंदर सेरका पंचायत के द्वारा सेरका को छोड़ शेष सभी गांवों के नाम और परिवार के मुखिया की सूची जरेडा को दे दी गई। नौ महीने बीतते-बीतते संस्था ने पंचायत की निगरानी में प्रत्येक घर में सोलर लैंप उपलब्ध करा दिया। प्रत्येक सोलर लैंप की कीमत 3500 रुपये तक थी। परंतु सब्सिडी रेट पर प्रत्येक परिवार को इसके लिए मात्र 400 रुपये का भुगतान करना पड़ा। पिछले एक साल से सेरका में हर गांव में रोनी है। सिवाय सेरका के जहां विद्युतीकरण के तहत बिजली कनेक्षन हर घर में लगा है। आज समूचे बिशुनपुर प्रखंड की दूसरी पंचायतों में शाम होने के बाद बिजली की गारंटी नहीं है, वहां सेरका के सभी गांव सौर उर्जा से चैबीसो घंटे रोन रहते हैं। सोलर लैंप के इस्तेमाल से चार गांवों के 1600 परिवारों को लाभ पहुंचा है। वे इसका इस्तेमाल घर में रोनी के अलावा टीवी देखने, गाना-बजाना और दूसरे उत्सवों के लिए कर रहे हैं।

पहाड़ों से नीचे उतर कर स्कूलों तक आने लगे हैं बच्चे
कमरिता देवी बताती हैं कि हिसिर गांव में तकरीबन 60 घर हैं। अधिकां लोग खेतीबारी पर निर्भर हैं। गांव में 35 कुआं है। छोटी-छोटी पहाड़ी नदियां भी हैं। सिंचाई के लिए ग्रामीण इसी पर निर्भर हैं। पर सामूहिक रूप से सिंचाई सुविधा बहाल करने और गांव के नजदीक इसकी व्यवस्था करने के लिए पंचायत के जरिए पहल की गई है। 2011 में बीआरजीएफ से पैसे मिले थे। इनमें 85 हजार रुपए को हिसिर गांव में लगभग 2000 फीट की नाली बनाने के लिए तय किया गया। मार्च 2011 से गांव में इस नाली को बनाने का काम षुरू हुआ। हिसिर में एक पहाड़ी नदी है जिसमें लगभग बारहों माह पानी बहता रहता है। इसी पानी का सदुपयोग करने को यह नाली बनाई जानी है। ग्रामीणों के श्रमदान और कुछ मजदूरी से पिछले साल ढ़ाई महीने में 1000 फीट की सीमेंटेड नाली तैयार की गई है। मजदूरी के काम में स्थानीय ग्रामीणों को जोड़ा गया था। अब भी 1000 फीट का काम बाकी है। आगे पंचायत को मिलने वाले पैसों से इसे पूरा कर देना है। एक जलमीनार बनाने का भी लक्ष्य है। इसके बनने से हिसिर गांव पानी के मामले में ही लिहाज से आत्मनिर्भर बन जाएगा। हाडुप गांव में डीप बोरिंग कराने की योजना है। 22,00000 रुपए की योजना है। एक पानी टंकी बनेगी। मजदूरी गांव के लोगों को ही मिलेगी। बाद में दूसरे गांवों में भी पानी के परंपरागत स्रोतों को बेहतर प्रबंधन के जरिए विकसित करने की योजना है।

सेरका का एक आंगनबाड़ी केंद्र 
सेरका गांव में 300 परिवार हैं। व्यवसाय, खेती-बारी के बलावा कुछ परिवार मजदूरी करते हैं। गांव में 150 से कुछ अधिक बीपीएल परिवार हैं। पर शिक्षा ग्रहण करने के मामले में ग्रामीण जागरूक हैं। विकास भारती जैसी संस्था लगभग 25 सालों से बिशुनपुर मेें काम कर रही है। इसके चलते शिक्षा और स्वावलंबी बनने की भावना इस पंचायत के लोगों में पनपी है। पंचायत चुनाव के बाद ग्राम सभा और पंचायतों के जरिए अपने-अपने परिवार को शिक्षित करने के लिए संदेष दिया गया। इसका फर्क यह पड़ा है कि आज ना सिर्फ सेरका बल्कि इस पंचायत के दूसरे गांवों के बच्चे भी सेरका और इसके आसपास के स्कूलों में पढ़ने को आ रहे हैं। 10-10 किमी की दूरी साइकिल से और पैदल तय करते हुए आडुप, हिसिर, किस्की जैसे गांवों से लड़के-लड़कियां नियमित तौर पर स्कूल आ रहे हैं। लोहार, सोनार, मुस्लिम, बिरहोर, असुर, आदिम जनजातियों तक के घरों से विद्यार्थी पढ़ने को सामने आने लगे हैं। कम-से-कम सेरका गांव का कोई घर ऐसा नहीं है जहां से कोई बच्चा पढ़ने को स्कूल नहीं जा रहा हो। 

बीपीएल परिवार स्मार्ट हेल्थ कार्ड का उठा रहे हैं लाभ
सेरका में 13 आंगनबाड़ी केंद्र हैं। पंचायतों की सक्रियता से गांव के बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं। सहायिका, सेविकाओं ने ईमानदारी दिखानी षुरू की है। समय पर केंद्र खुलना और बच्चों को पढ़ाई और पोषण का लाभ मिलना शुरू हो गया है। कमरिता देवी बताती हैं कि शिक्षा की कमी के कारण गांवों में डायन-बिसाही जैसी घटनाएं भी सुनने को मिलती थीं। कुछ सालों पूर्व सेरका में रहने वाले गब्जू असुर के बारे में अफवाह उड़ा दी गई कि वह मानव बलि चढ़ाता है। सरकारी सेवा से सेवामुक्त हो चुके गब्जू के बारे में कुछ परिवारों ने बकायदा ऐसी हवा बना रखी थी कि गांव का कोई परिवार उससे संबंध रखने, मेल-जोल बढ़ाने में हिचकिचाते थे। पंचायत की पहली ही बैठक में ग्रामीणों को डायन-बिसाही की सत्यता, सरकार द्वारा बनाए गए कानून के बारे में बताया गया। अंततः मामला सुलझा। आज गब्जू का परिवार शांति से रह रहा है। अब ऐसे कोई केस सेरका पंचायत में सुनने-देखने को नहीं मिल रहे।

पंचायत चुनाव के बाद प्रखंड कार्यालय का चक्कर कम हुआ है। पहले जाति, आवासीय, आय प्रमाण पत्रों के लिए जरूरी कामकाज छोड़कर प्रखंड दौड़ना होता था। अब कभी भी कोई परिवार पंचायत के जरिए अपना प्रमाण पत्र बनवा ले रहा है। अधिकां बीपीएल परिवारों का हेल्थ स्मार्ट कार्ड बन चुका है। अब ऐसे लाभुक परिवार अपने ईलाज के लिए किसी के मोहताज नहीं रहे। पंचायत भवन का निर्माणाधीन है। इसके लिए गांव के मजदूरों को मौका दिया जा रहा है। खेतीबारी को प्रश्रय देने के लिहाज से गांवों में आत्मा की ओर से किसान पाठशाला बनाए गए हैं। इनके माध्यम से 25-25 किसानों को कृषि कार्यों से संबंधित प्रशिक्षण दिया जाता है। जमीन का खेती के लिहाज से सदुपयोग के बारे में बताया जा रहा है।  

नदी पूजन के बहाने सेरका के बच्चे अपनी प्रकृति को आदर दे रहे हैं
कमरिता देवी के अनुसार, निर्मल ग्राम के लिए सेरका का चयन हुआ है। इसके लिए जलसहिया का चयन हो चुका है। 26 चापाकलों की मरम्मत कराई जा चुकी है। ग्राम शिक्षा समिति, प्रबंधन समिति के जरिए गांव के विकास के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। सेरका के पास पूराने समय का एक शिव मंदिर है। सावन में इस शिवलिंग का रंग सफेद हो जाता है जबकि हर छह माह पर सफेद। यह पर्यटन केंद्र बन सकता है। जतरा टानाभगत का कर्मक्षेत्र भी सेरका रहा है। इस लिहाज से भी यह दर्शनीय इलाका है। गांवों के आसपास पारंपरिक रूप से हाट बाजार लगते हैं। बड़े पैमाने पर बाॅक्साइट के माइनिंग इलाके हैं। पंचायतों के जरिए इनसे राजस्व उगाही के संबंध में विचार किया जा रहा है।    

कमरिता कहती हैं कि उन्हें मिडिल स्कूल से आगे पढने का अवसर नहीं मिला। पर अब समय बदला है। सेरका में तीन सरकारी प्राथमिक स्कूल और एक मिडिल स्कूल है। इसके अलावा विकास भारती द्वारा संचालित कई स्कूल भी हैं। चूंकि शिक्षा ही विकास का मूल है। ऐसे में हमारा प्रयास पंचायत को जल्द से जल्द षिक्षित बनाने का है। मैंने अपनी बहु को इंटर की शादी के बाद भी काॅलेज की पढाई के लिए दबाव बना रखा है। वह खेत-खलिहानी और गृहस्थी संभालने के बाद अपनी पढ़ाई भी पूरा कर रही है। 

वरिष्ठ पत्रकार डाॅ विष्णु राजगढि़या कहते हैं कि निश्चित तौर पर झारखंड में गांवों की सूरत बदलने में तीसरी सरकार ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। अभी अधिसंरचना बनने का दौर है। यह चरण पूरा होते ही पंचायती राज का जादू हर ओर दिखने लगेगा। झारखंड की पंचायतों में महिलाओं का 56 फीसदी प्रतिनिधित्व है। इन महिला प्रतिनिधियों ने पंचायत की पगडंडी पर चलकर झारखंड विकास का महामार्ग बनाना शुरू कर दिया है। श्री विष्णु कहते हैं कि हमारी महिला प्रतिनिधियों की कोशिशों और सफलताओं का असल और विधिवत मूल्यांकन होने में समय लगेगा। पर एक परिघटना के बतौर ऐसे उदाहरण आस बंधाते नजर आ रहे हैं। पंचायत ही गांव को सहेजेंगे, इसकी आशा है।   




---अमित झा---
रांची,
झारखण्ड 

कोई टिप्पणी नहीं: