हम गरमी की छुट्टियों में हर बार गाँव जाते थे . गाँव में दादी के पास सोने में बड़ा मजा आता था .एक तो रात भर दादी के हाथों में एक पंखा हुआ करता था और वह बिना रुके रात भर चलातीं रहती थीं. दूसरा दादी हमें अनेकों धर्म और पुरानो की कथाएँ सुनाया करती थीं जो बहुत अच्छा लगता था. सिर्फ एक बात मेरी समझ में नहीं आती वह थी दादी का हर बात में कहना कलयुग आया कलयुग आ गया. कहानियों में राजा रानी और राक्षस हुआ करते थे. माँ और दादी से सुनी हुई कहानियों के आधार पर दिमाग में काफी बड़े तक बैठ गया कि भगवान की मरजी के बिना कुछ नहीं हो सकता। उसके अलावा राजा और राक्षस का किरदार भी मन में बैठ गया . जब जब कहानी सुनती तो मन में राजा और दानव दोनों को देखने की बड़ी इच्छा होती थी.
मैं कई बार दादी से पूछती दादी अब राजा नहीं हो सकता तो वह हंसकर कहती नही……… सब अंग्रेजों के साथ चला गया. मैं पूछती, और राक्षस तो वह उंगली अपने मुंह के पास लेजाकर कहतीं अरे बाप रे राक्षस ………उसके तो इतने बड़े बड़े दांत होते थे, बड़े बड़े सींग, लम्बा चौड़ा, वह होता तो आज सबको खा जाता, बहुत बलवान होता था. मेरे मन में उसी समय से राक्षस मतलब बड़े बड़े दांतों वाला लंबा चौड़ा सिंग वाला बैठ गया था.
पर आज महसूस होता है सच में राक्षस तो आज भी हैं. हाँ उनके सिंग और बड़ी बड़ी दांतें नहीं दिखती। पहले जमाने में मुकुट पहनकर भारी भारी वस्त्र पहन गहनों से लदे हुए राजा रानी होते थे। जिन्हें भारी की वजह से नीचे की कुछ दिखता ही नही था। वह अपना मुकुट संभालने में ही रह जाते थे. आज जो अपने को राजा समझते हैं उन्हें लाख दिखाने की कोशिश करो वे खुद के सिवा कुछ देखना नहीं चाहते। उन्हें तो मुकुट गिरने की भी चिंता नहीं रहती है. पर हम जिन्हें राजा समझते हैं असल में यही राक्षस हैं जिनके सिंग और बड़े बड़े दांत तो नहीं हैं पर इनके दांत बड़े मजबूत होते हैं.
दादी की कही बातें आज समझ में आ रही है राक्षस तो प्रतीकात्मक था। बिना सिंग और बड़ी बड़ी दांतों के भी राक्षस होते हैं. आज के नेता ही राक्षस के अवतार हैं.
---कुसुम ठाकुर---
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें