देश राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत वर्ष 2020 तक गाँव गाँव तक बिजली पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन योजना की गति इतनी धीमी है कि लक्षित वर्ष तक इसे पूरा करना संभव नहीं लगता है। विशेषकर जम्मू कश्मीर के कारगिल स्थित तईसूरू जैसे अति पिछड़े इलाक़े में बिजली की अहमियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। शहर के शोर शराबे और तेज भागती जि़ंदगी से दूर नूनकुन की वादियों में स्थित तईसूरू एक छोटा सा गाँव है। जिसकी कुल आबादी मात्र 350 है। परंतु विकास के काम को तेज़ करने के मकसद से इसे ब्लाॅक हेडक्वाटर का दर्जा दिया गया है। ख़तरनाक पहाड़ी रास्तों से गुजरकर यहाँ पहुँचने में पूरा दिन गुजर जाता है।
तईसुरू कारगिल जि़ला अंतर्गत आता है। 14 वर्ष पूर्व पाकिस्तान को युद्ध में हराकर विश्व मानचित्र में अपनी पहचान दर्ज कराने वाले इसी कारगिल से तईसुरू 65 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां के निवासी विशेषकर युवा पीढ़ी आज भी कई बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीवन के लिए संघर्ष कर रही है। साल के आधे महीने में यह क्षेत्र बर्फ से ढ़ंका रहता है। इस दौरान यहाँ का संपर्क करीब करीब पूरी दुनिया से कट जाता है। सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू की बात करें तो यहाँ के निवासी बहुत ही शांत परंतु मिलनसार प्रवृति के हैं। यही कारण है कि यहाँ के पुलिस स्टेशन में नाममात्र के अपराध दर्ज कराए जाते हैं। मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र के लोगों को अपनी भारतीय संस्कृति पर बहुत गर्व है।
तईसूरू के लोगों को जिन बुनियादी सुविधाओं की कमी का सबसे अधिक सामना करना पड़ता है उनमें बिजली की समस्या प्रमुख है। हालांकि पूर्व की तरह यह समस्या अधिक नहीं हैं फिर भी कई अवसरों पर इसकी किल्लत यहाँ के लोगों को परेशान कर देती है। स्थानीय किसान 40 वर्षीय मो. मुस्लिम अपने बीते हुए दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि पहले उनके घरों में रात के अंधेरे को दूर करने के लिए लालटेन और बाँबा (परंपरागत कैंडल) जलाया जाता था। लालटेन में तेल का इंतजाम करने के लिए उनके पिता पैदल कारगिल जाया करते थे। धीरे धीरे स्थिती बदल चुकी है। रौशनी का प्रबंध कराने वाली गैस लाइट जैसी बाजार में आई नई सौगातों से तईसूरू के लोगों ने भी स्वंय को जोड़ना शुरू कर दिया है। इसे प्रयोग करना जहाँ आसान है वहीं यह अधिक से अधिक रौशनी भी प्रदान करता है। हालांकि सरकार की ओर से इसकी जरूरत को देखते हुए स्थानीय स्तर पर जनवितरण प्रणाली का इंतजाम किया गया। जिसमें गेहूँ और चावल के अतिरिक्त किरोसिन के तेल भी उपलब्ध कराए जाने लगे हैं।
स्थानीय निवासियों के अनुसार तईसूरू में सबसे पहले 1984 में बिजली की सुविधा उपलब्ध कराई गई थी। जो यहाँ के विकास के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ। हालांकि देश के अन्य भागों में बिजली के तारों से लगने वाले करंट और उससे होने वाली दुर्घटनाओं के बारे रेडियो से सुनकर गाँव के बुजुर्ग चिंतित अवश्य हुए थे, लेकिन समय के साथ बरती जाने वाली सावधानी ने इनकी चिंताओं को दूर कर दिया। तईसूरू में इस समय पूरे दिन में 5 घंटे बिजली उपलब्ध कराई जाती है। इसके आगमन ने गाँव के लोगों के जीवनशैली को पूरी तरह से बदल दिया है। बिजली के आने से इस क्षेत्र में आधुनिक संसाधनों और संचार माध्यमों ने भी दस्तक देनी शुरू कर दी। गाँव के अधिकतर घरों में टीवी आ गया और अपनों से जुड़े रहने का सबसे उपयुक्र्त माध्यम मोबाइल ने भी यहाँ अपनी जबरदस्त पैठ बना ली है। आधुनिक तकनीक के आने से एक तरफ तईसूरू के लोग घर बैठे देश और दुनिया से स्वंय को जुड़ा हुआ महसूस करने लगे वहीं उनमें सकारात्मक सोंच भी विकसित होने लगी। बिजली के आने से युवा पीढ़ी में शिक्षा के प्रति लगाव बढ़ा है।
तईसूरू में बिजली के आगमन ने यहाँ विकास के नए द्वार खोल दिए हैं। गाँव वालों को सरकार की योजनाओं से अवगत कराने और नौकरी में अवसर उपलब्ध कराने हेतु जानकारी देने के लिए सूचना केंद्र स्थापित किए गए हैं। जहाँ कंप्यूटर द्वारा पल भर में सारी जानकारी उपलब्ध करा दी जाती है। बिजली और कंप्यूटर आने से यहाँ बैंक की सरगर्मी भी बढ़ी है। हालांकि अभी भी पूरे तईसूरू में केवल जम्मू एंड कश्मीर बैंक की ही सुविधा उपलब्ध है। इसके बावजूद अब बड़ी संख्या में लोगों ने बैंक में अपना खाता खोलना शुरू कर दिया है। दूसरी ओर नई पीढ़ी को कंप्यूटर से जोड़ने के लिए स्कूल में कंप्यूटर क्लास भी शुरू किए जाने की योजना पर काम किया जा रहा है लेकिन यह अभी पूरी तरह से सार्थक होता नजर नहीं आ रहा है। यहाँ केवल दो सरकारी स्कूल हैं जिनमें गर्वनमेंट हाई स्कूल में बिजली की सुविधा उपलब्ध होने के कारण कुछ हद तक कंप्यूटर क्लास चलती है लेकिन गल्र्स मीडिल स्कूल में अभी तक इसकी सुविधा नहीं होने के कारण छात्राएं कंप्यूटर के ज्ञान से वंचित हैं। जबकि इस क्षेत्र में एकमात्र निजी विद्यालय भी है जो पिछले कई सालों से संचालित है। जहाँ छात्र-छात्राओं के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। विद्यालय में बिजली की निर्बाध आपूर्ति के लिए सोलर लाइट की व्यवस्था भी है। सरकारी स्कूल की अपेक्षा बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने के कारण ही यह तईसूरू के अभिभावको का पसंदीदा स्कूल बन चुका है।
इसके साथ साथ सेना की ओर से भी तईसूरू की जामा मस्जिद और इमामबाड़ा में उपलब्ध कराए गए सोलर लाईट ने यहाँ के जीवनशैली में बहुत बड़ा बदलाव ला दिया है। बिजली के आगमन ने यहाँ के लोगों को काफी हद तक उसपर निर्भर बना दिया है। ऐसे में इसकी आँख मिचौली से उन्हें दिक्कत भी होती है। स्थानीय पार्षद सयैद अब्बास रिज़वी के अनुसार बिजली की समस्या जल्द हल होने की कगार पर है। आने वाले वर्षों में तईसूरू में 1000 किलोवाट का हाईडल प्रोजेक्ट बनने वाला है। जो कारगिल रिन्यूबल एनर्जी डेवलपमेंट आॅथरिटी के अंतर्गत कार्य करेगा। तब तक तईसूरू के लोगों को उजाले की इसी उम्मीद के बीच अंधेरे में जीना होगा।
इक़बाल अली खान
(चरखा फीचर्स)
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