अब रश्मि माहली पुलिसकर्मियों को देख कर जंगलों की ओर नहीं भागेंगी। रश्मि माहली (25) दो वर्ष पहले तक एक नक्सली थीं और अब वह रांची के उपायुक्त कार्यालय में चाय की दुकान चला रही हैं। रश्मि की चाय की दुकान का उद्घाटन 67वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर किया गया है।रांची के उपायुक्त कार्यालय परिसर में स्थित चाय की इस दुकान का उद्घाटन उपायुक्त विनय कुमार और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) साकेत कुमार ने किया है। उपायुक्त कार्यालय को यहां स्थानीय लोग कलेक्टरेट के नाम से भी जानते हैं।
रश्मि झारखंड के सबसे दुर्दात नक्सलियों में गिने जाने वाले कुंदन पहान के गुट में छापामार थी। कुंदन को झारखंड का 'वीरप्पन' कहा जाता था। कुंदन का गुट रांची सहित झारखंड के चार जिलों में सक्रिय रहा। रश्मि के जीवन में 2011 में समर्पण करने के बाद बदलाव आया। रश्मि ने आईएएनएस को बताया कि कम उम्र में वह नक्सलियों के गुट में शामिल हो गई और सात वर्षो तक वहां रही। लेकिन हिंसा, यौन शोषण और भागने-छिपने वाली जिंदगी से ऊब कर उसने समर्पण का फैसला किया।
चाय की दुकान लगाने के अलावा समर्पण करने वाले नक्सलियों की पुनर्वास नीति के तहत मिलने वाला 1.5 लाख रुपये का पुनर्वास पैकेज रश्मि को मिला है। जिला प्रशासन ने रश्मि को जगह दी है, जिसका इस्तेमाल वह चाय दुकान के रूप में कर सकती है। रश्मि का आठ वर्ष का एक बेटा भी है और उसे उम्मीद है कि एक दिन वह बड़ा होकर पुलिस में भर्ती होगा। रश्मि ने कहा, "मैं अपने पुराने साथियों से हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने की अपील करती हूं।"
जिस समय रश्मि ने समर्पण किया, उस समय वह छोटानागपुर जोन की नारी मुक्ति संघ की उपाध्यक्ष थी। रश्मि का पुरुष मित्र भी एक नक्सली था। कुछ वर्ष पहले वह मारा गया। उसके दोस्त की मौत के बाद दूसरे नक्सलियों ने उसका यौन शोषण किया। पिछले चार वर्षो के दौरान 100 से ज्यादा नक्सलियों ने समर्पण किया है। राज्य के 24 में से 18 जिले नक्सल प्रभावित हैं।
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