देश की दो तिहाई से अधिक आबादी को सस्ती दरों पर खाद्यान्न उपलव्ध कराने के प्रावधान वाला बहुचर्चित खाद्य सुरक्षा विधेयक बुधवार को लोकसभा पेश कर दिया गया। इस विधेयक को यूपीए का गेमचैंजर माना जा रहा है। कांग्रेस यह मानकर चल रही है कि इस बिल का आगामी लोकसभा चुनाव में वही असर दिखेगा, जो कि पिछले लोकसभा चुनाव में मनरेगा का रहा था। गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में मनरेगा ने कांग्रेस जीत दिलाने का काम किया था। यह विधेयक पिछले माह जारी किये गये खाद्य सुरक्षा अध्यादेश का स्थान लेगा।
केन्द्रीय खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री के वी थॉमस ने सदन में यह विधेयक पेश करते हुये कहा कि इस विधेयक से न तो संघीय ढांचे का और न ही राज्यों के अधिकारों का हनन होगा। विधेयक पेश करने का विरोध करते हुये अन्ना द्रमुक के एम थम्बीदुरै ने कहा कि इस विधेयक को लेकर काफी आशंकाएं हैं और अगर पारित होता है तो तमिलनाडु एवं उन राज्यों को नुकसान झेलना पड़ेंगा, जहां पहले ही खाद्य सुरक्षा की व्यवस्था है। इस विधेयक के कारण तमिलनाडु को अतिरिक्त खर्च करना होगा। उन्होंने इसे खाद्य सुरक्षा का नहीं, बल्कि खाद्य असुरक्षा का विधेयक बताते हुये कहा कि सरकार इस विधेयक पर पुनर्विचार करते हुये दूसरा विधेयक लाये।
द्रमुक के टी आर बालू ने कहा कि उनकी पार्टी इस विधेयक की धारा 3, 9 और 1० में संशोधन पेश करेगी। उन्होंने कहा कि यह विधेयक सार्वजनिक वितरण के लिये राज्यों द्वारा खाद्यान्नों की खरीद को प्रतिबंधित करता है, इसलिए उनकी पार्टी इस प्रावधान का विरोध करती हैं। इस पर थॉमस ने कहा कि यह विधेयक राज्यों के अधिकारों का हनन नहीं करता है और संघीय ढांचे के अनुकूल है।
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