जैसलमेर स्थापना दिवस : सरहद का स्वर्ग है जैसाण, पसरा है पर्यटन विकास की अनंत संभावनाओं भरा उन्मुक्त आकाश - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 18 अगस्त 2013

जैसलमेर स्थापना दिवस : सरहद का स्वर्ग है जैसाण, पसरा है पर्यटन विकास की अनंत संभावनाओं भरा उन्मुक्त आकाश

जैसलमेर सिर्फ एक विस्तृत परिक्षेत्र में पसरा रेतीला भू भाग ही नहीं है बल्कि दुनिया भर में कुदरत का एक ऎसा अनुपम उपहार है जो अपनी अपार खासियतों की वजह से लोकजीवन और संस्कृति के जाने कितने इन्द्रधनुषों का दिग्दर्शन कराता है। जीवन और परिवेश से जुड़े तमाम रंग-बिरंगे आयामों से भरा-पूरा जैसलमेर कहने को सरहदी हाशिये पर है लेकिन अपने भीतर समाहित अथाह ऊर्जाओं और रंगों-रसों के अनन्त फलकों तक फैले हुए व्यापक लोक रंगों की वजह से इसका कोई सानी नहीं है। जैसाण धरा अपने भीतर असंख्य खूबियों को लिये हुए है जिन्हें न वे जान सकते हैं जो वहाँ रहते आये हैं, और न वे ही जो वहाँ कभी नहीं गए। जैसलमेर को पूरा जान लेने का दावा वे भी नहीं कर सकते हैं जो दो-चार दिन वहाँ घूमे हों।

38 हजार वर्ग किलोमीटर से भी अधिक पसरे हुए रेतीले जैसलमेर जिले में अभी भी बहुत कुछ है जिसे जानना शेष है। सरस्वती नदी के पावन जल की वाष्प-फुहारों से नहाने वाले जैसलमेर जिले में लोक कला, संस्कृति और साहित्य के विद्वानों की जाने कितनी धाराएं-उपधाराएं आदि काल से चली आ रही हैं। यहाँ की संस्कृति, भाषा, बोली, साहित्य, रहन-सहन, लोक व्यवहार, परिवेशीय हलचलें, पर्व-उत्सव, मेले और परंपराएं...आदि सब कुछ इतना कि लगता है जैसे जनसंस्कृति का कोई महासागर यहाँ आदिकाल से हिलोरें ले रहा है। प्रायः हर क्षेत्र में यही स्थिति है कि लोग अपने इलाकों की खासियतों के बारे में अनभिज्ञ रहते हैं या अपने क्षेत्र की धरोहरों, व्यक्तित्वों और विलक्षण परंपराओं का सही-सही मूल्यांकन नहीं कर पाते हैं, न इन्हें कोई महत्त्व देते हैंं। हर किसी को बाहर का आदमी और बाहरी परिवेश, संसाधन आदि अच्छे और उम्दा लगते हैं। यही स्थिति जैसलमेर की है।

जैसलमेर में पर्यटन के नवीन क्षेत्रों की अपार संभावनाएं हैं मगर इस दिशा में स्थानीय लोगों में जागरुकता का अभाव और यथास्थितिवाद सबसे बड़ा कारण है। जैसलमेर में संस्कृति और साहित्य संरक्षण, पुरा धरोहरों के उपयुक्त रखरखाव एवं प्रदर्शन, सभी किस्मों के पर्यटन एवं दर्शनीय स्थलों पर प्रचार फोल्डर तथा पुस्तिकाओें के प्रकाशन, बाहर से आने वाले पर्यटकों के लिए हर प्रकार की मार्गदर्शन सुविधाओं की उपलब्धता, व्यवसायिक मनोवृत्ति छोड़कर आतिथ्य भावना के विस्तार एवं विकास से लेकर पर्यटन रूट बनाने, देखने लायक स्थलों की मौलिकता को बनाए रखते हुए इनका योजनाबद्ध रूप से आधुनिक पर्यटन धाराओं के अनुरूप विकास, सभी प्रकार के पर्यटन वाहनों एवं स्थलों पर कार्यरत गाइड्स के लिए ड्रैस कोड की अनिवार्यता, सभी स्थलों पर अवलोकन तथा कैमल सफारी आदि से संबंधित शुल्क का सुस्पष्ट निर्धारण आदि विषयों पर गंभीरता से चिंतन करना जरूरी है।

इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि पर्यटकों को किसी भी प्रकार से परेशान करने और व्यथित करने से जुड़ी गतिविधियों से जुड़े सभी प्रकार के लपकों एवं अन्य लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही सुनिश्चित की जाए।  क्योंकि विकृत एवं गलाकाट व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के कारण ही पर्यटन क्षेत्र बदनाम होता है और अन्ततोगत्वा कुछेक लोगों की हरकतों की वजह से पर्यटन पर घातक प्रभाव पड़ता है। जैसलमेर पर्यटन आधारित जिला है जहां पर्यटन की जितनी गतिविधियां बढ़ेंगी, उतना स्थानीय अर्थ व्यवस्था को मजबूती प्राप्त होगी। इन सभी के साथ ही यह भी जरूरी है कि जैसलमेर की लोक संस्कृति, साहित्य और परंपराओं, पुरास्थलों आदि को हल्के-फुल्के में न लिया जाकर विशेष पैकेज के तहत पर्यटन विकास को हाथ में लिया जाए।

पर्यटक स्वागत केन्द्र के लिए भरपूर स्टाफ की व्यवस्था हमेशा बनी रहनी चाहिए। स्थानीय जिला प्रशासन, होटल एवं रिसोर्ट उद्योग से लेकर सभी प्रकार के बाजारों, ट्रांसपोर्टेशन, रेल्वे आदि से जुड़े समस्त व्यवसायियों एवं कार्मिकों की कार्यशालाएं एवं प्रशिक्षण आयोजित कर जैसलमेर के योजनाबद्ध पर्यटन विकास को नए सिरे से प्रतिष्ठित किया जाना जरूरी है। राजस्थान का यह सरहदी इलाका लोक संगीत का वह गढ़ है जहाँ मांगणियारों के साथ ही विभिन्न समुदायों के कलाकारों की समृद्ध परंपरा है। इसे संरक्षित रखने और लोक संस्कृति की गंध को देश-विदेश तक पहुंचाने की रफ्तार और अधिक तेज करने के लिए यहाँ कला और संस्कृति प्रभाग का बहुत बड़ा मुख्यालय स्थापित किए जाने की सभी संभावनाएं हैंं।

यहाँ के कलाकार दुनिया में नाम कमा रहे हैं, खूब कलाकार ऎसे हैं जिन्हें वैश्विक मंच एवं माहौल दिलाया जा सकता है लेकिन इनके लिए स्थानीय स्तर पर ही प्रयास आरंभ होने चाहिएं। लोक वाद्यों एवं लोक संस्कृति के साथ ही संस्कृतिकर्मियाेंं, पुरातन लोक संगीत की परंपराओं के दस्तावेजीकरण के लिए बहुआयामी कार्यों से क्षेत्र की दूरदर्शी एवं दीर्घकालीन सेवाओं को संबल प्राप्त हो सकता है। जैसलमेर में आज भी लोक साहित्य, संगीत और कलाओं, पुरा वैभव तथा लोक जीवन से संबंधित कई स्थल एवं परंपराएं विद्यमान हैं जिनकी जानकारी स्थानीय लोगों को भी नहीं हो पायी है। इस दृष्टि से अभी जैसलमेर का 20 फीसदी खजाना ही बाहर आ पाया है।

अभी और अधिक शोध अध्ययन, दस्तावेजीकरण एवं सुव्यस्थित कार्ययोजना को अंगीकार करने की जरूरत है। इस दिशा में अनंत संभावनाएं हैं जिन्हें साकार करते हुए भारतवर्ष ही नहीं बल्कि विश्व धरातल पर जैसलमेर को अग्रणी पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित किया जा सकता है। जैसलमेर की संस्कृति और साहित्य तथा बहुविध प्राच्य परंपराओं के संरक्षण में जुटे सभी व्यक्तित्वों और संस्थाओं को सरकार के स्तर पर भी सभी प्रकार की सहायता उपलब्ध कराना जरूरी हो चला है। इन लोगों की जैसलमेर में पर्यटन विकास को लेकर किसी न किसी रूप में बरसों से अहम् भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। साथ ही जैसलमेर के मूल निवासियों को भी यह संकल्प लेने की आवश्यकता है कि जो लोग जैसलमेर की किसी न किसी रूप में सेवाएं कर रहे हैं, उनके प्रति आदर और सम्मान के साथ ही उन्हें हरसंभव सम्बल प्रदान करने में पीछे नहीं रहें।

इस दिशा में जैसलमेर यूआईटी अध्यक्ष श्री उम्मेदसिंह तँवर के प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए जिन्होंने अच्छी पहल करते हुए सामाजिक एवं क्षेत्रीय सरोकारों को संबल प्रदान करने की पहल की है। यह प्रयास जारी रहे तो आने वाला समय सोनार से लेकर जैसलमेर की वीथियों तक में स्वर्ण की आभा प्रतिबिम्बित होने लगेगी। इन प्रयासों में ज्यादा से ज्यादा लोक भागीदारी जरूरी है। (लेखक ढाई वर्ष तक जैसलमेर में जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी के पद पर रहे हैं।)






---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepkaaacharya@gmail.com

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