कश्मीर अपनी अनुपम सुंदरता और संस्कृति के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। मुगल बादशाह जहांगीर ने पहली नजर में ही इसकी खूबसूरती को देखते हुए इसे धरती के स्वर्ग की संज्ञा दी थी। इसी से करीब 200 किमी दूर बर्फ की सफेद चादर ओढ़े पहाडि़यों से घिरा है कारगिल जिला। जो विकास के नित नए रास्तों पर आगे बढ़ता हुआ अपनी एक अलग पहचान बना रहा है। देश के अन्य पिछड़े जिलों की तरह कारगिल भी कभी गुमनामी के अंधेरों में खोया हुआ था। लेकिन आज परिस्थिती पूरी तरह से बदल चुकी है। सरकार के प्रयासों से विकास ने यहां दस्तक दी तो स्थानीय निवासियों ने भी उसे अपनाने में ज़रा भी देरी नहीं की। पिछड़ेपन के दाग को पीछे छोड़ते हुए कारगिल ने तरक्की का दामन थामकर आगे बढ़ना शुरू कर दिया है। बात चाहे शिक्षा, स्वास्थ्य या रोजगार जैसी बुनियादी विकास की हो या फिर महिलाओं से जुड़े विषयों की चर्चा की जाए। सभी क्षेत्रों में समान रूप से कारगिल विकास का पैमाना तय कर रहा है। मुस्लिम बहुल इस जिला के अधिकतर गांव अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो चुके हैं और प्रगति की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।
वर्ष के आधे से अधिक महिने पूरी तरह से बर्फ से ढ़का और जमीनी रास्तों से दुनिया से कटा रहने वाला कारगिल 1999 में उस वक्त दुनिया की नजरों में आया जब पड़ौसी देश पाकिस्तान ने गलत नीयत से यहां धावा बोला था। लेकिन भारतीय फौज ने पूरी बहादूरी के साथ 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तान को धूल चटाते हुए उसे हारकर पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इस युद्ध में स्थानीय कारगिल निवासियों ने भी भारतीय फौज का बढ़ चढ़ कर साथ दिया था और सैनिकों के साथ साथ कई नागरिक भी मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे। आज कारगिल केवल जंग के लिए ही नहीं बल्कि यहां उत्पादित होने वाले खुबानी (एक प्रकार का फल जिसे अंग्रेजी में एप्रिकाॅट कहते हैं) के लिए भी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता है। कारगिल से 68 किमी दूर एक छोटा सा गांव तईसुरू विकास की एक नई तस्वीर से रू-ब-रू कराता है। यह कारगिल का एक ऐसा गांव है जो महिला स्वास्थ्य के क्षेत्र में तेजी से अपनी मज़बूत पहचान बनाता जा रहा है। ज्यादा अरसा नहीं गुजरा है, महज़ एक दशक पूर्व तक तईसुरू में विकास नाममात्र की थी। महिलाओं के बेहतर स्वास्थ्य के लिए विशेष व्यवस्था नहीं थी। सबसे अधिक कठिनाई गर्भवती महिलाओं को होती थी। जिनका कोई विशेष ध्यान नहीं रखा जाता था। गर्भकाल के दौरान उन्हें उचित पोषण भी नहीं मिल पाता था। जिससे माँ और बच्चा दोनों ही कमज़ोर होता था। परिणामस्वरूप इसका नकारात्मक प्रभाव जन्म लेने वाले बच्चे पर होता था। जिनका शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता था। प्रसव के दौरान अस्पताल जाने के लिए भी विषशेष साधन नहीं होने के कारण कई बार जच्चा और बच्चा को नुकसान उठाना पडत़ा था। स्वास्थ्य संबंधी जानकारी नहीं होने के कारण घर पर ही अप्रशिक्षित दाई के हाथों प्रसव के कार्य अंजाम दिये जाते थे। जिसमें अधिकतर मामलों में ऐसा प्रसव माँ और बच्चा दोनों के लिए ही जानलेवा साबित होता था।
करीब 130 से अधिक गांवों पर आधारित कारगिल जिला में संभवतः तईसुरू एक ऐसा गांव है, जहा महिला स्वास्थ्य से संबंधित विषयों में तेजी से बदलाव नजर आया है। जिसका श्रेय स्थानीय प्रशासन को जाता है। जिसने इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है। इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मात्र 350 परिवार वाले तईसुरू में तीन आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं। जहां न केवल गर्भवती महिलाओं और बच्चों के उचित पोषण का ध्यान रखा जाता है बल्कि किशोरियों के बेहतर स्वास्थ्य को बनाए रखने पर भी खास जोर दिया जाता है। 26 वर्षीय नरगिस बानो पिछले कई वर्षों से एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में तईसुरू की गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण के लिए काम कर रही है। नरगिस के अनुसार उनके केंद्र पर अधिकतर गर्भवती और दूध पिलाने वाली माताएं आती हैं। जिन्हें वह बेहतर स्वास्थ्य के लिए समय समय पर उचित सलाह देती हैं। वह केंद्र पर आने वाली महिलाओं को सरकार द्वारा दी जाने वाली सहायता संबंधी योजनाओं से भी अवगत कराती हैं। नरगिस बताती हैं कि यहां अस्पताल जाकर प्रसव कराने वाली महिलाओं को सरकार की ओर से 1400 रूपये प्रोत्साहन राशि मिलती है जबकि घर में यही कार्य अंजाम देने वाली गर्भवती माताओं को 500 रूपये दिए जाते हैं। हालांकि आंगनबाड़ी कार्यकताओं को दी जाने वाली सुविधाओं को लेकर नरगिस को थोड़ी शिकायत भी है। वह कहती हैं कि आंगनबाड़ी में बच्चों के खाने के लिए न तो कोई बर्तन है और न ही बैठने के लिए दरी उपलब्ध कराई जाती है। यह सारी चीजें वह अपने घर से लाती हैं जिसका उन्हें कोई मुआवजा भी नहीं मिलता है।
देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों में महिला स्वास्थ्य में चमात्कारिक सुधार लाने वाली आशा कार्यकर्ता का रोल तईसुरू में भी अतुल्नीय है। स्थानीय निवासियों के अनुसार यहां की आशा कार्यकर्ता काफी सजग हैं और बच्चों व महिलाओं के स्वास्थ्य विशेषकर गर्भवती महिला के प्रसव को अस्पताल में करवाने के प्रति परिवार वालों को जागरूक करती रहती हैं। समय पर माँ और बच्चे को टीके लगवाने का जिम्मा वह खुद उठाती हैं। इसके अतिरिक्त गाँव में बुखार और दस्त जैसी छोटी बीमारियों की दवाएं भी उनके पास उपलब्ध रहती है। जिसका पूरा लाभ ग्रामीण जनता उठाती है। तईसुरू में सरकार की ओर से एक स्वास्थ्य केंद्र की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है जो 24 घंटे कार्य करता है। यहां सभी के लिए दवाईयां उपलब्ध रहती हैं। इस केंद्र की स्थापना के बाद से तईसुरू में स्वास्थ्य की दषा में अप्रत्याशित सुधार दर्ज किया गया है। हालांकि दिसबंर-जनवरी में जब बर्फबारी के कारण कारगिल का संपर्क पूरी दुनिया से कट जाता है तो इसका प्रभाव तईसुरू के स्वास्थ्य केंद्र पर भी पड़ता है। इस मौसम में यहां दवाईयों की काफी कमी हो जाती है। इस संबंध में स्थानीय पार्षद सयैद अब्बास रिजवी कहते हैं कि खराब मौसम में भी दवाईयों की कमी नहीं होने देने के लिए उच्च स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। बहरहाल पहले की अपेक्षा न केवल तईसुरू बल्कि पूरे कारगिल में विकास धीरे धीरे अपना कदम बढ़ा रहा है। स्थानीय जनता समझ चुकी है कि यदि सरकार की योजनाओं को जमीन पर उतारना है तो सबसे पहले स्वंय उन्हें जागरूक होना पड़ेगा। जिसका अक्स नजर भी आने लगा है।
शमीमा बानो
(चरखा फीचर्स)
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