उच्चतम न्यायालय ने आज यह व्यवस्था दी कि नागरिकों को आवश्यक सेवाएं उपलव्ध कराने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है। न्यायमूर्ति बी एस चौहान और न्यायमूर्ति एस ए बोव्डे की खंडपीठ ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें नागरिकों को आवश्यक सेवाएं उपलव्ध कराने से पहले आधार कार्ड प्रस्तुत करने के लिए जोर नहीं दे सकतीं। केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने विवाह पंजीकरण, वेतन भुगतान और भविष्य निधि जैसी विभिन्न सार्वजनिक सेवाओं के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य करने पर जोर दिया था, लेकिन न्यायालय ने इसे सिरे से खारिज कर दिया।
न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को अवैधरूप से प्रवास कर रहेलोगों को आधार कार्ड जारी नहीं करने का भी निर्देश दिया। न्यायालय ने केंद्र सरकार की इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया कि आधार कार्ड परियोजना पर 50 हजार करोड रुपये खर्च किये जा चुके हैं। अदालत ने कहा कि महत्वपूर्ण सेवाओं के लिए आधार कार्ड प्रस्तुत करना जरूरी नहीं है। खंडपीठ ने यह व्यवस्था कर्नाटक उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश के एस पुत्तास्वामी की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान दी। याचिकाकर्ता ने इस योजना के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की भी मांग की थी।
न्यायमूर्ति पुत्तास्वामी ने आधार कार्ड योजना की वैधता को भी चुनौती दी है। याचिकाकर्ता की दलील थी कि सरकार इस परियोजना को ऐच्छिक परियोजना करार दे रही है, लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं है। आधार कार्ड को विवाह पंजीकरण आदि के लिए अनिवार्य किया जा रहा है, जो उचित नहीं है। केंद्र सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में यह स्वीकार किया था कि आधार कार्ड परियोजना को ऐच्छिक परियोजना करार दिया गया था।
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