बिहार : किसान को किया खुश और बटाईदारों को किया नाखुश - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 21 सितंबर 2013

बिहार : किसान को किया खुश और बटाईदारों को किया नाखुश

  • खेतीहर भूमिहीन मनी,बटाईदारी और पट्टा पर खेत लेकर करते हैं  खेती
  • अब तो पट्टा पर खेत लेकर स्वयं सहायता समूह की महिलाएं भी  करती हैं सामूहिक खेती

bataidari
गया। सूबे के 33 जिले को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया गया है। इसमें मगध प्रक्षेत्र के अरवल जिले को छोड़कर जहानाबाद,गया,औरंगाबाद और नवादा शामिल है। सरकार ने किसानों को खुश करने के बारे में जिक्र कर दिये हैं। मगर बटाईदारों के बारे में जिक्र नहीं करने से सब के सब नाखुश  हो गये हैं। भूमिघारकों से खेतिहर भूमिहीन खेत लेकर तीन तरह से खेती करते हैं। प्रथम मनी, द्वितीय बटाईदारी पर और तृतीय पट्टा पर खेती करते हैं।

एक बार फिर बोतल से जिन्न निकलने को आतुर:
सत्तासीन होने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने  सूबे में भूमि सुधार आयोग गठित किये । आयोग के पूर्व अध्यक्ष सांसद डी.बंधोपाध्याय ने बाद में मुख्यमंत्री को काफी मेहनत करके अनुशंषा पेश की । खासकर अबूझ पहेली और पहचान का मोहताज बन गए बटाईदारों को पहचान और अधिकार देने की बात अनुशंषा में विस्तार से जिक्र की गयी है। इसको लेकर राजनीतिक हलकों में भूचाल आ जाने के बाद मुख्यमंत्री ने अनुशंषा को ही ठंढे बस्ते में डाल दिया है। एक बार फिर बोतल से जिन्न निकलने को आतुर है। जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य के 33 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर रखा है। अन्य पांच जिलों में सरकार की पैनी नजर है। सरकारी तयशुदा नीति के अनुसार खेत मालिकों यानी किसानों को ही मुआयजा और सुखाड़ के समय का लाभ मिल पाएगा। सवाल यह है कि जो मनी,बटाईदारी और पट्टा पर खेत लेकर किसानी कार्य करने के लिए रकम झोंके हैं उनको किस तरह से सरकार लाभ पहुंचा पाएगी या अन्य वर्षों की तरह फांकाकस्सी में ही रह जाएंगे?

वसूली वित्तीय वर्ष 2013-14 के लिए स्थगित:
जिलों में किसानों से सहकारिता ऋण, राजस्व लगान एवं सेस, पटवन शुल्क, विद्युत शुल्क जो सीधे कृषि से संबंधित हो, की वसूली वित्तीय वर्ष 2013-14 के लिए स्थगित रहेगी। प्रभावित जिलों में फसल को बचाने, वैकल्पिक कृषि कार्य की व्यवस्था करने, रोजगार के साधन उपलब्ध कराने, पशु संसाधनों का सही रख-रखाव करने, इत्यादि, के लिए आवश्यकतानुसार साहाय्य कार्य चलाने, आदि की व्यवस्था की जाएगी ।

कृषि प्रक्षेत्र में डीजल, बीज आदि पर सब्सिडी की व्यवस्थाः
bataidari farmer drought
कृषि विभाग द्वारा आवश्यकतानुसार फसल की सुरक्षा एवं बचाव के लिए कृषि इनपुट के रूप में डीजल, बीज आदि पर सब्सिडी की व्यवस्था। वैकल्पिक फसल योजना तैयार कर उसके सफल क्रियान्वयन हेतु अपेक्षित कार्रवाई की जाएगी। सतही जलस्त्रोतों के सूखने के कारण कृत्रिम माध्यमों से इसकी वैकल्पिक व्यवस्था  आवश्यक है। इसके लिए जल के अन्य स्रोतों को सुदृढ़ करना होगा। इस हेतु जल संसाधन एवं लघु जल संसाधन विभाग आकस्मिक योजना तैयार कर इसका कार्यान्वयन करेंगे। खरीफ फसल के लिए डीजल अनुदान के लिए स्वीकृति दी गई है। उपरोक्त व्यवस्था आवश्यकता होने पर रबी फसल के लिए भी की जाएगी। सहकारी तथा राष्ट्रीयकृत बैंकों के माध्यम से कृषि ऋण उपलब्ध कराने हेतु अपेक्षित कार्रवाई की जाएगी। किसानों को फसल बीमा का लाभ दिलवाने हेतु अपेक्षित कार्रवाई की जाएगी।

जिनके पास खेती योग्य जमीन हैं वे खुद ही से खेती नहीं  करते हैं:
आज भी हम लोग भारतीय कृषि पर निर्भर हैं। वहीं आज भी भारतीय कृषि भगवान भरोसे ही है। भगवान के द्वारा समयानुसार बरसा नहीं बरसाया गया तो सुखाड़ की स्थिति बन जाती है जो बाद में अकाल में तब्दील हो जाती है। जिनके पास खेती योग्य जमीन हैं वे खुद ही से खेती नहीं करते हैं। तब जिनके पास खेती योग्य जमीन नहीं है। जिनके पास जमीन है। उनसे 3 तरह से खेत लेकर खेती किया जा सकता है। 

प्रथम मनी पर खेती लेते हैं:
प्रथम मनी पर खेती करते हैं। बताते हैं कि  खेत के मालिक को एक बीघा जमीन के बदले में 10 मन चावल देना पड़ता है। यह एक साल के लिए होता है। एक बीघा खेत में 30 मन धान हो जाता है। चावल तैयार करके 20 मन बचता है। इसमें 10 मन खेत मालिक को दिया जाता है। 10 मन का फायदा होता है। इसमें खेत मालिक कुछ भी सुविधा नहीं देते हैं। मनी पर खेती करने वाले 2 फसल पैदा करते हैं। एक बार धान हो जाने के बाद रबी अथवा गेहूं पैदा करते हैं। इसमें कोई मायने नहीं रखता कि आपको फसल हुई है अथवा फसल नहीं हुई। हो अथवा नहीं  खेती करने के लिए देते हैं।

द्वितीय बटाईदारी पर खेतीः
 खेती करने वाले श्रीकृष्णा साव द्वितीय बटाईदारी पर खेती के बारे में बताते हैं कि इसमें खेत मालिक बीज, पानी और खाद में आधा-आधा सहायक होता है। घास से लेकर पुआल और फसल में फिफ्टी-फिफ्टी की जाती है। 

तृतीय पट्टा पर खेतीः
तृतीय पट्टा पर खेती जमीन लेकर खेती की जाती है। अभी 6 से 8 हजार रूपए प्रति बीघा जमीन पट्टा पर ली जाती है। इसमें भी खेत के मालिक कुछ भी सहायता नहीं करते हैं। इन दिनों भोजपुर और पटना में स्वयं सहायता समूह की महिलाएं भी पट्टा पर खेत लेकर सामूहिक खेती करनी लगी हैं।

क्या करना चाहिएः
तीन तरह की खेती करने वालों को भी सुखाड़ का डंक झेलना पड़ा है। इस ओर भी सरकार ध्यान दें। सामाजिक कार्यनेत्री मंजू डुंगडुंग का कहना है कि सरकार मानवता को ख्याल में रखकर कदम उठाएं। इस समय बहुत कम ही किसान खुद से खेती करते हैं। खेत को दूसरों को देते हैं। गरीब लोग खुद ही तन,धन,और मन लगाकर खेती करते हैं। मगर सरकारी नीति के दांव में फंसकर उनको किसी तरह का मुआवजा नहीं मिल पाता है। हुजूर, इस बार जरूर ध्यान देंगे।



(आलोक कुमार)
पटना 

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