विशेष : परिजनों को झांसे में रखकर पांच साल के अंदर पांच सौ बच्चों को कर दिया व्यापार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

विशेष : परिजनों को झांसे में रखकर पांच साल के अंदर पांच सौ बच्चों को कर दिया व्यापार

  • मनाली में होटलों में काम करने वालों की जानकारी अभिभावकों को नहीं
  • महादलित मुसहर समुदाय के लोगों ने प्रशासन के समक्ष जाकर किया बच्चों को खोज निकालने का आग्रह


बोधगया। ‘हमर बऊवा जरूर अतइ....अंखवा फड़कत हई...जब जब हम अपन बऊवा लागी सोचत हई हमर अंखवा फड़कत हई...हम कइसे माल लेई कि हमर बचवा न अतई....। यह ममतामयी मां का अटूट विश्वास है जो पिछले दो दशक से सलीब पर लटका यकीन को मान रही हैं। रोज सुबह उठते ही सबसे पहले वे घंटे भर घर की चौखट पर बैठ कर इस यकीन के साथ रास्ता देखती है कि उसका लाल आज जरूर आ जाएगा, लेकिन घंटा क्या कई साल बीतते जा रहे हैं। आंखों का फड़कना भी जारी है। बावजूद नहीं आ रहा बेटा। ये दास्तान सिर्फ एक मां का नहीं, बल्कि कई परिवारों की है, जिनके छोटे-छोटे बच्चों को रोजगार देने के नाम पर अन्यत्र ले जाया गया, लेकिन उनका अबतक कोई अता-पता नहीं, क्योंकि वे बच्चे बेच दिये गए हैं। वे अनैतिक मानव व्यापार (ट्रैफिकिंग) के शिकार हो गए हैं।

गया जिले की बोधगया पंचायत के मस्तपुरा,धनावां,परहंडा,मोरहर,हरिहरपुर और बकरौर गांवों के सैकड़ों बच्चों को काम दिलाने के नाम पर स्थानीय दलाल कुल्लू, मनाली और हैदराबाद जैसी जगहों पर ले गया, लेकिन रोजगार के लिए अपने बच्चों को बाहर भेजना उन परिवारों के लिए दर्द का सवाल बन चुका है। वर्षों तक परिजन इस इंतजार में रहे कि रोजगार के लिए बाहर गये उनके बच्चे अपनी मेहनत की कमाई घर पर जरूर भेजेंगे, जिससे उन्हें पेट भर भोजन मिलेगा। बीमारी का इलाज होगा। यहां तक कि मरने के बाद कफन खरीदने के लिए कमाने गए बच्चे को संदेश भेजने की कोशिश की गई तो वह नाम और पता भी फर्जी निकला जो परिजनों को दिये गए थे। तब परिजनों का विश्वास आंसुओं की धार धूमिल हो गया और वे समझ गए कि उनके बच्चे मानव व्यापार के शिकार हो गए हैं। अंततः पीड़ित परिवारों ने पुलिस प्रशासन तक अपनी फरियाद पहुंचाते हुए कहा कि उनके बच्चों को खोजने में पुलिस मदद करे। ऐसे ही उन्नीस परिवारों के सदस्यों ने लिखित शिकायत कमजोर वर्ग के आई जी से की है। वे सभी बच्चे अति पिछड़े और महादलित परिवार के हैं। उन परिवारों का मुख्य धंधा मजदूरी है।

 पुलिस प्रशासन तक अपनी बात पहुंचाते हुए धनावां प्रखंड के बलजोरी बिगहा की आभावती देवी ने कहा है कि उसके बेटे को कमाने के नाम पर मनाली ले जाया गया। पांच वर्ष बीत गए, न तो उसके पास एक पैसा आया और न ही बेटा लौटा। अतिया गांव की कमनी देवी की दास्तान अत्यंत मार्मिक है। बीमार पति के इलाज के लिए पैसे नहीं थे तब उसके दस वर्षीय बेटे गुड्डू ने कहा कि वह पापा के इलाज के लिए पैसे कमाने बाहर जाएगा। वह अमलेश मांझी के साथ मनाली गया। आठ सौ रूपए देने की बात तय हुई। तीन साल बीत गए। बच्चे की आज तक कोई खबर नहीं मिल रही है। इस बीच आभावती देवी के पति इलाज के अभाव में गुजर गए। परहंडा गांव के सुरेन्द्र मांझी के आठ वर्ष के बेटे अनुज कुमार को महक मांझी एवं शंभु पासवान पांच वर्ष पूर्व काम दिलाने का वादा कर मनाली ले गए। बच्चे को ले जाते वक्त परिजनों को विश्वास में लेने के लिए पांच सौ रूपए दिये गए। उसके बाद अब तक न तो बच्चे से कोई बातचीत हुई न ही पैसा आया। परहंडा गांव के ही तिलक मांझी के नौ वर्षीय बेटे जीतू कुमार को पिपरपाती गांव का संयोगी मांझी आठ वर्ष पूर्व अपने साथ ले गया। तीन सौ रूपए नकद देकर बच्चे को ले गया था लेकिन आज तक बच्चे का कोई पता नहीं है। परिजनों ने बताया कि बच्चों को अपने साथ ले जाने वाले दलाल कोई अपरिचित नहीं, बल्कि उनके संबंधी या रिश्तेदार ही होते हैं। इसलिए विश्वास कर माता-पिता अपने बच्चों को कमाने के लिए के लिए भेज देते हैं।

 पड़रिया पंचायत के सत्येन्द्र कुमार, कौल्हौरा कॉलोनी के तिल्लू मांझी, पड़रिया छोटकी के राजा कुमार और राजेश कुमार, हरिहरपुर के संजीवन कुमार,जानपुर के करन कुमार,अतिया के उपेन्द्र मांझी, रति बिगहा गांव के दिनेश मांझी, अतिया गांव के गुड्डू मांझी, परहंडा के अनुज कुमार और जीतू कुमार, धनंावां गांव के अक्षय कुमार, सिकंदर और प्रदीप कुमार, मस्तपुरा के सिंटू कुमार, सुरेन्द्र कुमार,रमेश कुमार, भईया बिगहा गांव के धर्मेन्द्र कुमार के परिजनों ने अपने-अपने बच्चों को सही सलामत घर वापसी के लिए प्रशासन से सहयोग मांगा है। ट्रैफिकिंग के मुद्दे पर काम करने वाली संस्था‘लक्ष्य’ द्वारा कराये गए सर्वेक्षण से यह बात सामने आयी कि उन इलाके में अब तक लगभग पांच सौ बच्चे पिछले पांच वर्षों के दौरान कुल्लू, मनाली ले जाए गए हैं। उन बच्चों को घरेलू काम एवं रेस्टोरेंट में काम कराने के नाम पर ले जाया गया है। इतना ही नहीं, बच्चों के माता-पिता से सादे कागज पर अंगूठा लगवाया जाता है। यह जानने के बाद संस्था ने बच्चों के माता-पिता से संपर्क कर मदद की पेशकश की। संस्था के निदेशक मनोज कुमार के माध्यम से उन बच्चों के माता-पिता ने अपनी बात प्रशासन तक पहुंचाई है। इतना ही नहीं, माता-पिता अपने बच्चों को दलालों के झांसे में आकर कमाने के लिए अन्यत्र न भेजें। इसके लिए संस्था द्वारा नुक्कड़ नाटकों के जरिये लोगों को जागरूक करने का काम भी किया जा रहा है।




(आलोक कुमार)
पटना 

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