मंगलमूत्रि्त भगवान गणेश को समर्पित गणेशोत्सव वह बहुआयामी उत्सव है जो गणेश के नाम एवं गुण स्मरण से लेकर उनकी पूजा-अर्चना और आराधना-अनुष्ठान के कई प्रयोगों और उत्सवों का उल्लास बिखेरने वाला है।
सर्वप्रथम पूज्य देव के रूप में गणेश पूरे ब्रह्माण्ड में विख्यात हैं जिनकी सबसे पहले पूजा और स्मरण किया जाना कार्यसिद्धि का द्योतक है। गणेश का भक्त होने का मतलब है ऎसा व्यक्ति जो भगवान गणेश के गुणों, विशेषताओं और उनके दिव्य कर्मयोग, ज्ञानयोग एवं भक्तियोग को आत्मसात करे और अपने, घर-परिवार के तथा समुदाय एवं क्षेत्र के तमाम प्रकार के विघ्नों के शमन और विघ्नकत्र्ताओं के समूल नाश के लिए सदैव तत्पर हो।
मंगलमूत्रि्त भगवान श्रीगणेश लोकजीवन और परिवेश की समस्त प्रकार की गतिविधियों के सुचारू संचालन एवं त्वरित समाधान से लेकर जीवन में मुदिता पाने के मैनेजमेंट से भरे-पूरे हैं। गणेश की विलक्षण बुद्धि तथा प्रबन्धन के सूत्र हम सभी के लिए मार्गदर्शक होने के साथ ही विघ्न-बाधाओं से रहित मौज-मस्ती भरी जिन्दगी के आदर्श मार्ग हैं जिन्हें अपनाकर निर्बाध और आनंदपूर्ण जिन्दगी को जिया जा सकता है।
गणेशजी की शारीरिक आकृति और सँरचना जीवन के कई यथार्थ बिंबों से हमारा साक्षात कराती है और इसके संकेताें को हम आत्मसात कर लें तो जीवन का कोई सा क्षेत्र हो, हम पिछड़ नहीं सकते बल्कि आशातीत तरक्की पाने के सारे रास्ते हमेशा-हमेशा के लिए खुले रहते हैं।
गणेशजी व्यक्तित्व में भारीपन लाने, सूक्ष्म दृष्टि, बड़ी-बड़ी बातों को अपने भीतर पचा लेने, सभी की भरपूर सुनने, मस्तिष्क का भरपूर उपयोग करने, पद-अहंकार और कुर्सी की असाध्य बीमारियों से मुक्त रहने, माता-पिता की सेवाभक्ति के प्रति समर्पित होने, दूर तक की बात को सूँघ लेने, यथा आवश्यकता दक्षिण और वाम मार्गीय साधनाओं का उपयोग, शत्रुओं को बौद्धिक बल से परास्त करने, अहंकार से भरे लोगों को गर्व दमन करने से लेकर उन सभी पहलुओं में सिद्ध प्रेरक हैं जो एक आम से लेकर खास आदमी के जीवन में आते हैं।
भगवान गणेश की मूत्रि्तयों की पूजा एवं स्थापना, लाउडस्पीकराें से दिन-रात गणेश भक्ति के भजनों और स्तुतियों का तेज आवाज में प्रसारण, मण्डपों व आयोजनों के नाम पर आम रास्तों पर कब्जा, गणेशोत्सव के नाम पर चंदा वसूली, शोरगुल करते हुए लोक शांति को भंग करते रहना और गणेशोत्सव तथा गणेशजी के नाम पर धींगामस्ती का माहौल बनाए रखना आदि सब कुछ ऎसे काम हैं जो विघ्न की श्रेणी में आते हैं। हमें अपने मुँह से गणेश वंदना या भजन गाने में शर्म आती है और कैसेट्स चलाते रहते है।, ये कहाँ की भक्ति है?
हम भी इन विघ्नों को पैदा करने और बनाए रखते हुए औरों को परेशान करने लगें, तो हम काहे के गणेश भक्त हुए। दुनिया के तमाम विघ्नों और आम आदमी की सभी प्रकार की बाधाओं का निवारण करने वाले भगवान गणपति के भक्त होने पर हमारा कत्र्तव्य है कि हमारी किसी भी प्रकार की गतिविधि से औरों को तनिक भी कष्ट नहीं पहुँचे। गणेशोत्सव की सार्थकता इसी में है कि हम गणेशभक्ति के वास्तविक मर्म को समझें और ऎसे कर्म करें जिनसे मंगलमूत्रि्त भगवान गजानन हम पर प्रसन्न होकर वरदान-आशीर्वाद दें।
आजकल तो गणेशोत्सव के नाम पर इतने तेज माईक बजते हैं कि खुद भगवान गणेश भी कानफोडू आवाज से तंग आ गए हैं। आराधना और अनुष्ठान किसी को दिखाने की वस्तु नहीं हैं बल्कि धीर-गंभीरता और आत्मीय शांति के साथ करने चाहिएं और हमारा प्रत्येक कर्म ऎसा हो कि हमारे कारण किसी को तकलीफ न हो। न रास्ते रुकें, न लोगों की दिनचर्या में बाधाएं आएं।
लोक जीवन और परिवेश के समस्त प्रकार के विघ्नों और बाधाओं के शमन में हमारी ताकत लगनी चाहिए। आज हमारी राष्ट्रीय अस्मिता सुरक्षित नहीं है, भीतरी और बाहरी शत्रुओं से भारतमाता त्रस्त है, राष्ट्रीय चरित्र स्वाहा होता जा रहा है, सभी प्रकार के लोग अपनी मर्यादाओं को भूलते जा रहे हैं और अमर्यादित आचरण करने लगे हैं।
आज हमारे सामने असुरों की नई प्रजाति पैदा हो गई है जो घोटालों से लेकर भ्रष्टाचार, अनाचार, व्यभिचार, रिश्वतखोरी, कमीशनखोरी से लेकर वह सब कुछ कर रही है जिससे देश की जड़ें कमजोर हो चुकी हैं, पड़ोसी मुल्क हमारी जमीन मेें घुसते बढ़ते जा रहे हैं, आतंकवादियों के रूप में राक्षसों को भेज रहे हैं, हमारे अपने कहे जाने वाले लोग देश को भुलाकर अपने उल्लू सीधे कर रहे हैं।
इन सभी हालातों में गणेशजी अपने भक्तों की निर्णायक भूमिका चाहते हैं। गणेश भक्ति के नाम पर उछाले मार शोरगुल में रमे हुए हम सभी गणेश भक्तों का फर्ज है कि गणेश आराधना से शक्ति प्राप्त कर सम सामयिक असुरों से देश को मुक्त कराएं।
गणेशचतुर्थी पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं.....
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें