पूर्ण अनुकूलताएं कभी नहीं आती, शुरूआत आज से करें - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 24 सितंबर 2013

पूर्ण अनुकूलताएं कभी नहीं आती, शुरूआत आज से करें

आने वाला कल अनिश्चयपूर्ण होता है। उसके बारे में कभी नहीं कहा जा सकता कि वह किसका होगा। कल कुछ भी हो सकता है। अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है और कुछ नहीं भी हो सकता है। लेकिन जो होने वाला है उसकी न भविष्यवाणी की जा सकती है, न उसके लिए पूर्व प्रबन्ध। फिर हर आने वाला कल हमारा या उनका ही होगा, कोई इस बारे में कुछ नहीं कह सकता।

हम आज के कत्र्तव्य कर्म और मन में सोचेे हुए कामों, कल्पनाओं को पूरा नहीं कर पा रहे हैं और कल के भरोसे सपनों को संजो कर बैठे हैं। ऎसे में हमारी कल्पनाएं और स्वप्न धरातल पर नहीं आकर सिर्फ ख्वाब ही बनकर रह जाते हैं जो सिर्फ सोचने और टाईमपास करने भर के लिए ही उपयोगी रह जाते हैं।

निश्चय है वह आज के लिए होता है, हमारे जो भी कर्म आकार पाते हैं वे आज के लिए आकार पाते हैं। भविष्य के लिए हम प्लानिंग जरूर कर सकते हैं लेकिन यह कभी जरूरी नहीं होता कि जो योजना हम आज बना रहे हैं वह कल सफलीभूत हो ही जाएगी। इस दृष्टि से लक्ष्यों को सामने रखकर योजनाओं का निर्माण किया जा सकता है और ऎसा होना भी चाहिए। लेकिन आज हमारे पास इनके क्रियान्वयन और सूत्रपात का भरपूर मौका होने के बावजूद कल पर छोड़ना और आज को व्यर्थ में गँवा देना औचित्यहीन है।

जो लोग आज फुरसत में होते हुए अपने कामों और विचारों को कल पर टालते हैं उनका कल कभी नहीं आता। हममें से बहुत से लोग ऎसे हैं जो बरसों से सोचते और योजनाएं बनाते आ रहे हैं कि कल करेंगे या कल से शुरूआत करेंगे लेकिन बरसों बाद भी वह कल आज तक नहीं आया है। इस बीच हमारे कई संगी साथी और बुजुर्ग अब बीते कल की बातें और इतिहास हो चुके हैं जिन्होंने कल के भरोसे चलते हुए पूरी जिन्दगी गुजार दी और अचानक वहाँ चले गए, जहाँ से आज तक कोई लौट कर वापस नहीं आ सका है।

जिन कामों को पूर्णता देनी होती है उन कामों को आज से ही शुरू करने की आदत डाले बगैर उनमें सफलता हासिल नहीं की जा सकती। ऎसे काम, विचार और कल्पनाएं मन-मस्तिष्क में ही रह जाती हैं और बिना आकार पाए तब तक पड़ी रहती हैं जब तक कि हम खा़क़ न हो जाएं। बात चाहे किसी भी विचार को मूर्त रूप देने की हो या किसी काम की, जो करना है उसकी शुरूआत आज से ही करें।

जिस काम की नींव में आज शब्द का संपुट लग जाता है वह अपने आप पूर्ण होता चला जाता है और उसके लिए कल की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती बल्कि आने वाला कल उस कर्म के प्रतिफल की प्रतीक्षा करने लगता है। अधिकांश लोग हममें से ऎसे भी हैं जिनकी इच्छा तो बहुत होती है कि कर्मयेाग को आदर्श बनाएं, श्रेष्ठ व्यक्तित्व के रूप में पहचान बनाएं, भगवान की खूब साधना करें, मगर ये  सब तब, जबकि सारी स्थितियां अनुकूल हो जाएं। घर-गृहस्थी के काम निपट जाएं और सभी सांसारिक कामों से फुरसत पा जाएं तब।

यह शाश्वत सत्य है कि किसी भी इंसान के जीवन में सभी अनुकूलताएं कभी नहीं होती। इसलिए जो लोग अनुकूलताओं के आने की प्रतीक्षा करते हैं उनके लिए सर्वथा अनुकूल स्थिति कभी नहीं आती, ऊपर जाने का समय जरूर एक दिन अचानक आ धमकता है। जो लोग इस भ्रम में जी रहे हैं कि बुढ़ापे में साधना करेंगे, वे निश्चय ही ईश्वरीय घेरे से बाहर निकल चुके हैं क्योंकि ऎसे लोगों को कभी समय नहीं मिलने वाला।

बुढ़ापे में शरीर, मन, मस्तिष्क और वाणी की स्थिति साधना लायक नहीं होती। न ढंग से ध्यान कर पाते हैं, न पोपले मुंह से मंत्रों या ऋचाओं का शुद्ध उच्चारण हो सकता है।  न पाठ हो सकता है, न बैठक।  इसलिए जो लोग साधना के इच्छुक हैं उन्हें भी आज और इसी क्षण से साधना का आरंभ कर देना चाहिए। साधना को कल या बुढ़ापे की फुरसत के लिए टालना प्रमाद है और यह आसुरी भाव के लक्षण हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि जातक के भाग्य में साधना से तरक्की नहीं लिखी है और प्रकृति पर विजय या ईश्वर से साक्षात्कार की यात्रा के लायक पुण्य संचय नहीं हुए हैं।

हमारे बीच से खूब सारे लोग इसी कल के फेर में बिना कुछ किए धराए सिर्फ सोचते ही रह गए और एक दिन काल के मुंह में समा गए। इनमें कई बड़ी-बड़ी स्वनामधन्य हस्तियां भी थीं जिनके गुणगान करते हुए आज भी हम उनके स्वप्नों को पूरे करने का प्रण लेने में गर्व महसूस करते हैं। जहाँ आज है वहाँ अजर-अमर कीर्ति है, कल तो सिर्फ काल ही काल है।





---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

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