संतुष्ट : सततं योगी यतात्मा दृढ़निश्चय : ।
मध्य र्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्त स मे प्रिय :।।
जो योगी निरंतर संतुष्ट है। मन इंद्रियों सहित शरीर को वश में किए हुए है। वह मुझ में दृढ़ निश्चय वाला है। वह मुझ में अर्पण किए हुए मन-बुद्धि वाला मेरा भक्त मुझको अति प्रिय है। यही फलसफा है आधुनिक हिंदी धर्म-गुरुओं का। संतों के बदलते सिद्धावस्था। शास्त्राध्ययन। सर्प विषैले सरीके चलन। वेश्यागमन की चाह। सेक्स के प्रति प्रगतिशीलता, उन्माद ने भारत में रामराज की परिकल्पना से बाहर निकलकर भोगवादी संस्कृति की जकडऩ उसकी लसलसाहट में खुद को इतना लपेट, बहका दिया है कि तमाम बंदिश, मर्यादा आज त्रिया चरित्र की चमड़ी से बाहर नहीं निकल पा रही। धर्म, आस्था के बीच आज शारीरिक आयाम बाबा से आशीर्वाद लेने आई नाबालिग को भभूत के बहाने संस्कारित करने की बजाए उसकी देह खुजाने की कहानी कहती ज्यादा दिखती है। जिसका अंत हमबिस्तर की सुबह खत्म, अलसायी मिलती है। कोई गुम, चुपचाप सहती। कोई फूटती है तो आग की चिंनगारी बनकर लहक उठती है। सारा तिलिस्म अचानक सुर्ख हो उठता है फिर जिस्म की भूख साम्राज्य को नोंच खा डालती है। हालात यही है। हिंदू धर्म में स्त्री-पुरुष संबंध की दहलीज, उसकी व्याख्या
ममैवांशो जीवलोके जीवभूत: सनातन:
इस देह में यह सनातन जीवात्मा इन्हीें साधु-संतों का ही अंश है, को साक्षात् परोस, बिछा रही है। जहां स्त्रियों के गम्या और अगम्या के फासले स्वत: मिटते, सकुचाते हलाहल में संतों की सामंती परंपरा का भोग बनने का अंश मात्र ही शेष रह, बचा पा रही है। राजनीति को बदलने की ताकत का प्रदर्श करते ये संत-महात्मा भले चंद राजनेताओं को पाल रखे हों लेकिन हाशिए पर खुद को कहां खड़ा पा रहे हैं यह महर्षि महेश योगी, जय गुरुदेव, करपात्री जी महाराज, उमा भारती, योगी आदित्यनाथ या फिर रामदेव से अधिक कोई नहीं जान सकता। मोदी नहीं तो भाजपा नहीं का नारा लगाने वाले रामदेव अकेले संत नहीं हैं। अन्ना के बदलते सुर कभी मोदी का गुणगान कभी किसी और को सलाम करने वाले इस देश में कई पैदा हुए। अध्यात्म से राजनीति में आए इन सरीखे सुधारक खुद की तो कोई मुकाम हासिल करा न सके। साध्वी उमा की जनशक्ति बिखर गई। महेश योगी ने तो राम नाम की मुद्रा विदेशों में चलवा दी। इनसे पहले जय गुरुदेव ने अस्सी के दशक में सतयुग आएगा के आह्वान के साथ समाज और राजनीति में बड़े बदलाव का बीड़ा उठाया।
दूरदर्शी पार्टी बना कर वर्ष 89 में देश भर में 298 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारी दी मगर एक भी जीत दर्ज नहीं कर सके। अलबत्ता, प्रेमिका को मुंह बोली बहन बताने का रिवाज या फिर अपने ही शरण में आई किसी अबला का बलात्कार उसका दोहन, देह सामीप्य को समाज में जरूर बहुत दूर-दूर चलन में ला दिया। पहले सेक्स, फिर सीडी-एमएमएस फिर ब्लैकमैल के किस्से जिसने आसाराम जैसों तक की नवरत्न माला में काले पत्थर की हकीकत को बेपर्द कर दिया। उनके ही नौकर शिवा ने महज अपनी नौकरी बचाने की खातिर राम की आस पर महिलाओं की एक ऐसी फेहरिस्त पुलिस को थमा दी कि आसाराम जेल में महिला डॉक्टर रखकर फ्रायड के तर्क को जितना जी चाहें सुलगाते रहें उनकी गर्दन पापी गठरी से दबी, उबर नहीं पाएगी। मीडिया कुछ दिखाए या छिपाए अब उनकी सेहत पर नपुंसकता की दवा का असर कतई नहीं होने वाला। पानी की बौछार से रंगों की होली भक्तों पर उड़ाते आसाराम खुद को भगवान कहने की भूल करते बच्चों की हत्या से लेकर जिस नैतिकता की लिबास में अनैतिक कार्यों की लंबी सूची देह की कुटिया में रचते, रमते-बसाते चले गए वो उस सत्य साई की याद को ताजा करती दिखती है।
जिनकी हाल में मौत के बाद पूरे हिंदुस्तान ने तंत्र-मंत्र-धन-लोलुप का वह रूप, तमाशा देखा जिसमें उस भगवान के पास 40 हजार करोड़ से अधिक की संपति मिली थी। आज भी उस भगवान के उत्तराधिकारी की तलाश हो रही है। इनके परिवार के लोग अधिकार की मांग भगवान की लाश के साथ शुरु कर दी थी। ठीक वैसे ही जैसा आसाराम के पुत्र अपने पिता के पदचिह्नों पर चलते स्त्री भोग का प्रसाद लगा, पा रहे हैं। उस सत्य साई के आश्रम में भी हर तरफ भक्त गोरखधंधे में जुटे थे। इधर, साई का शव पड़ा था बड़े-बड़े महारथी दर्शन को आ रहे थे। उधर, ट्रक में लादकर आश्रम से सोना बाहर भेजा जा रहा था। देवन हल्ली हवाई अड्डे से दो ब्रीफकेसों में आभूषण पकड़े गए थे। अंधविश्वासी अंधें भक्त भूल गए थे, भगवान कभी वास्तु दोष के कारण नहीं मरता। देश से लेकर विदेशों में शाखा नहीं खोलता। आभूषणों की ढ़ेर नहीं लगाता। अकूत संपत्ति का स्वामी बनकर भक्तों के बीच अवतारी पुरुष नहीं बना रहता। कभी शरीर को निढाल करने सेक्स के लिए महिलाओं की कोख नहीं खोजता।
तय है, आस्था, धर्म का जितना मजाक उड़ाना हो सीख लो इस इंडिया से। प्रज्ञा ठाकुर के भी भक्त इसी देश में हैं। नित्य नयी-नयी शिष्याओं से सेक्स करने वाले स्वामी नित्यानंद को भी कभी भक्तों की कमी नहीं रही। बाबा रामदेव बाजार के सबसे बड़े उत्पादक हैं। वे बाजारवाद के हिस्सा हैं। उत्पाद के सहारे उनकी धाक है। हिंदुस्तान लीवर सरीखे उत्पादकों से भी ज्यादा प्रोडक्ट पतंजलि की दुकानों में बिक रहे हैं। दांत साफ करने से लेकर साबुन, सरसों, नारियल तेल, आटा, बेसन सब बेचते हैं बाबा। बाबा रामदेव का मतलब ही एक ब्रांड है। ऐसे भगवान खड़ा करने वालों की एक अलग दुनिया, एक अलग पहचान है जिन्हें किसी सही भगवान की जरूरत नहीं पड़ती। पैसे, ग्लैमर की एक चकाचौंध दुनिया जिसके सामने वो आंसू भी बहाते हैं। भ्रम में भी रखते, जीते हैं। सेक्स का स्वाद भी चखाते हैं। यही भ्रम तो भक्तों को सत्य साई ने भी दिखाया था। वो भविष्यवाणी जिसमें बाबा ने 96 साल तक जीने की बात कही थी लेकिन सही भगवान ने उन्हें 85 साल में ही बुलावा भेजवा दिया।
जो भक्त चमत्कार की आस में बैठे थे उन्हें ऊपर वाला कोई चमत्कार देखने का मौका नहीं दिया। अब लाखों भक्तों के दान से खड़े हजारों करोड़ की संपति के स्वामी सेंट्रल ट्रस्ट की कमान जिसके हाथ है वही एक दिन नया भगवान बन खड़ा होगा। अब आसाराम आश्रम से प्रकाशित मासिक पत्रिका ऋषि प्रसाद की आगामी अंक में क्या छपेगा या उसपर भी आसाराम प्रतिबंध लगा देंगे जिसमें कभी दीपावली के आनंदोत्सव में बापूजी की काली सच्चाई, आज की हकीकत छपती थी। या फिर अपनों पर विश्वास का संकट उन्हें एक नए अवतार में अवतरित करेगा। कारण, यह देश ऐसा ही है सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा।
(मनोरंजन ठाकुर)
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