अपने देश में दो बातों को लेकर अक्सर अटकलें व बहसें होती रहती है। महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर संन्यास लेंगे या नहीं, और राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनेंगे या नहीं। घंटों की माथापच्ची व उम्मीद - नाउम्मीदी के बीच आखिरकार बात वहीं पहुंच कर खत्म हो जाती है, जहां से शुरू हुई थी। अपने - अपने क्षेत्र के ये महारथी अंततः अपना दो टुक फैसला सुना देते हैं कि अभी उनका ऐसा कोई इरादा नहीं है। ऐसे में न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी वाली कहावत को बदल कर इस प्रकार भी किया जा सकता है- न सचिन तेंदुलकर संन्यास लेंगे न राहुल प्रधानमंत्री बनेंगे। क्योंकि सालों की अटकलों के बावजूद न तो अब तक सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट से संन्यास लिया है, और न राहुल गांधी प्रधानमंत्री ही बने हैं।
अलबत्ता मोदी बनाम राहुल की चर्चाओं के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक बार फिर राहुल गांधी के नेतृ्त्व में काम करने की इच्छा व्यक्त कर दी है। लेकिन राहुल गांधी के चिर - परिचित स्वभाव को देखते हुए इसे दुल्हा नहीं राजी, अधीर हुए बाराती ही कहा जा सकता है। क्योंकि उनकी ओर से अभी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। कांग्रेसियों की उछल -कूद के बीच पता नहीं राहुल गांधी एक बार फिर वही बात दोहरा दें- अभी प्रधानमंत्री बनने का मेरा कोई इरादा नहीं है। देश की दो सबसे बड़े पाटिर्यों के साथ यह विचित्र विडंबना है। पहली कांग्रेस के लोग अपने उम्मीदवार राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद पर विराजमान देखना चाहते हैं. लेकिन जनाब खुद इसके प्रति इच्छुक नहीं।
वहीं दूसरी भाजपा के संभावित उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी इस कुर्सी पर बैठ कर जल्द से जल्द देश की सेवा और विकास करने को इच्छुक हैं, लेकिन खुद उनकी पार्टी का कोई न कोई बिल्ली बार - बार रास्ता काट कर उनका शगुन बिगाड़ देता है। ऐसे में समझ में नहीं आता कि इस देश का आखिर होगा क्या। कहीं दो बांकों की लइनलाइन चित्र 1ड़ाई में फिर कोई तीसरा तो बाजी नहीं मार ले जाएगा।
तारकेश कुमार ओझा,
खड़गपुर ( प शिचम बंगाल)
संपर्कः 09434453934
लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं।
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