नेतरहाट (पलामू) से लेकर राजमहल (संताल परगना) तक उंची-उंची व कतारबद्ध पर्वत श्रृखलाएं। छोटी-बड़ी सैकड़ों-सहस्त्रों नदियां, जल-प्रपात और बेशकीमती जड़ी बूटियां और लकडि़यां। जंगलों की हसीन वादियों में तरह-तरह के पेड़-पौधों, लताओं के बीच छोटी-छोटी चिडि़यों की मंत्रमुग्ध कर देने वाली चिर्रर्रर-चिर्रर्रर सी आवाजें, नानाविध पक्षियों का कलरव गान, बरसात में पंख फैलाए आकाश में बादलों की ओर निहारते व इठलाते मोर-मोरनी के आदर्श युगल प्रेम व नाच। 32 अलग-अलग किस्म की जनजातियों की अलग-अलग रीति-रिवाज, पहनावे, पर्व-त्यौहार, खान-पान, रहन-सहन, आतिथ्य सत्कार व पारंपरिक संस्कार। औषधीय पेड़-पौधोंं व लताओं का मनोरम दृश्य। शांत-निश्छल वातावरण में स्वास्थ्यवर्धक हवाएं। झारखंडी जनजीवन की अपरिकल्पनीय दृश्य प्रस्तुत करती इस सूबे की उदार परंपरा-संस्कृति से प्रतिवर्ष यहां आने वाले हजारों देसी-विदेशी सैलानियों को एक ओर जहां शोधार्थियों को अपनी ओर आकर्शित करती ही है, वहीं दूसरी ओर जनजातीय जीवन के विभिन्न पहलुओं की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि व झांकी भी प्रस्तुत करती है।
जमीनी वास्तविकता से शत-प्रतिशत मेल खाने वाले उपरोक्त शब्द जहां एक ओर झारखण्ड राज्य की प्राकृतिक व समृद्ध विशेषताओं की ओर मानव समुदाय का ध्यान आकृष्ट कराती है वहीं दूसरी ओर इस प्रदेश की हरियाली भी पूरे विश्व को पर्यावरण संतुलन की सीख देती है। दशम, हुण्डरु, गौतमधारा, सदनी, बूढ़ाघाघ, हिरणी जलप्रपात इस सूबे के स्वर्णीम दृश्य की कहानी बयां करती है। वहीं भारत-कनाडा के संयुक्त तत्वावधान में वर्ष 1956 में तैयार मसानजोर डैम (दुमका), डिमनानाला (जमशेदपुर), तेनूघाट, कांके, हटिया (राची), तिलैया, खंडोली, गैतलसूद डैम व झील के कलकल करते पानी की तरंगों से आतिमय व आध्यातिमक सुखों के सागर में यहां आने वालों को गोता लगाने के लिये बाध्य कर देती है। बेतला, दलमा, हजारीबाग सारंडा के जंगल व वन्य जीव अभ्यारण तथा पारस नाथ (गिरिडीह) इको-टूरिज्म की अपार संभावनाओं से परिपूर्ण है। कुल 79,723 वर्ग किमी के विस्तृत भू-भाग में फैले पौने तीन करोड़ (वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार) की आबादी वाले झारखण्ड में 19,40,390 हेक्टेयर भूमि का हिस्सा वन क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। इको-टूरिज्म की आधारभूत संरचनाओं के साथ यदि इनके विकास पर त्वरित पहल शुरु की जाय तो आने वाले कुछे वर्षों में आर्थिक दृष्टिकोण से झारखण्ड पर्यटन के क्षेत्र मे देश का सबसे खुशहाल राज्य बन सकता है। यहां के स्थानीय निवासियों के लिए रोजगार के अधिक से अधिक द्वार खुल सकते हैं। रोजी रोटी के लिए होने वाले पलायन पर काबू पाया जा सकता है। मानव व्यापार पर अंकुश लगाया जा सकता है। घरों में काम करने के बहाने देह व्यापार में लड़कियों को बेचने के गलत धंधे को रोका जा सकता है। जंगल से कीमती सामानों की तस्करी को बंद किया जा सकता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि इको-टूरिज्म के बढ़ने से राज्य की देश के अन्य हिस्सों में जो गलत छवि बन गइ है बहुत हद तक उस दाग को धोया जा सकता है।
इको-टूरिज्म, अर्थात इकोलाजी़टूरिज्म। दो शब्दों के मेल से बने इस शब्द का अर्थ वैसे वन्य अथवा प्राकृतिक प्रदेशों से लगाया जाता है जहां की भौगोलिक, सामाजिक, ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्ता को अक्षुण्ण बनाए रखते हुए स्थानीय निवासियों के साथ संपर्क स्थापित कर पयर्टन को बढ़ावा दिया जा सके। इंटरनेशनल इको-टूरिज्म सोसायटी-1991, दि वर्ल्ड कंजरवेशन यूनियन-1996 तथा वर्ल्ड टूरिज्म आर्गेनाइजेशन ने भी इसे अलग-अलग रुपों में परिभाषित कर इको-टूरिज्म को भ्रमण व आनंद का सर्वोत्कृष्ट साधन माना है। पर्याप्त वन्य प्रदेश, झीलों, झरनों, पहाड़, घाटियों व वन्य जीव अभ्यारणों से परिपूर्ण झारखण्ड में इको-टूरिज्म की विभिन्न विधाऐं मसलन-कैंपिंग (टेंट टूरिज्म) ट्री काटेज या जंगल लाज की अपार संभावनाएं हैं। इसके अतिरिक्त वनों में स्वतंत्र भ्रमण-ट्रेकिंग-हाइकिंग का भी मजा लिया जा सकता है। वाइल्ड लाइफ टूरिज्म एवं हाट एयर बैलूनिंग विकसित कर जहा एक ओर लगभग 1500 से 1800 सौ करोड़ रुपये तक का सालाना आय प्राप्त किया जा सकता है, वहीं दूसरी ओर इसके विकास से राज्य की अवाम को कइ फायदे भी प्राप्त हो सकते हैं। रंग-बिरंगे तथा दुर्लभ पशु-पक्षियों को जंगलों में स्वच्छंद विचरते हुए देखना तथा उनका मनोवैज्ञानिक अध्ययन पशु-पक्षी विशेषज्ञ सहित पर्यावरणविदों के लिये काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। झारखण्ड सहित पूरे विश्व के पर्यटकों के लिये यहा की भौगोलिक परिसिथति अस्थायी शरणस्थली है। संताल परगना के जंगलों में टूरिज्म का मजा लेने के लिये प्रतिवर्श अमेरिका, नार्वे, नाइजीरिया, ब्रिटेन, जर्मनी व अन्य देशों से सैकड़ों की तादाद में पर्यटक आते हैं। पूरी व्यवस्था न रहने के बावजूद इन जंगलों का पूरा अनुभव लेकर वे अपने वतन लौटते हैं।
झारखण्ड में कार्यरत कुछ निजी संस्थाओं के माध्यम से भी विदेशी लोगों का नियमित आगमन यहा होता रहता है जो इन्हें झारखण्ड की आबोहवा तथा यहा के प्राकृतिक सौंदर्य से उन्हें अवगत कराते हैं। वाइल्ड लाइफ टूरिज्म विदेशियों को सर्वाधिक प्रभावित करता है। यही कारण है कि झारखण्ड में इसकी समुचित व्यवस्था महत्वपूर्ण मानी जाती है। इको टूरिज्म की इस विधा को यदि ढंग से विकसित किया जाय तो प्रतिवर्ष हजारों प्रकृति प्रेमी इस ओर सहर्ष ही आकर्शित होंगे। वाइल्ड लाइफ टूरिज्म के लिये कंडेक्टेड टूर का नियमित आयोजन जंगलों (बेस कैम्प) में काटेज, डारमेटरी, कैंटिन, कैफेटेरिया, नेचर इंटरप्रेटेशन सेंटर की व्यवस्था तथा वन्य प्राणियों के स्वभाव, कि्रयाकलाप, उनकी जीवन पद्धति, तथा अन्य से संबंधित विषयों पर कार्यशाला, सेमिनार तथा चारित्रिक अध्ययन, फिल्म शो का आयोजन, देसी-विेदेशी पर्यटकों को आश्चर्यजनक ढंग से लुभा सकता है।
अमरेन्द्र सुमन
(चरखा फीचर्स)
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