कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के पार्टी के नए सदस्यों को चुनाव में न उतारने की घोषणा के बाद से यहां कई नेताओं की मुश्किलें बढ़ गई हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में जिन नेताओं की जमानत जब्त हो गई थी, उन्हें इस बार टिकट न देने के फैसले से राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य विभाकर शास्त्री की उम्मीदवारी पर भी खतरा पैदा हो गया है। तेहपुर जनपद की सियासी राजनीति पर गौर करें तो 1990 के दशक तक यहां कांग्रेस का वर्चस्व रहा, लेकिन इसके बाद कांग्रेस इस जनपद से एक अदद विधायक का सीट हथियाने के लिए भी तरस गई। पिछले लगभग एक दशक के दौरान पार्टी हाईकमान की प्रायोगिक राजनीति ने पार्टी के वफादार सिपाहियों को काफी झकझोरा है। ऐसे में कांग्रेस के अभियान 2014 को यहां बहुत ज्यादा प्रभावी तरीके से नहीं देखा जा रहा है। प्रत्याशी चयन के लिहाज से चमत्कारिक फैसला नहीं लिया गया तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि एक बार फिर कांग्रेस प्रत्याशी को जमानत बचाने के लाले पड़ सकते हैं।
गौरतलब है कि 2006 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने पहली बार यहां प्रायोगिक राजनीति की ओर कदम बढ़ाया। इसके तहत भाकियू के राजनीतिक संगठन बीकेडी से हाथ मिलाकर जनपद की तत्कालीन हसवां और बिंदकी सीट पर गैर दलों से आए नेताओं को टिकट दिया गया, लेकिन इनमें से कोई भी चमत्कार नहीं कर सका। हसवां में लगभग तीन माह तक कांग्रेस के पूर्व विधायक अमरनाथ सिंह अनिल का चुनाव प्रचार परवान चढ़ने के बाद टिकट काटे जाने से कार्यकताओं में काफी निराशा रही। नतीजतन सपा से निराश धीरेंद्र प्रताप सिंह को भी बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। इसी तरह बिंदकी में भाजपाई कल्चर के सुरेंद्र प्रताप सिंह गौतम भी किसी तरह जमानत बचा पाए।
पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव मंे कांग्रेस ने कई सीटों पर प्रायोगिक राजनीति के तहत गैर कांग्रेसी कल्चर वालों को आजमाया। नवसृजित खागा सीट से कभी अपना दल से चुनाव लड़ते रहे आलोक कैथल, फतेहपुर सदर सीट से सपाई रहे राजू लोधी, नवसृजित अयाह-शाह सीट से भाजपाई कल्चर के सुरेंद्र सिंह गौतम, बिंदकी सीट से हाजी रफी अहमद को टिकट दिया। यहां पर भी गैर दलों में तोड़फोड़ कर प्रत्याशी थोपने की युक्ति कारगर नहीं हो सकी। हाल में जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद पर गैर कांग्रेसी कल्चर से अनजान विनय पाल उर्फ पप्पू को ताज सौंपकर पार्टी हाईकमान ने मतदाताओं व अपने वफादार सिपाहियांे के साथ-साथ कार्यकर्ताओं को कौन सा संदेश देने का प्रयास किया है।
लोकसभा चुनाव को लेकर जहां अन्य दल तैयारियों में जुटे हैं, वहीं कांग्रेस में प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया में पेंच पर पेंच लगते जा रहे हैं। छनकर आई खबर के मुताबिक सदर सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले राजू लोधी भी कतार में हैं। उधर, कई और दलों के भी नेता कांग्रेस के बड़े नेताओं से संपर्क साध रखे हैं। भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार 2002 का विधानसभा चुनाव सदर सीट से बसपा प्रत्याशी के रूप में लड़ने वाले अतहर सिद्दीकी भी कांग्रेसी टिकट के प्रमुख दावेदारों में शामिल बताए जाते हैं।
पिछले लगभग डेढ़ दशक से पार्टी के आधार स्तंभ के रूप में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री के पौत्र विभाकर शास्त्री माने जाते हैं। वह पिछली बार भी पार्टी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़े थे, लेकिन इस चुनाव में भी पहले के चुनावों की ही तरह उनकी जमानत जब्त हो गई थी। ऐसे में कांग्रेस के 'युवराज' राहुल गांधी का नया मंत्र कितना प्रभावी हो पाएगा यह तो समय बताएगा। विभाकर शास्त्री का टिकट कटने की स्थिति में कांग्रेस आलाकमान को शास्त्री परिवार की उपेक्षा के आरोप से उबरने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
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