सांसदों को बचाने के लिए अध्यादेश पर विचार हो सकती है. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

सांसदों को बचाने के लिए अध्यादेश पर विचार हो सकती है.

सरकार द्वारा दोषी सांसदों और विधायकों को अयोग्य घोषित होने से संरक्षण प्रदान करने के लिए अध्यादेश पर विचार किए जाने की संभावना है । सरकार इस संबंध में संसद में विधेयक पारित कराने में विफल रही है । इस मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए संसद में विधेयक पारित कराने में विफल रहने के बाद आपराधिक मामलों में दोषी करार दिए गए और दो साल या इससे अधिक की सजा पाने वाले सांसदों और विधायकों पर तुरंत अयोग्य घोषित किए जाने का खतरा मंडरा रहा है ।

सू़त्रों के अनुसार भ्रष्टाचार के मामले तथा अन्य अपराधों में कांग्रेस सांसद राशिद मसूद को दोषी ठहराए जाने के बाद सरकार इस संबंध में अध्यादेश लाने के विकल्पों को तौल रही है । सूत्रों ने यह भी दावा किया कि केंद्रीय कैबिनेट अपने विवेक के आधार पर अध्यादेश लाने के खिलाफ भी फैसला कर सकती है । सीबीआई अदालत द्वारा अगले माह सजा घोषित किए जाने पर मसूद के अपनी राज्यसभा सदस्यता गंवा देने की आशंका है क्योंकि उच्चतम न्यायालय का दस जुलाई का आदेश प्रभावी हो चुका है । शीर्ष अदालत के फैसले के बाद वह अपनी संसद सदस्यता गंवाने वाले पहले सांसद होंगे ।

अभी ऐसी भावना है कि जब तक संसद उच्चतम न्यायालय के फैसले को निरस्त करने के लिए जन प्रतिनिधित्व( दूसरा संशोधन ) विधेयक पारित नहीं करती है तब तक सांसद , विधायक और पाषर्द अपनी सदस्यता गंवाते रहेंगे । लेकिन , इसी के साथ ही ऐसी भी भावना है कि यदि अध्यादेश लाया गया तो विपक्ष संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार को आड़े हाथ ले सकता है क्योंकि विधेयक संसद में लंबित है । 

तकनीकी रूप से , सरकार अध्यादेश लाने के लिए स्वतंत्र है । राजनीतिक दलों ने एक बैठक में विधेयक की जरूरत पर सरकार का समर्थन किया था लेकिन जब इसे राज्यसभा में पेश किया गया तो कुछ मुद्दों को लेकर मतभेद उभर आए थे। उच्चतम न्यायालय ने अपने 10 जुलाई के फैसले में निर्वाचन कानून के एक प्रावधान को रद्द कर दिया था जो दोषी ठहराए गए सांसद को इस आधार पर अयोग्यता से बचाता है कि अपील अदालतों में लंबित है ।

जन प्रतिनिधि अधिनियम के अनुच्छेद आठ के उप अनुच्छेद (4 ) में विधेयक के जरिए एक प्रावधान जोड़ा गया है जो कहता है कि यदि 90 दिनों के भीतर अपील दाखिल कर दी जाती है और अदालत ने दोषसिद्धि और सजा पर स्थगनादेश दिया हुआ है तो एक दोषी सांसद या विधायक को अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा। लेकिन इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि ऐसे सांसद या विधायक न तो मतदान करने के लिए अधिकृत होंगे और न ही वेतन या भत्ते ले सकेंगे। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया था कि सांसद, विधायक और पार्षद दोष सिद्धि की तारीख से अयोग्य होंगे । शीर्ष अदालत इस संबंध में सरकार की पुनरीक्षा याचिका को नामंजूर कर चुकी है । समझा जाता है कि अध्यादेश के मसौदे में समान प्रावधान हैं । 

कोई टिप्पणी नहीं: