86 दिन बाद केदारनाथ धाम के कपाट वर्ष में दूसरी बार खुले
- नहीं पहुंच पाए मुख्यमंत्री, काबीना मंत्री ने कराई पूजा
देहरादून, (राजेन्द्र जोशी)11 सितम्बर। बीती 17 जून के बाद 11 सितम्बर (आज बुधवार) को 86 दिन बाद बारहवें ज्योर्तिलिंग भगवान केदार के कपाट वर्ष में दूसरी बार खोल दिए गए। यह सनातन धर्म परम्पराओं में यह पहला मौका है, जब बाबा केदार की पूजा में न तो भक्त ही शामिल हुए और न ही स्थानीय तीर्थ पुरोहित। बुधवार प्रातः 7 बजे मंदिर के कपाट प्रधान रावल भीमशंकर लिंग शिवाचार्य ने खोले। द्वार की परम्परागत पूजा के बाद मुख्य रावल ने चुनिंदा लोगों के साथ गर्भ गृह में प्रवेश किया। हालांकि वर्ष में दूसरी बार खुले कपाट को लेकर कई तरह की मत भिन्नताएं थी, लेकिन सरकार ने जहां इसे ‘‘सर्वार्थ सिद्धि योग‘‘ बताकर इस समय को सबसे उपयुक्त समय बताया, वहीं हिंदु धर्माचार्याें ने रक्षाबंधन से लेकर नवरात्र के पहले दिन तक के समय को किसी भी शुभ कार्य के लिए उचित नहीं बताया।
केदारनाथ मंदिर की स्थापना से लेकर आज तक का यह पहला मौका रहा, जब ज्योर्तिलिंग की पूजा के लिए केदारधाम में न तो तीर्थयात्री ही मौजूद थे और न तीर्थ पुरोहित। तीर्थयात्री और तीर्थ पुरोहित दोनों ही गुप्तकाशी से लेकर फाटा, रामपुर, सौनप्रयाग और गौरीकुण्ड में केदारनाथ जाने के लिए जद्दोजहद करते रहे, लेकिन प्रदेश सरकार की कड़ी चौकसी के बाद, ये लोग आगे नहीं बढ़ पाए। हालंाकि बुधवार प्रातः प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक अपने समर्थकों के साथ गौरीकुण्ड-केदारनाथ पैदल मार्ग पर कूच कर गए थे।
गुप्तकाशी से लेकर केदारनाथ तक सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के जमावड़े के अलावा चुनिंदा मीड़ियाकर्मी की मौजूदगी ही देखी गई। आज के इस कार्यक्रम की सफलता के लिए प्रदेश सरकार ने 18 निजी हैलीकाप्टर लगाए थे। पल-पल बदल रहे प्रकृति के मिजाज के चलते आपदा के बाद से आज तक केदारनाथ मंे पूजा कराने को आतुर प्रदेश के मुख्यमंत्री ही नहीं पहुंच पाए, जबकि प्रदेश काबीना मंत्री डा. हरक सिंह रावत, केदारनाथ विधायक शैलारानी रावत, जिलाधिकारी दलीप जावलकर आदि बीते दिन ही केदारपुरी पहुंच गए थे।
केदारनाथ की पूर्व विधायक आशा नौटियाल का कहना है कि प्रदेश सरकार के अधिकारी और मंत्री आपदा राहत कार्यों को करने के बजाय केदारनाथ मंदिर में पूजा करवाने को ज्यादा महत्व देते दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि केदारनाथ मंदिर में पूजा कराने के बहाने प्रदेश सरकार मंदिर का शुद्धीकरण नहीं बल्कि अपना शुद्धीकरण कर रही है। वहीं दूसरी ओर तीर्थ पुरोहित समाज प्रदेश सरकार के खिलाफ खड़ा हो गया है। तीर्थ पुरोहितों के अनुसार यह इतिहास का पहला अवसर है, जब किसी प्रदेश सरकार ने उनके परम्परागत हक-हकूकों के साथ खिलवाड़ ही नहीं किया बल्कि उन्हें उनके धाम में जाने से भी रोका। वहीं दूसरी ओर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के प्रतिनिध के पूजा में बैठने पर भी विवाद हुआ, जबकि इस बात पर भी विवाद हुआ कि भगवान केदार के मंदिर मंे हवन के दौरान का महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है, लेकिन बुधवार को हुए हवन में क्षेत्रीय विधायक शैलारानी रावत सहित लक्ष्मी राणा और मधु भट्ट भी उपस्थित थी।
सोनिया दरबार में बार-बार मत्था टेकने वाले, नहीं टेक पाए बाबा केदार के यहां मत्था
देहरादून, 11 सितम्बर। राजनैतिक दल भले ही किसी व्यक्ति को कितना भी शक्ति सम्पन्न बना दे, लेकिन प्रकृति और दैवीय शक्ति के आगे आखिरकार उसे नतमस्तक होना ही पड़ता है। प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा सोनिया दरबार में भले ही महीने में 10 बार माथा टेकते रहे हों, लेकिन भगवान केदार के दरबार में आज माथा टेकने से वे वंचित रह गए। तमाम सुख साधन होने के बावजूद मुख्यमंत्री की प्रकृति और दैवीय शक्ति के आगे नहीं चल पाई और वे दिल्ली से केदारनाथ की ओर नहीं उड़ पाए। गौरतलब हो कि 13 मार्च 2012 को उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद विजय बहुगुणा की दिल्ली की उड़ान शुरू हो गई और लगभग हर वीकेण्ड दिल्ली में ही बीतता रहा है। प्रदेश के अब तक के पूर्व मुख्यमंत्रियों के दिल्ली दौरे के रिकार्ड को तोड़ते हुए मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा इस बार भी बीते चार दिनों से अभी तक दिल्ली से ही उत्तराखण्ड की सरकार चला रहे हैं। राज्य के नागरिक उड्डयन विभाग के अंतर्गत आने वाले स्टेट प्लेन और स्टेट हैलीकाप्टर की लॉग बुक से इस बात की तस्दीक होती है कि मुख्यमंत्री और उनके चहेते एक प्रमुख सचिव द्वारा सबसे ज्यादा प्रदेश के वायुयानों से हवाई यात्रा की गई, लेकिन बाबा केदार के दर्शनों के लिए वे नहीं उड़ पाए। 11 सितम्बर को बाबा केदार के मंदिर केदारनाथ में आपदा के 86 दिन बाद पूजा तो शुरू हो गई, लेकिन इस पूजा को सम्पन्न कराने में लगभग 46 करोड़ रूपया प्रदेश सरकार ने खर्च कर डाला। यह भी अपने आप में एक रिकार्ड है कि केदारधाम की पूजा करने के लिए किसी सरकार ने 46 करोड़ रूपया एक ही दिन में फूंक डाला हो। इसे प्रभु की माया ही कहेंगे कि सोनिया दरबार में महीने में लगभग 10 दिन हाजिरी बजाने वाला मुख्यमंत्री का गुरूर बाबा केदार के आगे नहीं चल पाया और वे बाबा के दर्शन से वंचित रह गए। यह भी किवंदन्ती है कि जिसे बाबा का बुलावा नहीं होता वो लाख कोशिश करे उनके दर्शन नहीं पा सकता, यही केदारनाथ में पूजा कराने को आतुर प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ भी हुआ। पूजा भी हुई अर्चना भी हुई भगवान केदार से 86 दिनों तक पूजा न करने को लेकर प्रायश्चित भी किया गया, लेकिन पूजा में मुख्यमंत्री बहुगुणा नहीं पहुंच पाए।
प्रदेश में मौसम बेहद खराब,कई घंटो से लगातार जारी है बरसात
देहरादून, 11 सितम्बर (राजेन्द्र जोशी)। प्रदेश में एक बार फिर बेरहम मौसम ने दस्तक दी है। जी हां पिछले कई दिनों से राज्य में थमा मौसम का तांडव बीती रात से एक बार फिर शुरू हो गया है। बीती रात से शुरू हुई बारिश का क्रम निरन्तर तेज हो गया है। आज सुबह चार बजे से बरसात ने भयंकर रूप अख्तियार कर लिया है। खबर लिखे जाने तक पूरे प्रदेश के अलग अलग हिस्सों से तेज बारिश की सूचनाएं लगातार आ रही है। राजधानी देहरादून में लगातार बारिश से जनजीवन अस्त-व्यस्त होने की सूचना है। शहर में तेज गरज के साथ बारिश जारी है।
पूजा के पीछे सरकार का उद्देश्य क्या: खण्डूडी
सरकार पर चले हत्याओं का मुकदमा: निशंक
देहरादून, 11 सितम्बर (राजेन्द्र जोशी)। केदारनाथ में पूजा कराने को तो तमाम राजनैतिक दल ठीक मानते हैं, लेकिन पूजा के अलावा क्षेत्र के विकास, आपदा प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्य, स्कूलों में बच्चो को शिक्षा, चिकित्सा और स्वास्थ्य व्यवस्था भी पूजा से पहले हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता व पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने कहा कि केदारनाथ धाम में पूजा तो ठीक है मगर ज्यादा जरूरी आपदाग्रस्त क्षेत्रों में राहत कार्य हैं। सरकार यह स्पष्ट नहीं कर पाई है कि आखिर इस तरह पूजा आरंभ कराने का उद्देश्य है क्या। खंडूड़ी ने कहा कि केदारनाथ में पूजा को लेकर सरकार के साथ न तो तीर्थ पुरोहित हैं और न धर्माचार्याे की ही सहमति है, इस स्थिति में समझ नहीं आता कि सरकार का इस सबके पीछे उद्देश्य क्या है। यही नहीं, स्थानीय स्तर पर भी लोगों पर पाबंदी लगाए जाने से सरकार के खिलाफ माहौल बना हुआ है। उन्होंने कहा कि आपदा प्रभावित क्षेत्रों में राहत एवं पुनवार्स ज्यादा जरूरी है। सड़क संपर्क अब भी कई स्थानों पर कायम नहीं हो पाया है। लोग टैंट और स्कूलों में रहने को मजबूर हैं। स्कूल न खुलने से बच्चे तीन महीने से घर पर बैठे हैं। उन्होंने सवाल किया कि जब 11 सितंबर की पूजा के बाद भी यात्रा आरंभ नहीं की जा रही है तो इसका औचित्य क्या है। सरकार बस श्रेय लेने की राजनीति कर रही है, जिसका कोई फायदा होने वाला नहीं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को चाहिए कि पहले प्रभावित क्षेत्रों तक पूरा सड़क संपर्क कायम किया जाए, स्कूल खुलवाए जाएं और पीड़ितों तक राहत पहुंचाना सुनिश्चित किया जाए। पूर्व मुख्यामंत्री डा० निशंक ने कहा कि उत्तराखंड सरकार द्वारा श्री केदारनाथ पूजा का नाटक जनता को रास नहीं आ रहा है और केदारनाथ धाम के पुरोहित पूजा का विरोध कर रहे हैं; यह पूजा कांग्रेस की पूजा होकर रह गयी है। उन्होंने कहा कि केदारनाथ की पूजा का विज्ञापन देकर सरकार ऐसा प्रचार कर रही है जिसे असंभव को संभव करने जैसा हो। सरकार जिस स्तर तक नीचे गिर गया है इसका अहसास भी नही किया जा सकता है। आज भी उक्त क्षेत्र में हजारों शव बिखरे हुए हैं और उनके बाद पूजा का प्रवंध करना अजीब लगता है। डा निशंक ने कहा कि सरकार की शीर्ष प्राथमिकता लोगों को बचाने की होनी चाहिए थी,लेकिन ऐसा नही हो पाया। प्रलय से डरकर जो लोग पहाडों की ओर जान बचाकर भागे उनको बचाने की जिम्मेदारी किसकी थी सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए। उन्होंने पहले ही कहा था कि जो लोग जान बचाकर पहाडों की ओर भागे,लेकिन सरकार ने जानकारी के बावजूद बचाने की पहल नही की। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि केदारनाथ की पूजा अब भी उखीमठ में चल रही थी और यदि केदारनाथ में पूजा आरंभ करनी थी तो तीन माह क्यों लगाया गया। उस समय साफ सफाई कर पूजा शुरू करायी जा सकती थी। पूर्व सीएम ने वहां के पुजारी परिवारों की चर्चा करते हुए कहा कि केदारनाथ के पुजारी अनुनय विनय कर रहे हैं कि उन्हें उनके घरों तक जाने दिया जाए। उनके मकानों में उनके परिवारों के लोग मृत पडे हुए हैं जिनका अंतिम संस्कार किया जाना है। डा. निशंक ने स्पष्ट रूप से कहा कि सरकार पर लोगों की हत्या का मुकदमा चलाया जाना चाहिए। सरकार को इतनी मौतों का जवाब देना होगा। पांच हजार से अधिक नेपाली कहां हैं उनका आज तक कोई पता नही है। जिन लोगों के शव मिल रहे हैं उन्होंने भी डेढ दो माह तक जीवन से संघर्ष किया। कितना दुर्भाग्य है कि पूजा का दावा कराने वाली सरकार तीन माह तक पैदल रास्ता तक नही बना पायी। डा निशंक ने कहा कि सरकार को पूजा प्रारंभ ही करानी ही थी तो पुरोहितों को न ले जाकर एक पाप क्यों किया। पूजा पुरोहितों का विशेष अधिकार है।
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