कहने को 21वीं सदी महिलाओं की सदी है, लेकिन सच तो यह है कि महिलाओं को लेकर समाज की सोच अभी भी 'दोहरी' है। इसका ताजा उदाहरण है इंडोनेशिया के सुमात्रा में सुनाया गया यह फरमान कि 10वीं की छात्राओं को अब कौमार्य परीक्षण से गुजरना होगा। वेबसाइट 'द जकार्तापोस्ट डॉट कॉम' के मुताबिक, इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप में एक शिक्षा अधिकारी ने कहा है कि हाईस्कूल की छात्राओं का कौमार्य परीक्षण होना चाहिए। दक्षिण सुमात्रा के प्रबुमुलीह जिले के शिक्षा विभाग के प्रमुख मुहम्मद राशिद ने इस आशय का प्रस्ताव शासन से मंजूरी के लिए भेज दिया है। संभावना है कि अगले साल से कौमार्य परीक्षण का नियम लागू भी हो जाएगा।
कौमार्य परीक्षण के पीछे अधिकारी का तर्क है कि जांच के खौफ के चलते लड़कियां विवाहेतर संबंधों और वेश्यावृत्ति जैसे नकारात्मक कार्यो से खुद को बचा पाएंगी। समाचारपत्र 'कोमपास' ने राशिद के हवाले से कहा, "महिलाएं कुंवारी रहना चाहती हैं या नहीं, यह उनका अपना अधिकार है। लेकिन दूसरी तरफ हम छात्राओं को वेश्यावृत्ति जैसी नकारात्मक चीजों की ओर जाने से बचाना चाहते हैं।" प्रोसपेरस जस्टिस पार्टी के हसरुल अजवर जैसे लोग इसके पक्ष में हैं लेकिन इस प्रस्ताव का भारी विरोध हो रहा है।
आईबी टाइम्स ने प्रांतीय शिक्षा प्रमुख विडाडो के हवाले से कहा, "ऐसे परीक्षण की अपेक्षा बहुत सी महत्वपूर्ण और उपयोगी चीजों की परवाह की जा सकती है। विद्यार्थी होने के नाते आंकने से ज्यादा उन्हें पोषित करने की जरूरत है।" प्रबुमुलीह के उप महापौर अर्देनसियन फिकरी का कहना है कि ऐसा कानून बनने की संभावना कम है क्योंकि अधिकारी राशिद के प्रस्ताव का समर्थन नहीं करेंगे। शिक्षामंत्री मोहम्मद नूह ने भी इस परीक्षण को निजता के अधिकार का हनन करार दिया है।
उन्होंने कहा कि कौमार्य परीक्षण सिर्फ छात्राओं के लिए होगा। छात्रों के लिए ऐसे किसी परीक्षण की बात नहीं की गई है। ऐसे में महिलाओं के प्रति भेदभाव और उत्पीड़न को भी बढ़ावा मिलेगा। वहीं, गोल्कर पार्टी की महिला विधायक नूरुल अरिफिन ने कहा, "यह महिलाओं के प्रति भेदभाव और उत्पीड़न को बढ़ावा देगा।" कई बार खेल-कूद और अन्य शारीरिक क्रियाओं से भी कौमार्य भंग हो जाता है। इसलिए कौमार्य परीक्षण न तो तर्क संगत है और न ही न्यायसंगत।
वेबसाइट 'ग्लोबलपोस्ट डॉट' ने अरिस मरदिका सिरैत के हवाले से कहा, "कौमार्य सिर्फ यौन संबंधों से ही नष्ट नहीं होता। यह खेलों या शारीरिक समस्याओं या अन्य कारणों से भी भंग हो सकता है। इस प्रस्ताव का पूरा विरोध होना चाहिए, क्योंकि कौमार्य हर महिला का अपना अधिकार है।"
नेशनल कमीशन ऑन वायलेंस अगेंस्ट वुमेन की उप प्रमुख मशरुचा ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि कौमार्य व्यक्तिगत मुद्दा है। शिक्षा विभाग को इसे नियंत्रित करने का अधिकार नहीं है। यह पहली बार नहीं है, जब इंडोनेशिया के मुस्लिम समुदाय के अधिकारियों ने ऐसे फरमान का प्रस्ताव रखा है। इससे पहले भी ऐसे फरमान आ चुके हैं, लेकिन समाज द्वारा उनका भी विरोध किया गया था।
मार्च 2012 में धार्मिक मामलों के मंत्री ने छोटी स्कर्ट पहनने पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव रखा था, जिसके पीछे तर्क था कि यह पोर्नोग्राफी-रोधी अभियान है। स्कर्ट और पहनावे जैसे मुद्दे तो मुस्लिम समुदाय या शिक्षा संस्थानों के मुद्दे की बात हो सकते हैं लेकिन छात्राओं का कौमार्य परीक्षण तर्कसंगत नहीं है। यह महिलाओं के मूल अधिकारों का हनन है और ऐसे प्रस्तावों का भारी विरोध स्वाभाविक है और जायज भी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें