मेडिकल सीटों के अलॉटमेंट घोटाले में दोषी ठहराए गए कांग्रेस के राज्य सभा सांसद रशीद मसूद को दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने चार साल की सजा सुनाई है। चार साल की इस सजा की मार मसूद के 40 साल के पॉलिटिकल करियर पर बड़ी तगड़ी लगी है। उन्हें जेल तो जाना पड़ेगा ही राज्य सभा की सदस्यता भी जाएगी। यह नहीं वह छह साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। गौरतलब है कि चारा घोटाले में लालू प्रसाद यादव को दोषी करार दिए जाने से उनके राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिह्न लग चुका है।
रशीद मसूद के वकील ने सजा पर बहस के दौरान अदालत से उनकी कई सालों तक की गई देश सेवा और उम्र को देखते हुए नरमी बरतने की गुहार लगाई थी, लेकिन जज पर ये दलीलें असर नहीं डाल पाईं। बहस के दौरान सीबीआई के वकील ने जज से कहा था कि रशीद मसूद ने काबिल छात्रों का करियर बिगाड़ा है, उन्हें कम से कम सात साल की सजा जरूर मिलनी चाहिए।
कोर्ट में सजा पर कैसी चली बहस: दोषी करार दिए गए रशीद मसूद ने देश की लंबे समय तक की गई सेवा और खराब सेहत कारणों का हवाला देते हुए अदालत से सजा में नरमी की मांग की, जबकि सीबीआई ने उन्हें कम से कम 7 साल की सजा देने और उन पर भारी जुर्माना लगाने की अपील की। 67 वर्षीय मसूद के वकील ने सजा की अवधि पर दलील देते हुए सीबीआई के स्पेशल जज जे. पी. एस. मलिक से कहा, 'मैं पिछले 30 सालों से संसद सदस्य हूं और मैं कानून का पालन करने वाला नागरिक हूं। मामले के नेचर, मेरी उम्र और पहले की साफ छवि को ध्यान में रखते हुए मुझे प्रॉबेशन का लाभ दिया जाना चाहिए।'
सीबीआई के वकील वी.एन. ओझा ने हालांकि उनकी प्रॉबेशन की अपील का विरोध करते हुए कहा, 'रशीद मसूद को सात साल से कम सजा नहीं मिलनी चाहिए और उन पर भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए क्योंकि अपने रिश्तेदार सहित अयोग्य उम्मीदवारों को नामित करके उन्होंने काबिल छात्रों का करियर बिगाड़ दिया है।' दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने कहा कि वह सजा के संबंध में अपना फैसला ढाई बजे सुनाएगी।
1990 में वी. पी. सिंह सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे मसूद को केंद्रीय पूल से देशभर के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए त्रिपुरा को आवंटित एमबीबीएस सीटों पर धोखाधड़ी से अपात्र उम्मीदवारों को नामित करने का दोषी ठहराया गया था। स्पेशल सीबीआई जज जे. पी. एस. मलिक ने मसूद को आईपीसी की धाराओं 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र), 420 (धोखाधड़ी) और 486 (जालसाजी) तथा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया था। हालांकि उन्हें आईपीसी की धारा 471 के तहत लगे आरोपों से बरी कर दिया गया, जो फर्जी दस्तावेज को वास्तविक के तौर पर इस्तेमाल करने से जुड़ी है।
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