झारखंड : सत्ता संग्राम: आसां नहीं डगर... - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

झारखंड : सत्ता संग्राम: आसां नहीं डगर...


  • - कभी अलग अलग रास्ता अपनाने वाले सुबोधकांत सहाय और प्रदीप बालमुचु के बीच इन दिनों नजदीकी बढ़ी है, इन दोनों नेताओं में पहले 36 का आंकड़ा था
  • - सूबे में अर्जुन मुंडा सरकार गिरने के बाद नई सरकार के गठन के दौरान ये नेता पास आए, झामुमो के साथ सरकार बनाने में पहली पहल इन लोगों ने की थी


hemant soren
रांची: झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार तो बनी है लेकिन अंदरखाने में बहुत घमासान है। 06 माह की मषक्कत और दिल्ली दरबार का चक्कर काट कर हेमंत सोरेन ने सीएम की कुर्सी तो हासिल कर ली मगर सरकार का मूर्तरूप देने में पसीने छूट गए। दो मंत्रियों के साथ सीएम की षपथ लेने के 22 दिन बाद 06 मंत्रियों का षपथ हुआ और बाकी तीन मंत्रियों के लिए 42 दिनों का इंतजार करना पड़ा। 24 अगस्त को हेमंत सोरेन की नेतृत्व वाली सरकार में मंत्रियों की पूरी टीम तैयार हो गई है। कांग्रेस कोटे के तीन विधायकों ददई दुबे, मन्नान मल्लिक और योगेंद्र साव को राज्यपाल डाॅ सैयद अहमद ने मंत्री पद की षपथ दिलाई और उसी दिन तीनों नए मंत्रियों के बीच विभागों का बंटवारा कर दिया गया। इसके अलावा पांच पुराने मंत्रियों के विभागों में फेरबदल भी किया गया है। विधायक चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे को ग्रामीण विकास, पंचायती राज, श्रम नियोजन व प्रषिक्षण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है। योगेंद्र साव को कृशि, गन्ना विकास और आवास विभाग सौंपा गया है। वहीं मन्नान मल्लिक को पशुपालन व मत्स्य और आपदा प्रबंधन विभाग दिया गया है। मंत्रियों की नाराजगी को देखते हुए राज्य सरकार ने पांच मंत्रियों के विभागों में फेरबदल कर दिया। जय प्रकाष भाई पटेल से नगर विकास विभाग वापस ले लिया गया है। इसकी जगह उप उन्हें पेयजल एवं स्वच्छता विभाग दिया गया। सुरेष पासवान से आवास विभाग लेकर उन्हें नगर विकास विभाग दिया गया है। हाजी हुसैन अंसारी के पास से उद्योग विभाग वापस लेकर अल्पसंख्यक कल्याण और सहकारिता विभाग सौंपा गया है। वह भवन निर्माण विभाग भी संभालेंगे। चंपई सोरेन से खाद्य आपूर्ति विभाग वापस लेकर साइमन मरांडी को दिया गया है। चंपई के पास अब कल्याण, परिवहन व उद्योग विभाग रहेगा। सीएम हेमंत सोरेन, मंत्री राजेंद्र सिंह, गीता श्री उरांव और अन्नपूर्णा देवी के विभागों में कोई फेरबदल नहीं किया गया है। 

खूब चला षह और मात का खेल: सूबे में मंत्री पद के लिए कांग्रेस के अंदर सह-मात का खेल चला। अंतिम समय में 23 अगस्त को सोनिया दरबार में मंत्री के नाम की मुहर लगी। दिल्ली दरबार में सूबे के मंत्री पद के लिए जबरदस्त लोबिंग हुई। सोनिया दरबार में इस बार सांसद सुबोधकांत सहाय और प्रदीप बालमुचु हावी रहे। कांग्रेसी के अंदरखाने से मिली सूचनानुसार प्रदीप बालमुचु ने सोनिया गांधी से मुलाकात की थी। इस मुलाकात में सूबे में कैबिनेट विस्तार पर भी चर्चा हुई थी। बालमुचु बत्रा गुप्ता का पत्ता साफ करने में कामयाब रहे। सुबोधकांत सहाय पहले ही दिल्ली दरबार में बड़कागांव के विधायक योगेंद्र साव की पैरवी कर चुके थे। बत्रा की जगह योगेंद्र साव को दो दो नेताओं का समर्थन मिल गया। वहीं सरफराज अहमद को लेकर भी सुबोधकांत और बालमुचु एक प्लेटफार्म पर थे। पिछले एक माह से दिल्ली में कांग्रेस के अंदर प्रदेष में मंत्री पद के लिए कशमकश चल रही थी। मंत्री राजेंद्र सिंह और प्रदेशाध्यक्ष सुखदेव भगत की ओर से तीन नाम प्रभारी को सौंपे गए थे। आलाकमान ने इन तीन नामों में दो का पत्ता साफ कर केवल ददई दुबे को मौका दिया। जिन लोगों के नाम दिल्ली में मंत्री के लिए चल रहे थे उसके खिलाफ भी विरोधियों ने आरोप का पूरा पुलिंदा पहुंचा दिया था। ददई दुबे, बत्रा गुप्ता, सरफराज अहमद के खिलाफ कई विधायकों और नेताओं ने षिकायतें पहुंचाई थी। प्रदेष की ओर से मंत्री पद के लिए विधायकों के नाम प्रभारी बीके हरि प्रसाद को भेजे गए थे। प्रदेष नेतृत्व अपना काम कर आराम से था। पिछले पांच दिनों में प्रदीप बालमुचु और सुबोधकांत सहाय ने बाजी पलट दी। प्रभारी बीके हरि प्रसाद कर्नाटक में राज्य सभा चुनाव को लेकर व्यस्त थे। इधर सुबोधकांत सहाय और बालमुचु संसद सत्र के कारण दिल्ली में जमे थे। इस दौरान दोनों नेता आलाकमान को मनाने में सफल रहे। अंत में सोनिया गांधी से मुहर लगवा ली। पिछले कई माह से कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति ने करवट ली है। कभी अलग अलग रास्ता अपनाने वाले सुबोधकांत सहाय और प्रदीप बालमुचु के बीच इन दिनों नजदीकी बढ़ी है। इन दोनों नेताओं में पहले 36 का आंकड़ा था। सूबे में अर्जुन मुंडा सरकार गिरने के बाद नई सरकार के गठन के दौरान ये नेता पास आए। झामुमो के साथ सरकार बनाने में पहली पहल इन लोगों ने की थी। इस मोर्चे पर दोनों साथ साथ थे। हाल के दिनों में सुखदेव भगत और मंत्री राजेंद्र सिंह के बीच खूब छन रही है। प्रदेश कांग्रेस में अब नई खेमेबंदी की यह शुरूआत है। 

दो पिटे खिलाड़ी: सरफराज अहमद-प्रदेश के बड़े नेता इन्हें यस मैन नहीं मानते हैं। केएन त्रिपाठी, मन्नान मल्लिक सहित कई विधायकों ने आलाकमान तक षिकायत पहुंचाई। राज्य सभा चुनाव में हार्स टेडिंग में सीबीआई जांच का मामला भी आड़े आया। बन्ना गुप्ता- प्रदीप बालमुचु के साथ 36 का आंकड़ा पार्टी में नए हैं। लोकसभा उप चुनाव में बहुत बेहतर नहीं कर पाए। मौका देकर इनके सहारे कोल्हान में बहुत कुछ नहीं कर पाती कांग्रेस। जमशेदपुर में दर्ज कई मामलों की शिकायत आला कमान तक पहुंचाई गई। 

तीन के तेरह में उलझी रही कांग्रेस: मुंडा सरकार से समर्थन वापसी के बाद लगातार दिल्ली दौरे में लगे रहे हेमंत सोरेन ने आखिरकार सूबे की सत्ता हथिया ली और 13 जुलाई को हेमंत सोरेन ने सीएम पद की षपथ ली थी। उनके साथ राजेंद्र सिंह व अन्नपूर्णा देवी ने भी शपथ ली थी। फिर 04 अगस्त को 06 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई थी। जिसमें कांग्रेस की ओर से गीताश्री उरांव, झामुमो कोटे से साइमन मरांडी, चंपई सोरेन, हाजी हुसैन अंसारी, जयप्रकाश  भाई पटेल और राजद से सुरेश पासवान ने मंत्री पद की शपथ ली थी। कांग्रेस के खाते में तीन पद पड़े रह गए, जिसे भरने में पार्टी को नाको चने चबाने पड़े। तीन मंत्रियों के लिए कांग्रेस के भीतर घमासान मच गया। तमाम विधायक अपनी लाबिंग और दूसरे का पत्ता काटने में लग गए। कांग्रेस कोटे से पहले ददई दुबे के अलावा अल्पसंख्यक कोटे से सरफराज अहमद और पिछड़ी जाति से बन्ना गुप्ता को मंत्री बनाए जाने की चर्चा थी। लेकिन हाॅर्स टेडिंग मामले में नाम आने के कारण सरफराज अहमद का नाम कट गया। वहीं हजारीबाग प्रमंडल मे कांगे्रस का जनाधार बढ़ाने के लिए पार्टी ने बड़कागांव के विधायक योगेंद्र साव के नाम पर मुहर लगा दी है। कांग्रेस कोटे के मंत्रियों का नाम तय करने में पार्टी आलाकमान को काफी मशक्कत करनी पड़ी। झारखंड कांग्रेस में व्याप्त गुटबाजी का असर मंत्रीमंडल के विस्तार में भी देखने को मिला। यही कारण है कि तीन मंत्रियों का नाम तय करने में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को 41 दिन का समय लग गया। सरकार गठन के समय कांग्रेस के मात्र एक विधायक राजेंद्र प्रसाद सिंह को शपथ दिलाई गई थी। कहा गया कि पहले विस्तार में शेष चार बर्थभर दिए जाएंगे। लेकिन मंत्रियों के नाम को लेकर जिच इतनी बढ़ गई कि 04 अगस्त को कांग्रेस कोटे से सिर्फ गीताश्री उरांव को ही षपथ दिलाई गई। तीन पद खाली छोड़ दिए गए। इसके बाद जोड़ तोड़ का सिलसिला जारी हुआ। कांग्रेस कोटे से मंत्री पद के खाली पड़े तीन पदो ंके लिए ददई दुबे, सरफराज अहमद और बन्ना गुप्ता का नाम सबसे उपर था। इसमें जातीय समीकरण की दुहाई दी गई। कहा गया कि ब्राह्मण कोटे सेे ददई दुबे अल्पसंख्यक कोटे से सरफराज व पिछड़ी जाति से बन्ना गुप्ता मंत्री बनेंगे तो पार्टी को चुनाव में फायदा मिलेगा। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप बालमुचु गुट के लोगों ने दिल्ली में डेरा जमा लिया और आलाकमान को दूसरा समीकरण समझाया। यह गुट बन्ना गुप्ता का विरोध कर रहा था। बताया कि योगेंद्र साव भी पिछड़ी जाति से आते हैं, उन्हें मंत्री बनाने से उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल में पार्टी को लाभ मिलेगा। सरफराज का नाम काट कर मन्नान को आगे लाने में भी इसी गुट का हाथ रहा। वे मन्नान का बर्थ रिजर्व कराकर राजेंद्र सिंह को झटका देना चाह रहे थे। राजेंद्र सिंह के पुत्र और मन्नान मल्लिक के बीच हाल में कांग्रेस भवन में गोली चलाने की घटना हुई थी। बन्ना का नाम कटने पर संथाल के राजेष रंजन का नाम तेजी से उभरा, लेकिन हाॅर्स टेडिंग मामले की सीडी में उनकी आवाज रहने व मामला सीबीआई में लंबित रहने की बात बताई गई। इसके बाद उनका नाम भी कट गया। ददई के नाम पर कोई जिच नहीं था। 

सुबोधकांत और बालमुचु की पैठ: हेमंत मंत्रीमंडल के दूसरे विस्तार को लेकर हुई देरी कई सवाल खड़े कर रही है। कांग्रेस कोटे के तीन मंत्रियों का नाम तय करने में पार्टी आलाकमान के पसीने छूट गए। अंत अंत तक मंत्रियों के नाम पर जहां सस्पेंस बरकरार रहा वहीं कद्दावर नेताओं को भी मात खानी पड़ी। पूर्व मे हुए तमाम फैसलों में पार्टी विधायक दल के नेता राजेंद्र प्रसाद सिंह को बढ़त मिली लेकिन मंत्रीमंडल के दूसरे विस्तार में वे अपने पसंदीदा विधायकों को षामिल कराने में असफल रहे। कांगे्रस के पूर्व प्रदेषाध्यक्ष प्रदीप बालमुचु और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय बाजी मार ले गए। बालमुचु ने राजेंद्र प्रसाद सिंह के धुर विरोधी धनबाद के विधायक मन्नान मल्लिक को मंत्री बनवाने में सफलता हासिल की। मन्नान और राजेंद्र सिंह की अदावत हाल में उस वक्त सतह पर आई थी जब दोनों के समर्थक आपस में भिड़ गए थे। इस भिड़ंत में गोलियां भी चली थीं। सारा बवाल प्रदेश कांग्रेस प्रभारी बीके हरिप्रसाद के समक्ष हुआ था। उधर बन्ना गुप्ता का पत्ता अंतिम वक्त में सुबोधकांत सहाय और प्रदीप बालमुचु के विरोध के कारण कटा। सुबोधकांत ने योगेंद्र साव की पुरजोर पैरवी की। साव को प्रदेष कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव भगत का भी साथ मिला। बन्ना गुप्ता को प्रदीप बालमुचु से पंगा लेना महंगा पड़ा। गौरतलब है कि जमशदपुर संसदीय उपचुनाव के दौरान दोनों नेताओं के बीच तेजी से खटास बढ़ी थी। बन्ना के खिलाफ तीन नेताओं के एकजुट हो जाने के कारण योगेंद्र साव का पलड़ा भारी हो गया। 

सदन में होंगे साथ साथ, बाहर जारी रहेगा विरोध: कांग्रेस कोटे से पांच मंत्री होंगे। सदन के अंदर वे साथ साथ नजर आएंगे लेकिन बाहर में विरोध जारी रहेगा। राजेंद्र सिंह और ददई दुबे के बीच इंटक को लेकर लंबे समय से विवाद रहा है। इंटक के एक गुट का प्रतिनिधित्व राजेंद्र सिंह करते हैं तो दूसरे का ददई दुबे। कांग्रेस भवन में हाल में हुई गोली चलाने की घटना के बाद से राजेंद्र सिंह और मन्नान मल्लिक के बीच भी संबंध मधुर नहीं रहे हैं। कांग्रेस प्रदेष प्रभारी बीके हरिप्रसाद के पहली बार रांची आगमन पर प्रदेश कार्यालय में मन्नान और राजेंद्र सिंह गुट में भिड़ंत हो गई थी। जिसमें राजेंद्र सिंह के बेटे और युवा कांग्रेस के अध्यक्ष जयमंगल सिंह उर्फ अनुप सिंह के बाॅडीगार्ड ने फायरिंग कर दी थी। जिसके बाद मन्नान मलिक ने राजेंद्र सिंह और उनके बेटे के खिलाफ रांची कोतवाली थाने में नामजद प्राथमिकी दर्ज कराई थी। 

बंधु का भी बना रहा दवाब: हेमंत सरकार के मंत्रीमंडल विस्तार में निर्दलीय विधायक बंधु तिर्की का भी दबाव विलंब का कारण रहा। मंत्री पद की कुर्सी के लिए बंधु तिर्की ने जिद पकड़ ली और अपने साथ चमरा लिंडा को जोड़े रखा। दोनों ने कांग्रेस के आला नेताओं से मुलाकात कर कई षर्तें रख दी। जिसमें मंत्री पद के अलावे स्थानीय नीति, सरना कोड और लोहरदगा लोस सीट षामिल थी। कांग्रेस ने भी बड़ी चाल चलते हुए बंधु तिर्की को पहले पार्टी में षामिल होने की शर्त रख दी और लोगों को लगने लगा कि बंधु तिर्की के साथ चमरा लिंडा भी कांग्रेस में जल्द ही षामिल होंगे लेकिन वो इस मामले पर फैसला नहीं ले सके। इसी बीच बंधु तिर्की के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में जांच षुरू हो गई, जिससे कांग्रेस को उनसे किनारा करने का बढि़या मौका मिल गया। अगर बंधु तिर्की को कांग्रेस में षामिल कर मंत्री पद की कुर्सी दी जाती तो पार्टी के भीतर ही घमासान मच जाता। बंधु को पार्टी में षामिल किए जाने की खबर के दौरान ही योगेंद्र साव ने बगावती तेवर दिखा दिया था। उन्होंने साफतौर पर कह दिया था कि बंधु को मंत्री बनाए जाने से कांग्रेस के पुराने नेता और कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरेगा। बंधु के अनिर्णय और कानूनी षिकंजे ने कांग्रेस की राह आसान कर दी। बंधु तिर्की खुले तौर पर तो विरोध जताने की स्थिति में नहीं हैं लेकिन दिल का खुन्नस आने वाले दिनों में सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं। 

आसान नहीं है सीएम के लिए राह: सूबे में सरकार तो बनी है हेमंत सोरेन के नेतृत्व में और उसमें कांग्रेस कांग्रेस के साथ राजद और निर्दलीय शामिल हैं लंकिन सही मायनों में देखा जाए तो सरकार का असली रिमोट कंटोल कांग्रेस के हाथों में है। कांग्रेस ने को-आर्डीनेशन और माॅनिटरिंग कमेटी का गठन किया है। जिसके अध्यक्ष क्रमषः बीके हरिप्रसाद और जयराम रमेष हैं। सदस्यों की संख्या कांग्रेसियों की अधिक है, एक तरह से कांग्रेस ने एकतरफा कमेटी घोशित कर झामुमो और राजद को नाम देने को कह दिया है। निर्दलीयों को सरकार में शामिल किया ही नहीं गया इन कमेटी में भी उन्हें जगह नहीं दी गई है। सीएम को सारे फैसले दिल्ली के निर्देष पर ही लेने पड़ सकते हैं। ऐसे में इस सरकार से आम जनता को कितनी राहत मिलेगी इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। 




(कुमार गौरव)
रांची 

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