केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को ध्वनिमत से आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने की स्थिति में जनप्रतिनिधियों की सदस्यता बचाने के लिए लाए गए विवादास्पद अध्यादेश को वापस लेने का फैसला किया। इस अध्यादेश को लेकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से तीखी बयानबाजी की थी। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद संवाददाताओं के सामने घोषणा की कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 20 मिनट तक चली बैठक की अध्यक्षता की। संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिस्सा लेकर प्रधानमंत्री मंगलवार रात स्वदेश लौटे हैं। तिवारी ने मीडिया को बताया, "सरकार ने सर्वसम्मति से इस अध्यादेश को वापस लेने का फैसला किया है।"
सर्वोच्च न्यायालय के एक हालिया फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए लाया गया यह अध्यादेश अभी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास विचाराधीन है। सर्वोच्च न्यायालय ने दोषी ठहराए जाने के बाद जनप्रतिनिधियों को उनके संबंधित विधायिका की सदस्यता से अयोग्य करार देने की व्यवस्था दी है। तिवारी ने कहा, "जहां तक विधेयक का संबंध हैं तो यह अब संसद की संपत्ति है। उपयुक्त समय पर उसे भी वापस लिया जाएगा।"
मंत्री ने यह भी साफ किया कि बुधवार के कदम को अध्यादेश लाने के फैसले का हिस्सा रहे प्रधानमंत्री के प्राधिकार को नजरअंदाज करने के रूप में नहीं देखा जाए। उन्होंने कहा, "लोकतंत्र सरकार का कोई अखंड व्यक्तिवादी पद्धति नहीं होती है। हम विभिन्न विचारों का सम्मान करते हैं और राहुल गांधी ने एक विचार को व्यक्त किया है।" तिवारी ने कहा कि गांधी का शुक्रवार को अध्यादेश के खिलाफ बिफरना संभवत: 'उस व्यापक फीडबैक पर आधारित था जो उन्हें हासिल हुआ होगा।'
"उन परिस्थितियों के आलोक में मंत्रिमंडल के फैसले पर पुनर्विचार किया गया और यह तय किया गया कि हम अध्यादेश और विधेयक दोनों ही वापस लेंगे।" "दूसरी तरफ इससे यह भी झलकता है कि आप एक ऐसी सरकार हैं जो अपनी प्रकृति में व्यक्तिवादी नहीं है।" "यदि आप एक उदार नजरिए से देखेंगे तो आप केवल यही पाएंगे कि हम विचारों (दूसरों) के प्रति संवेदनशील हैं।"
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