नोएडा से ग्रेटर नोएडा के बीच मेट्रो रेल जयपुर की तर्ज पर दौड़ेगी। वहां डीएमआरसी ने 18 सितंबर को 9.25 किमी का निर्माण शिलान्यास के बाद ढाई साल में पूरा किया है। इसमें एक साल परिचालन और रखरखाव भी शामिल है। केंद्र से अनुमति मिलने के बाद ग्रेटर नोएडा के मामले में डीएमआरसी निर्माण के बाद पांच साल एक निश्चित फीस पर परिचालन व रखरखाव करेगी। हालांकि ग्रेटर नोएडा में मेट्रो रेल 2018 से पहले मिलने की संभावना नहीं है।
यूपी कैबिनेट ने जिस 29.7 किमी के प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है उसमें 22 स्टेशन बनेंगे। अच्छी बात यह है कि सभी स्टेशन एलिवेटेड या भू-स्तर पर हैं, इसलिए निर्माण में समय भूमिगत के मुकाबले थोड़ा कम लगेगा। केंद्र व राज्य सरकार से 50:50 हिस्सेदारी के पैटर्न पर निर्माण के कारण शहरी विकास मंत्रालय की अनुमति अनिवार्य है।
डीएमआरसी के ऑपरेशन से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि नोएडा सिटी सेंटर अभी दिल्ली के नेटवर्क से जुड़ा है। ग्रेटर नोएडा से नोएडा सिटी सेंटर का स्टेशन जुड़ते ही ग्रेटर नोएडा की नजदीकी दिल्ली से बढ़ जाएगी।फेज-तीन में बॉटनिकल गार्डन से जनकपुरी वेस्ट कॉरिडोर तैयार हो जाएगा जिसके कारण ग्रेटर नोएडा से दक्षिण दिल्ली व पश्चिम दिल्ली आवागमन आसान हो जाएगा। करीब सवा घंटे में दक्षिण दिल्ली के कालकाजी और नेहरू प्लेस पहुंच सकेंगे। इस नजदीकी के कारण ग्रेटर नोएडा में प्रॉपर्टी की कीमतें भी बढ़नी तय हैं।
नोएडा से ग्रेटर नोएडा को कनेक्शन देने वाला प्रोजेक्ट जब 2018-19 में बनकर तैयार होगा, उससे पूर्व डीएमआरसी का 320 किमी नेटवर्क तैयार होगा। अभी 190 किमी है जबकि बाकी फेज-तीन में निर्माणाधीन या प्रस्तावित है। मसलन जब ग्रेटर नोएडा से जुड़ेंगे तो दिल्ली, गुड़गांव, फरीदाबाद, बहादुरगढ़ आपस में जुड़ जाएंगे। फेज-तीन में मुकुंदपुर से मुकुंदपुर का एक रिंग तैयार हो रहा है जो सभी कॉरिडोर को आपस में जोड़ेगा। इतना ही नहीं डीएमआरसी फेज-चार का डीपीआर भी बना रही है। उम्मीद है ग्रेटर नोएडा निर्माण शुरू होने तक फेज-चार के डीपीआर को भी सरकार से मंजूरी मिल जाए।
मेट्रो निर्माण से जुड़े एक्सपर्ट बताते हैं कि समझौता साइन होने के बाद एक साल टेंडर-शिलान्यास में लगेंगे। फिर 29.7 किमी निर्माण में साढ़े तीन से चार साल का समय लगेगा। जबकि केंद्र सरकार से मदद लेने के लिए प्रोजेक्ट को शहरी विकास मंत्रालय और फिर ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स से अनुमति की जरूरत होगी। अभी राज्य सरकार की कैबिनेट की स्वीकृति मिली है। चुनाव पूर्व केंद्र से अनुमति नहीं मिली तो केंद्र में आने वाली सरकार पर निर्भरता रहेगी। मतलब समझौता साइन होने में भी अभी समय लगेगा। उल्लेखनीय है कि यूपी में सचिव स्तर पर कॉरिडोर निर्माण को 23 जुलाई को अनुमति मिली थी और कैबिनेट से स्वीकृति मिलने में दो महीने 10 दिन लग गए।
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