देवी उपासना का सीधा संबंध स्त्री के वजूद और परम व्यापक अस्तित्व की मन से स्वीकार्यता से जुड़ा है जहाँ स्त्री को अपने से ऊपर और अपेक्षाकृत अधिक शक्तिमान स्वीकारा गया है और यह साफ-साफ कह दिया गया है कि इसके बगैर पुरुष का न अस्तित्व है, न सामथ्र्य।
शक्ति और शिव की वैदिक एवं पौराणिक अवधारणाओं, आदिकाल से लेकर अब तक स्त्री की ताकत पुरुषों से अधिक रही है, और रहेगी, इसे हर किसी को स्वीकारना होगा ही। आधुनिक युग में स्त्री से जुड़े सरोकारों ने आधुनिकता पायी है और ऎसे में स्त्री सार्वजनीन क्षेत्रों में अधिक व्यापकता के साथ अपने हुनर और ज्ञान से लोकमन और परिवेश में पूरी दृढ़ता से छायी रहने लगी है।
यह जमाने की जरूरत कहें या वैश्विक बदलाव का दौर, सभी जगह स्त्री की सत्ता को चाहे-अनचाहे स्वीकारा जाने लगा है। अपार ऊर्जा और शक्ति की पर्याय स्त्री के महत्त्व और सामथ्र्य को जहाँ स्वीकारा जाता है वहाँ स्त्री सृष्टि की भूमिका में होती है और सुनहरा संसार रचती चली जाती है। इसके विपरीत उसकी उपेक्षा और अस्वीकार्यता ही सारी समस्याओं, संघर्षों और संहार की जननी हो जाया करती है।
शक्ति की प्रतीक इस परम सत्ता का ही अंश स्त्री है। इसीलिए दुर्गा सप्तशती में समस्त विद्याओं की प्राप्ति और समस्त स्ति्रयों में मातृभाव की प्राप्ति के लिए स्पष्ट उल्लेख है- विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः, स्ति्रयः समस्ताः सकलाजगत्सु। त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्, का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्ति।
स्त्री कई रूपों में हमारे सामने होती है लेकिन प्रत्येक स्त्री का सीधा संबंध परम शक्ति से जुड़ा होता है। इस तथ्य को कोई स्वीकारे या नहीं, मगर इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं है। बात किसी भी प्रकार की साधना या कर्मकाण्ड की हो या फिर योग साधना की। किसी देवी के बिना देव में सामथ्र्य की कल्पना व्यर्थ हैं।
इसे आद्यगुरु शंकराचार्य ने स्पष्ट शब्दोें में व्यक्त किया है - शिवः शक्त्या युक्तो यदि भवति शक्तः प्रभवितुं। न चेदेवं देवो न खलु कुशलः स्पन्दितुमपि। अतस्त्वामाराध्यां हरि-हर-विरिन्च्यादिभिरपि। प्रणन्तुं स्तोतुं वा कथमकृतपुण्यः प्रभवतिः॥
इसी प्रकार कहा गया है - शक्ति विना महेशानि सदाहं शवरूपकः। अर्थात ि + शव = शिव। इसमें ‘ ि ’ को शक्ति माना गया है। शरीरस्थ चक्रों की बात करें तो उनमेें भी देवी प्रत्येक चक्र में अलग-अलग रूप में विद्यमान है। मूलाधार से लेकर सहस्रार तक देवी का प्रभुत्व है।
स्त्री में देवी तत्व को अपेक्षित श्रद्धा, सम्मान और आदर सहित स्वीकारते हुए ही लौकिक और पारलौकिक यात्रा को सहज एवं आनंददायी स्वरूप दिया जा सकता है। सृष्टि और संहार क्रम सिर्फ श्रीचक्र का ही विषय नहीं है बल्कि जीवनचर्या और दाम्पत्य से भी सीधा संबंध है।
स्त्री का कोई सा स्वरूप हो, कोई सा संबंध हो, सभी को आदर-सम्मान और संबल प्रदान करना हममें से प्रत्येक का फर्ज है। जो लोेग इस फर्ज पर खरे उतरते हैं वे जीवन के सत्य और लक्ष्य को सहजता से कम समय में प्राप्त कर लेते हैं। स्त्री के प्रति मनोमालिन्य रखने वाले लोग जीवन में कितने ही समृद्ध और तथाकथित लोकप्रिय जरूर हो सकते हैं मगर सफल नहीं कहे जा सकते।
आजकल स्त्री को लेकर लोगों का मनोविज्ञान विचित्रताओं से भरा होता जा रहा है। स्त्री के बारे में प्रत्यक्ष और परोक्ष टिप्पणियां करने वाले कायरों और पुरुषार्थहीन लोगों से जमाना भरा पड़ा है। कई लोगों को तो स्त्री के बारे मेंं टिप्पणियां करने और अनर्गल बातें करने में ही आनंद प्राप्त होता है और ऎसा वे न करें तो उनका दिन ही न निकले, रात को नींद भी न आये। फिर कई जगहों पर ऎसे लोगों के स्थायी समूह बन जाया करते हैं जो दिन-रात किसी न किसी स्त्री के बारे में अनर्गल चर्चाएं करते हुए टाईमपास करना ही अपनी जिन्दगी का लक्ष्य मान बैठे हैं। ऎसे खूब सारे लोग हमारे आस-पास भी हैं जो अनचाहे ही अपनी माँ-बहनों के व्यवहार और चरित्र पर कीचड़ उछालने में माहिर हो गए हैं।
स्त्री को वस्तु और भोग्या मानने वाले लोग जीवन में कभी सफल नहीं होते। दुनिया में ऎसा कोई उदाहरण नहीं है जिसमें स्त्री को भोग्या या वस्तु मानने वाले लोग जीवन में सफल रहे होें। इसके विपरीत स्त्री को शक्ति के अंश के रूप में स्वीकार कर आदर-सम्मान देने वाले लोग अमरकीर्ति को प्राप्त हुए हैं तथा उनका जीवन आनंद और सफलताओं से भरा रहा है।
इन दिनों नवरात्रि का पर्व है जिसे देवी उपासना का वार्षिक उत्सव माना जाता है। हर कोई देवी उपासना के रंग में रंगा हुआ है, चण्डी पाठ, देवी पूजा, मंत्रजाप से लेकर गरबों और जाने किन-किन अनुष्ठानों में लोग व्यस्त हैं। एक बात साफ तौर पर समझ लेनी चाहिए कि जो लोग स्त्री का आदर-सम्मान नहीं करते, उनके बारे में बकवास करते हैं, अनर्गल टिप्पणियों में रस लेते हैं, स्त्री को किसी भी रूप में प्रताड़ित करते हैं, मार-पीट और अपशब्दों का प्रयोग करते हैं, नुकसान पहुंचाते हैं, व्यभिचारी हैं उनमें से किसी को भी देवी उपासना का कोई अधिकार नहीं है। ऎसे लोग देवी उपासना के नाम पर जो कर रहे हैं वह पाखण्ड, आडम्बर, ढोंग और अभिनय से ज्यादा कुछ नहीं है।
देवी मैया को प्रसन्न करने और रखने के लिए यह संकल्प ले लें कि संसार की कोई सी स्त्री हमारे मन-कर्म और वचन से किसी भी प्रकार से आहत न हो। एक भी स्त्री हमसे नाराज होगी तो इसका सीधा सा अर्थ है अपने द्वारा की जाने वाली देवी पूजा का कोई फल नहीं मिलने वाला।
स्ति्रयों के भीतर समाहित शक्ति तत्व को जानें-पहचानें और उनका आदर करें, तभी देवी प्रसन्न हो सकती है। नवरात्रि से लेकर साल भर भले कितने ही मन्दिरों के घण्टे हिला लें, मन्दिरों की खाक छान लें और नवचण्डियाँ-सहस्रचण्डियाँ व करोड़ों जप कर लें, इससे कुछ फायदा होने वाला नहीं।
कोई व्यक्ति कुछ न करे, सिर्फ अपने घर-परिवार से लेकर अपने से संबंधित सभी प्रकार की स्ति्रयों का अन्तर्मन से आदर-सम्मान ही करता रहे, तो देवी बिना किसी साधना और परिश्रम के अपने आप प्रसन्न हो जाती है। यह बहुत से देवी साधकों को प्रत्यक्ष अनुभव रहा है।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com
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