कोई भी कवि अपनी काव्य-रचना के माध्यम से आम आदमी की जीवन-स्थितियों तक पहुँचना चाहता है। इसलिए कि जो सच्चा कवि होता है वह आम आदमी की जीवन स्थितियों का ही चित्रण करता है। इन्हीं विचारों को उद्घाटित करने के ख्याल से प्रगतिशील लेखक संघ के तत्वावधान में ’लेखराज परिसर’, इस्ट पटेल नगर, पटना में एक कवि समागम का आयोजन किया गया। इस कवि समागम की अध्यक्षता शायर आरपी घायल ने की। मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि भगवती प्रसाद द्विवेदी थे तथा संचालन कवि शहंशाह आलम ने किया।
इस अवसर पर सर्वप्रथम डा. रानी श्रीवास्तव ने सुनाया कि ’मैं दीया नहीं थी/ जोकि तेल और बाती देकर/ फिर से जलाई जा सकूँ/ मैं तो एक मोमबत्ती थी/ जिसे तुम जलाकर चले गए थे/ और मैं प्रतीक्षा करती रही/ अहर्निश जलती रही/ चुपचाप..
कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए समकालीन हिन्दी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर मुकेश प्रत्यूष ने अपनी ताज़ा कविता सुनाते हुए श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया- ’हाशिये पर बदले जा सकते हैं/ रोशनाई के रंग’। वहीं युवाकवि शहंशाह आलम ने अपनी कविता ’अभिनेत्री’ का पाठ करते हुए वर्तमान समय कुछ इस प्रकार चोट किया- एक अभिनेत्री तब भी कर रही होती है/ अठखेलियाँ दृश्यपटल पर/ सौ बार जलती और बुझती है/ जब किया जा रहा होता है/ नाभिकीय करार दो सरकारों के बीच। वरिष्ठ कवि भगवती प्रसाद द्विवेदी उपस्थित श्रोताओं को ’अपनों से कट/ अनजानों से जुड़ना भी क्या जुड़ना है’ जैसी पंक्तियाँ सुनाकर झूमने पर मजबूर कर दिया। जबकि चर्चित शायर संजय कुमार कुमार कुन्दन ने सुनाया- तुमसे मिलने का/ मुझे कोई बहाना न मिला। कवि कुमार उत्पल का कहना था- ’लाख जतन करो/ जिन्दगी यूँ ही खत्म हो जाएगी/ जिन्दगी ऎसे जियो/ कि मरकर भी नाम्कर जाओ’। मधेपुरा से पधारे कवि अरविन्द श्रीवास्तव ने जीवन को इस तरह रेखाँकित किया- ’अच्छा लगा/ प्रेम में पहाड़ बनना/ और अच्छा लगा उस पहाड़ का/ प्रेम में पिघल जाना’। आरपी घायल नें अपनी गज़लों से श्रोताओं को प्रभावित किया। कवि रमेश पाठक, एमके मधु, परमानन्द राम, युवाकवि अमरदीप कुमार आदि ने भी ’कवि समागम’ को यादगार बना दिया। धन्यवाद ज्ञापन श्री विधु चिरंतन ने किया।
-अरविन्द श्रीवास्तव/ मधेपुरा
मोबाइल- 9431080862.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें