मंगलयान पृथ्वी की नियत कक्षा में स्थापित. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 6 नवंबर 2013

मंगलयान पृथ्वी की नियत कक्षा में स्थापित.

ध्रुवीय रॉकेट के माध्यम से भारत ने मंगलवार को सफलतापूर्वक अपना पहला मार्स आर्बिटर मिशन (एमओएम) प्रक्षेपित किया जिसके बाद मंगल यान विधिपूर्वक पृथ्वी की नियत कक्षा में प्रवेश कर गया। इसके साथ ही भारत का नाम अंतर ग्रह अभियान से जुड़े चुनिंदा देशों में शामिल हो गया।

नये एवं जटिल अभियान प्रारूप के तहत इसरो का पीएसएलवी सी 25 यान 1350 किलोग्राम के मंगलयान को 44 मिनट बाद पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश कराने में सफल रहा, जिसका प्रक्षेपण दोपहर 2 बजकर 38 मिनट पर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किया गया। इस तरह 450 करोड़ रुपये के अभियान का पहला चरण संपन्न हो गया।

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में नये क्षेत्र में प्रवेश करने वाले इसरो के मंगल अभियान का उद्देश्य देश की मंगल ग्रह पर पहुंचने की क्षमता स्थापित करना और मंगल पर मीथेन की मौजूदगी पर ध्यान केंद्रित करना है जो मंगल पर जीवन का संकेत देता है। इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने प्रक्षेपण के बाद कहा कि पीएलएलवी सी 25 यान ने मार्स आर्बिटर को विधिपूर्वक पृथ्वी की दीर्घवृताकार कक्षा में प्रवेश कराया।

अभियान के नियंत्रण कक्ष से उन्होंने कहा कि यह ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) का 25वां प्रक्षेपण है और यह नये एवं जटिल अभियान प्रारूप के तहत किया गया है ताकि हम मार्स आर्बिटर यान को पृथ्वी की कक्षा से मंगल की कक्षा में न्यूनतम ऊर्जा में भेज सकें। पृथ्वी की दीर्घवृत्ताकार कक्षा में 20.25 दिन तक चक्कर लगाने के बाद 450 करोड़ रुपये की लागत वाला सुनहरे रंग की छोटी कार के आकार का यान 30 नवम्बर देर रात 12 बजकर 42 मिनट पर मंगल की 10 महीने की लंबी यात्रा पर रवाना होगा। इसके लाल ग्रह की कक्षा में 24 सितम्बर 2014 को पहुंचने और उसकी दीर्घवृत्ताकार कक्षा में चक्कर लगाने की उम्मीद है।

राहत महसूस कर रहे राधाकृष्णन ने प्रसन्न मुद्रा में कहा कि मुझे यह बताने में काफी खुशी हो रही है कि अंतरिक्ष यान अच्छी स्थिति में है। उसने वह काम किया जो उसे दिया गया था। रॉकेट ने दक्षिण अमेरिका के ऊपर उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश कराया जिसे दक्षिण प्रशांत महासागर में शिपिंग कारपोरेशन ऑफ इंडिया के पोत एससीआई नालंदा और एससीआई यमुना पर इसरो के समुद्र आधारित टर्मिनल ने कैद किया। उम्मीद के अनुरूप तीसरे चारण के आगे बढ़ने और चौथे चरण के प्रज्वलन के संकेत अभियान नियंत्रण केंद्र को मिले। राधाकृष्णन ने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती अंतरिक्ष यान को मंगल की ओर विधिपूर्वक भेजने की है। हम देखेंगे कि हम 24 सितंबर 2014 को परीक्षा में पास होते हैं। इसरो के प्रक्षेपण यान पीएसएलवी सी 25 का यह ऐतिहासिक प्रक्षेपण अपराह्न दो बजकर 38 मिनट पर चेन्नई से करीब 100 किलोमीटर दूर यहां स्पेसपोर्ट से किया गया।

इस मौके पर प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री वी नारायणसामी, भारत में अमेरिका की राजदूत नैंसी पावेल, इसरो अध्यक्ष के राधाकृष्णन और अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। मंगल ग्रह की यात्रा के दौरान यह 20 करोड़ किलोमीटर की लम्बी यात्रा करेगा। मंगल यान में पांच वैज्ञानिक उपकरण लगे हैं, इन उपकरणों में लाइमैन अल्फा फोटोमीटर, मीथेन का पता लगाने वाला मीथेन सेंसर फार मार्स, मार्स एक्सोफेरिक न्यूट्रल कंपोजिशन एनालाइजर, मार्स कलर कैमरा और थर्मल इंफ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर शामिल है। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, अमेरिका की नासा, रूस की रॉसकॉसमॉस तीन अंतरिक्ष एजेंसियां हैं जिन्होंने मंगल ग्रह के लिए अपने अभियान भेजे हैं। अगर यह अभियान पूरी तरह से सफल होता है तो भारत इस समूह में शामिल हो जायेगा। पीएसएलवी सी25 के एक्सएल संस्करण से वर्ष 2008 में देश के पहले चंद्र अभियान चंद्रयान एक को प्रक्षेपित किया गया था।

मंगल ग्रह के लिए एमओएम के अलावा अब तक 51 अभियान हुए हैं लेकिन केवल 21 अभियान ही सफल रहे हैं। आने वाले 10 दिनों में भारत के मंगल अभियान के संदर्भ में इसके अगली कक्षा में जाने की प्रक्रिया से जुड़े़ छह अहम चरण हैं। आसमान को चीरते तथा आग एवं धुएं के गुबार छोडता हुआ यान बादलों के बीच गायब हो गया जबकि मिशन कक्ष में बैठे वैज्ञनिक कम्प्यूटर पर इस दृश्य को देख भावविभोर हो गए और तालियां बजाकर और एक दूसरे को गले लगा कर बधाई दी।

मंगल अभियान नियंत्रण कक्ष में वैज्ञानिक कम्प्यूटर पर प्रक्षेपण के मार्ग पर नजर टिकाये हुए थे। मंगल यान के प्रक्षेपण के कुछ घंटे पहले हालांकि हल्की बूंदाबांदी हुई थी। तनाव भरा क्षण तीसरे चरण के बाद सामने आया जब रॉकेट प्रज्वलित हो गया और स्क्रीन पर इसके मार्ग पर आगे बढ़ने के संकेत अदृश्य हो गए। राधाकृष्णन ने पहले स्पष्ट किया था कि रॉकेट करीब 28 मिनट तटानुगमन चरण में होगा जिस क्रम में 10 मिनट पूरी तरह से नहीं दिखाई पड़ने वाला चरण (ब्लाइंड फेज) होगा। इसरो प्रमुख ने कहा कि मार्स आर्बिटर पर लगे पांच सुंदर उपकरण भारतीय वैज्ञानिक समुदाय को महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करायेंगे। एलएपी और एमएसएम वायुमंडलीय अध्ययन में मदद करेंगे, एमईएनसीए वायुमंडलीय कणों के अध्ययन पर केंद्रित होंगे। एमसीसी और टीआईएस लाल ग्रह की सतह के चित्र लेने में योगदान देंगे। इसरो ने इस अभियान के संदर्भ में नासा के साथ सहयोग किया है जिसके तहत अमेरिका के गोल्डस्टोन स्थित जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरीज की सुविधा, मैड्रिड (स्पेन) और केनबरा (ऑस्ट्रेलिया) स्थित केंद्रों से अभियान के संदर्भ में संवाद बनाया गया।

भारतीय उपग्रह का जीवन अतिरिक्त ईंधन की जरूरत पर आधारित है क्योंकि मार्स आर्बिटर को 10 महीने का लम्बा अभियान को पूरा करना है। अभियान की लागत पर आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए राधाकृष्णन ने कहा कि एमओएम मंगल के लिये सबसे सस्ते एवं कम लागत के अभियान में है। यह अभियान मंगल के सतह से जुड़ी विशेषताओं, आकृति, खनिज विज्ञान और इसके पर्यावरण की स्वदेशी वैज्ञानिक उपकरणों से पड़ताल करेगा।

अमेरिका ने भी फ्लोरिडा स्थित केप कैनवरल वायुसेना अड्डे से 18 नवंबर को नासा के मल्टी कॉरपोरेशन मिशन मावेन का प्रक्षेपण करने का कार्यक्रम बनाया है जो मंगल के वायुमंडल पर बदलाव का अध्ययन करेगा। मानवरहित मंगल अभियान के संदर्भ मे छोटे उपग्रह के प्रक्षेपण को भारत एक ऐसे अवसर के तौर पर देख रहा है जो उसे लाल ग्रह पर पहुंचने वाले पहले एशियाई देश बनने का मौका दे रहा है। विशेषतौर पर तब जब रूसी अभियान के तहत नवंबर 2011 में मंगल पर भेजे जाने वाला पहला चीनी उपग्रह विफल हो गया था।

उपग्रह पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर निकलने में विफल रहा था। 1998 में जापान भी ऐसे ही प्रयास में विफल रहा था। गौरतलब है कि पिछले वर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर संबोधन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने औपचारिक तौर पर मार्स आर्बिटर मिशन की योजना की घोषणा की थी। अंतरिक्ष केंद्र के प्रमुख ने कहा कि टीमवर्क और समर्पण के साथ आज कोई भी अभियान हमारी क्षमता से बाहर नहीं है। इसरो के प्रमुख के राधाकृष्णन ने कहा कि एमओएम मुख्य रूप से प्रौद्योगिकी प्रदर्शन अभियान है ताकि मंगल की कक्षा में प्रवेश करने की भारत की क्षमता का प्रदर्शन किया जा सके जो एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। ध्रुवीय राकेट द्वारा प्रक्षेपित एमओएम अमेरिका, यूरोपीय और रूसी समकक्ष की तुलना में छोटा है जो पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल से सीधे बाहर निकल सकता है। इसके प्रक्षेपण की लागत अमेरिकी अभियान के तुलना में इसका छठा हिस्सा है। ऐसे अभियान पर अमेरिका ने 45.5 करोड़ डॉलर खर्च किया था।

राधाकृष्णन ने कहा कि नये और जटिल मंगल अभियान के लिए वह पूरे इसरो समुदाय का नमन करते हैं। उन्होंने कहा कि यह सटीक अभियान है। लेकिन यह पहला कदम है और कई और पार करने हैं। हमने पहला मील का पत्थर पार कर लिया है। मैं पूरे इसरो टीम को धन्यवाद देता हूं। कोई भी अभियान हमारी क्षमता से बाहर नहीं है। इसरो के पूर्व अध्यक्ष ने अभियान की आलोचनाओं का जवाब देते हुए कहा कि हमने एक रॉकेट पर 450 करोड़ रुपये खर्च किये हैं। इस पर इतना हो-हल्ला क्यों, जबकि हम दीवाली पर पटाखों पर 5000 करोड़ रुपये खर्च कर देते हैं।

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