आज भले ही ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय शिक्षा और ज्ञान का केंद्र माने जाते हैं, लेकिन कई सदी पहले बिहार में नालंदा विश्विद्यालय पूरी दुनिया में शिक्षा और ज्ञान का केंद्र था। पांचवीं सदी में एशिया के विभिन्न इलाकों के छात्र इस विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए आते थे, लेकिन बाद में हमलावरों ने इसे नष्ट कर दिया। अब 21वीं सदी में एकबार फिर इस प्राचीन अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की गरिमा को बहाल करने की योजना है।
योजना के मुताबिक, वर्ष 2014 से इस विश्वविद्यालय में पढ़ाई प्रारंभ होने की संभावना है। प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहर के नजदीक एक अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाने की योजना बनाई गई है, जहां दुनिया भर के छात्र और शिक्षक एक साथ मिलकर ज्ञान अर्जित कर सकेंगे। इस नए विश्वविद्यालय में न केवल प्राचीन विषयों की, बल्कि आधुनिक विषयों की भी पढ़ाई होगी।
अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ़ गोपा सबरवाल ने कहा, शैक्षणिक सत्र सितंबर 2014 से शुरू हो जएगा। इस सत्र में 40 विद्यार्थी प्रवेश पा सकेंगे। इसके लिए दिसंबर में प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।'' उन्होंने बताया कि शैक्षणिक सत्र 2014-15 में दो स्कूलों, इतिहास और पर्यावरण अध्ययन खुल जाएगा। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय का चाहरदीवारी का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है। विश्वविद्यालय के भवन निर्माण का कार्य 2021 तक पूरा कर लेने का लक्ष्य रखा गया है।
नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि हमारा काम नए विश्वविद्यालय की स्थापना करना और पढ़ाई शुरू करना है, जिससे यह स्थान एक बार फिर शिक्षा का केंद्र बन सके। यह एक शुरुआत है। उन्होंने कहा कि पुराने विश्वविद्यालय को ख्याति प्राप्त करने में दो सौ वर्ष का समय लगा था, लेकिन वर्तमान समय में दो दशक तो लगेंगे ही। उल्लेखनीय है कि प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहर से करीब 10 किलोमीटर दूर राजगीर में बनाए जा रहे इस विश्वविद्यालय की योजना की घोषणा वर्ष 2006 में भारत, चीन, सिंगापुर, जापान और थाइलैंड ने की थी और बाद में यूरोपीय संघ के देशों ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई।
विश्वविद्यालय के आसपास के करीब 200 गांवों के भी विकास करने की योजना बनाई गई है। एक अधिकारी ने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक इस विश्वविद्यालय की आधारभूत संरचना के लिए करीब 1000 मिलियन डॉलर के खर्च होने की संभावना है। प्रारंभ में पूर्व नालंदा अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की परिकल्पना पूर्व राष्ट्रपति डां ए पी जे अब्दुल कलाम ने की थी। कलाम उस समय जिले में एक रेल कोच कारखाने का शिलान्यास करने आए थे। नीतीश कुमार उस समय केंद्र सरकारी में रेल मंत्री थे और कलाम ने उनसे नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की चर्चा की थी। इसके बाद नीतीश कुमार ने इसके स्थापना की पहल की।
गौरतलब है कि पांचवीं सदी में बने प्राचीन विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जिनके लिए 1500 अध्यापक हुआ करते थे। छात्रों में अधिकांश एशियाई देशों चीन, कोरिया, जापान से आने वाले बौद्ध भिक्षु होते थे। इतिहासकारों के मुताबिक चीनी बौद्ध भिक्षु ह्वेनसांग ने भी सातवीं सदी में नालंदा में शिक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने अपनी किताबों में नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता का जिक्र किया है।
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