- वर्तमान सरकार और उनके नौकरशाहों को भले ही यह खबर मनोबल तोड़ने वाली हो। लेकिन शतप्रतिशत सत्य है। दूध जला लोग छाछ भी फूंक-फूंक कर पीते हैं। पक्षियों को शांतचित जगह नहीं मिलती है तो आशियाना बदल लेते हैं। ठीक इसी तरह 10 महादलितों ने आशियाना स्थल ही बदल लिये।
भोजपुर। बिहार सरकार के द्वारा 9 दिसम्बर,2011 को 14 महादलितों को जमीन का पर्चा मिला। 25 साल के लम्बे इतिहास के बाद सरकारी कागज मिला। इसको पाकर महादलितों की खुशी खत्म होती। उसपर संगठित दबंगों ने जमीन पर अधिकार पाने के लिए महादलितों को दबाने लगे। आखिरकार दबंगों के करतूतों के कारण ही महादलितों को विस्थापित होना पड़ा। सरकार के तमाम कानून दबंगों के आगे छोटा पड़ गया।
नक्सल प्रभावित क्षेत्र भोजपुर जिले का मामलाः
नक्सल प्रभावित क्षेत्र भोजपुर जिले के गड़हनी प्रखंड का मामला है। इस प्रखंड में बलिगांव नामक ग्राम पंचायत है। इस पंचायत की मुखिया धनकेशरी देवी हैं। जो महिलाओं की इज्जत सुरक्षित रखने में अक्षम हैं। उनके मुखिया पति आनंद पासवान ही पंचायतों के कार्य में दखलांदाजी किया करते हैं। इसके कारण महिला मुखिया से उम्मीद करना बेईमानी है। खैर, इस पंचायत में महथिन टोलाडीह है। यहां पर 25 साल से महादलित पासी समुदाय के लोग रहते थे। गौपाल चौधरी का कहना है कि जिस जमीन पर हम लोग रहते थे। उसी जमीन का पर्चा सरकार के द्वारा 9 दिसंबर,2011 को मिला।
जब सरकार के द्वारा जमीन का पर्चा मिलाः
जब सरकार के द्वारा जमीन का पर्चा मिल गया। तब महथिन टोला गांव के दबंग सर्वश्री शिवराज महतो,चन्द्रशेखर महतो,कृष्णा बिहारी, समई यादव, श्रीभगवान यादव आदि मिलकर कहने लगे कि जो महथिन टोलाडीह की जमीन मिली है। वह जमीन हमलोगों की है। जमीन पर हकमारी करने के बाद जबरन जमीन को मिट्टी से भरवाने भी लगे। इतना होने के बाद भी जमीन के पर्चाधारी महादलितों ने कहा कि सरकार के द्वारा पर्चा दी गयी है। इतना कहने के बाद भी दबंगों पर कोई असर नहीं पड़ा। उल्टे गाली-गल्लोज करने पर उतर गये। इस बीच महादलितों को धमकाने लगे कि ताकि जमीन छोड़कर भाग खड़ा हो जाए। अगर नहीं भागते हो जमीन पर जबरन कब्जा कर लेंगे। इतना हो ही रहा था कि लाठीधारी आकर लाठी चलाने लगे। लाठी चलाने से दहशत पैदा नहीं कर सकने पर दबंगों ने गोली चालन भी कर दिया। इस गोली चालन से 6 महादलित घायल हो गये। घायल होने वालों में गोपाल चौधरी,अशोक चौधरी, मुन्ना चौधरी, लक्ष्मी देवी,बुधन चौधरी और दुधनाथ चौधरी शामिल हैं। इसमें दो पूर्णतः विकलांग हो गये। जिस जमीन पर विवाद उत्पन्न हुआ। उसी जमीन पर घर बनाकर रहने वालों की पूरी संपति लूट ली गयी। इसमें गोपाल चौधरी के धान कूटने वाली और गेहूं पीसने वाली मशीन भी शामिल है। पुलिस को सूचना दी गयी। आते ही भीड़ और हमलावर को हटाने के लिए लाठी-डंडा चलाने लगी। पुलिस ने भीड़ वाली महिलाओं को भी खबर ले ली। जमकर पिटाई की गयीं। कोई 2 दर्जन पुलिस के जवान आ धमके थे।
घायलों का इलाज सदर अस्पताल, आरा में हुआः
लाठी-गोली से घायल गोपाल चौधरी,अशोक चौधरी, मुन्ना चौधरी, लक्ष्मी देवी,बुधन चौधरी और दुधनाथ चौधरी का इलाज सदर अस्पमाल, आरा में हुआ। दवा-दारू मिलने के बाद घायल ठीक हो गये। सभी महादलितों ने निर्णय किया कि सरकार के द्वारा पर्चा मिली जमीन पर जाकर नहीं बसेंगे। अगर फिर से उक्त जमीन पर कदम रखेंगे। तो इस बार दबंग गोली मारके हत्या करने से बाज नहीं आएंगे। कारण कि इतना अत्याचार करने के बाद भी पुलिसिया कार्रवाई दबंगों के ऊपर नहीं की गयी।
चिड़ियों की तरह आशियाना बदल लिये:
वर्तमान सरकार और उनके नौकरशाहों को भले ही यह खबर मनोबल तोड़ने वाली हो। लेकिन शतप्रतिशत सत्य है। दूध जला लोग छाछ भी फूंक-फूंक कर पीते हैं। पक्षियों को शांतचित जगह नहीं मिलती है तो आशियाना बदल लेते हैं। ठीक इसी तरह 10 महादलितों ने आशियाना स्थल ही बदल लिये। इनका नाम गोपाल चौधरी, दुधनाथ चौधरी, बुधन चौधरी, चंदन चौधरी सत्येन्द्र चौधरी, अशोक चौधरी, मुन्ना चौधरी, भरत चौधरी, विजय चौधरी और रामजी चौधरी है। महथिन टोलाडीह को अलविदा कहकर धवनियां गांव में जाकर बस गये हैं। बहुत ही छोटा-सा घर बना रखा है। न्यूनतम जरूरतों को पूर्ण करने में समर्थ नहीं हो पा रहे हैं। सरकार को महादलितों की सुधि लेनी चाहिए।
सरकार के द्वारा पर्चा मिला तब भी विस्थापिथ हो गयेः
बिहार सरकार के द्वारा 9 दिसम्बर,2011 को 14 महादलितों को जमीन का पर्चा मिला। 25 साल के लम्बे इंतजार के बाद सरकारी कागज मिला। इसको पाकर महादलितों की खुशी खत्म होती। उसपर संगठित दबंगों ने जमीन पर अधिकार पाने के लिए महादलितों को दबाने लगे। आखिरकार दबंगों के करतूतों के कारण ही महादलितों को विस्थापित होना पड़ा। सरकार के तमाम कानून दबंगों के आगे छोटा पड़ गया।
क्या बिहार में सुशासन की सरकार है?
एक सवाल उठ रहा है। क्या बिहार में सुशासन की सरकार है? खुद सरकार के कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह भी मुद्दा उठाएं हैं। सूबे के नौकरशाहों के आगे जन प्रतिनिधियों का चलता नहीं है। इसी तरह का विचार बी.जे.पी. की विधायक प्रो. उषा विघार्थी का भी है। तो किस तरह वर्तमान समय में आम आमदी का काम हो सकेंगा? वह सोचनीय है। विलम्ब से ही सही जो खबर प्राप्त है जो दिल दहला देने वाली है। दबंगों के इशारे पर पुलिस ने महिला को भी अपमानित और धुलाई करने से बाज नहीं आयी।
आलोक कुमार
बिाहर
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