करीब एक दशक पहले राष्ट्रीय परिदृश्य में एक नाम सहसा सुर्खियों में छा गया। नाम था धनंजय चटर्जी। मामला पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता का था। धनंजय के सुर्खियों में आने के पीछे वजह अदालत द्वारा उसे फांसी की सजा सुनाया जाना था। जिस पर अमल भी शुरू हो गया। धनंजय को फांसी पर लटकाए जाने का दिन निर्धारित हो गया।इस बीच उच्चत्तम न्यायालय और तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उसकी दया याचिका दो बार खारिज कर दी। धनंजय पर कोलकाता के एक फ्लैट में नौकर का काम करने के दौरान अपने मालिक की नाबालिग बेटी से बलात्कार के बाद हत्या का आरोप था। पीड़ित गुजराती परिवार वारदात के बाद प्रदेश छोड़ कर चला गया।पीड़ित परिवार संपन्न था, जबकि मुजरिम धनंजय चटर्जी अत्यंत गरीब। लेकिन हमेशा गरीबों का पक्ष लेने वाली पश्चिम बंगाल की तत्कालीन वाममोर्चा सरकार धनंजय चटर्जी के प्रति किसी भी प्रकार की नरमी दिखाने से इन्कार करते हुए उसे अविलंब फांसी पर लटकाए जाने के पक्ष में थी।
हमेशा राजनीति से दूर रहने वाली तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की पत्नी माधवी ने एक सभा में धनंजय चटर्जी को फांसी दिए जाने को उचित ठहरा कर माहौल गरमा दिया। परिस्थितियां पूरी तरह से धनंजय चटर्जी के खिलाफ हो चुकी थी। लेकिन कुछ कारणों से जनता व नागरिक समाज के एक वर्ग में धनंजय चटर्जी के प्रति सहानुभूति थी। इसका कारण फांसी की सजा सुनाए जाने से पहले उसका लगातार 14 सालों तक विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में रहना था। धनंजय से हमदर्दी रखने वालों की दलील थी कि समाज में कितने ही तरह के अपराधी खुले आम घूम रहे हैं। ऐसे में एक ऐसे शख्स को जो एक अपराध में 14 साल की सजा पहले ही काट चुका है, उसे फांसी पर लटकाने का क्या औचित्य है। लोग उसकी फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के पक्ष में थे। बहरहाल भारी कौतूहल के बीच धनंजय चटर्जी को फांसी पर लटका दिया। करीब एक दशक बाद एक और धनंजय का नाम सुर्खियों में है। वह है बसपा सांसद धनंजय सिह का। माननीय से ज्यादा चर्चा में तो उनकी दूसरी पत्नी जागृति का नाम है।
जन्म से अंधे - नाम नयनसुख वाला हाल है। पति माननीय बन कर घूमते हैं, तो पत्नी दांतों की डाक्टर है। लेकिन कारनामे इतने घृणित और जघन्य की, कल्पना भी रोंगटे खड़ी कर दे। किसी मजबूरी में अपने यहां काम करने वाले नौकरों के साथ पाशविक व्यवहार व अत्याचार की घटना ने साबित कर दिया है कि दोनों समाज में रहने लायक नहीं है। यह मानने का पर्याप्त आधार हैं कि बेचारे पीडि़त अत्याचारियों के जुल्म को उनके रुतबे के खौफ से चुपचाप सहने को मजबूर थे। धनंजय और जागृति जैसे कुकृत्य तो कोई विक्षिप्त व मनोरोगी ही कर सकता है। फांसी पर लटकने वाला धनंजय चटर्जी तो गरीब था। यह धनंजय और उसकी पत्नी न सिर्फ कथित शिक्षित व संभ्रांत है, बल्कि समाज में सम्मानीय भी। इसलिए बगैर समय गंवाए इस दंपति का हश्र भी धनंजय चटर्जी जैसा होना जरूरी है।
तारकेश कुमार ओझा,
खड़गपुर ( प शिचम बंगाल)
लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं।
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