इस वर्ष पाँच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों एवं अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर राजीतिक सरगर्मियां चरम पर है. विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने फायर ब्रांड नेताओं को मैदान में अभी से उतार दिया है.
भारत एक बहुदलीय पद्धति वाला देश है. जाहिर है 7 राष्ट्रीय दलों समेत अनेक क्षेत्रीय दल है. चुनावों के इस मौसम में लगभग सभी दल अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रही है. फिर भी एक आम मतदाता की पीड़ा आज भी वही है जो आज से तक़रीबन 65 साल पहले थी. देश का कोई भी राजनितिक दल सर्वहारा के विकास के मानक पर फिट नहीं बैठ रहा है.
लगभग सभी राजनीति दल चाहे कांग्रेस हो, बीजेपी हो या वामपंथ हो. सब के चाल और चरित्र लगभग एक से है. सभी दल एक खास जाति, धर्म और क्षेत्र विशेष को लक्ष्य करके अपनी राजनीतिक हितों को साध रहे है. इन वर्षों में राजनीतिक दलों ने “भारतीयों” को अगड़ा, पिछड़ा, दलित, महादलित, अति पिछड़ा, में सिर्फ और सिर्फ बाँटने का काम किया है. एक खास वर्ग को ख़ुश करने के लिए हमारे माननीय नेतागण गलत और अप्रासंगिक बयानबाजी करते है.
16 वें लोकसभा का चुनाव में जहाँ बुनियादी सुविधाओं के अभाव, लगातार गिरती अर्थव्यवस्था, लचर विदेश और रक्षा नीति, बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या पर बात करने की है, वही राजनीतिक दलों ने अभी से जात, धर्म और क्षेत्र की राजनीति के नाम पर राजनीतिक मर्यादा को बिल्कुल ध्वस्त कर दिया है. सरदार पटेल को अपना बताने की जो होड़ लोगों चला राखी है वह बहुत हास्यास्पद है. इनका नजरिया साफ़ है. लोग जितने दिनों तक बेवकूफ रहेंगे इनकी ये देश के मूल्यों से समझौता करने वाली राजनीति करते रहेंगे. लेकिन इनकी इस प्रकार की राजनीति ने लोगों के मन में लोकतंत्र के प्रति गहरा अविश्वास और क्षोभ को जनम दे दिया है.
अंकित श्रीवास्तव
(लेखक आई आई एम् सी के छात्र हैं )
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