भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने मंगलवार को कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को 'पूर्ण संप्रदायवाद' कहा था। हैदराबाद में उपद्रव पर काबू पाने के लिए पटेल ने जब वहां सेना को भेजे जाने की मांग की थी तब नेहरू ने यह टिप्पणी की थी। अपने ब्लॉग पर ताजा पोस्ट में आडवाणी ने एम.के.के. नायर की किताब 'दी स्टोरी ऑफ इरा टोल्ड विदाउट इल विल' के अनुवाद के असंपादित अंश का उल्लेख किया है और कहा है कि हैदराबाद के मुद्दे पर मंत्रिमंडल की बैठक में नेहरू और पटेल के बीच तीखी नोकझोंक हुई थी। इसके बाद 1948 में वहां 'पुलिस कार्रवाई' की गई।
आडवाणी ने किताब का हवला देते हुए कहा है कि 30 अप्रैल 1948 को भारतीय सेना हैदराबाद से पूरी तरह हटा ली गई और रजाकार (निजी सेना) अपने को पूरे राज्य में आजाद मानने लगे थे। किताब में कहा गया है कि तत्कालीन गवर्नर जनरल सी. राजागोपालचारी और पटेल का मानना था कि हैदराबाद के निजाम की स्वेच्छाचारिता का अंत करने के लिए सेना को भेजा जाना चाहिए। इसमें कहा गया है कि निजाम ने अपना एक दूत पाकिस्तान भेजा और लंदन में जमा अपनी सरकार का बहुत सा धन पाकिस्तान के खाते में अंतरित कर दिया।
किताब में कहा गया है कि मंत्रिमंडल की बैठक में पटेल ने हैदराबाद में आतंक का राज खत्म करने के लिए सेना भेजे जाने की मांग की थी। किताब के हवाले से आडवाणी ने लिखा है, "आम तौर पर शांतिपूर्ण तरीके से बात करने वाले नेहरू अपना आपा खो बैठे और कहा, "आप पूरी तरह से सांप्रदायिक हैं। मैं आपकी सिफारिश को कतई मंजूर नहीं करूंगा। पटेल ने कोई उत्तर नहीं दिया, लेकिन अपने कागजात के साथ कमरे से उठकर चले गए।" उल्लेखनीय है कि भाजपा फिलहाल खुद को मजबूत प्रशासक के रूप में पटेल की विरासत का उत्तराधिकारी दिखाने के प्रयास में जुटी हुई है।
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