यह कैसी फिल्म है, इसके हीरो के दाढ़ी -मूंछे हैं, कोई नई- अंजान नायिका और भारी -भरकम आवाज वाली अपिरिचत गायिका...। 1983 की सर्दियों में सुभाष घई की फिल्म हीरो का गाना गली -गली में गूंजता था। तू मेरा जानू है , तू मेरा दिलबर है.... , बड़ी लंबी जुदाई... चार दिनों का ... चार दिनों का ओ रब्बा .... जैसे गाने हर तरफ छाए थे। लोग फिल्म का नाम जानने को उत्सुक रहते थे। तब जमाना लाउडस्पीकर व बड़े - बड़े रिकार्डों का था। जैसे ही लोगों की निगाह फिल्म होरी के रिकार्ड कवर पर जाती, लोग चौंक कर कुछ इसी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त करते थे। क्योंकि उस दौर में लोग दाढ़ी -मूंछ वाले रफ - टफ होरी की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। हीरो मतलब चिकना - चुपड़ा - क्लीन सेव। हीरोइन मीनाक्षी शेषाद्री जिससे लोग पूरी तरह से अंजान थे।
सबसे बड़ी बात थी, इस फिल्म के चर्चित गीत - बड़ी लंबी जुदाई, लंबी जुदाई ... की गायिका रेशमा का परिचय। तब हिंदी फिल्मों में नए प्रयोग कम ही होते थे। फिल्म के लीड रोल के साथ गीत -संगीत में नए चेहरों को मौका देने का मतलब भारी जोखिम था। सुरीली व मधुर आवाज की जगह भारी - भरकम आवाज से गाए गीत की लोकप्रियता हासिल होने की उम्मीद भी कम ही थी। बहरहाल फिल्म हीरो में रेशमा की गीत सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ। लोगों को जब पता चला कि इस गाने की गायिका कोई पाकिस्तानी है, तो लोग चौंक उठे। क्योंकि उस दौर के लिए यह भी बिल्कुल नया ट्रेंड था, कि किसी भारतीय हिंदी फिल्म का गाना कोई पाकिस्तानी या विदेशी कलाकार गाए। बहरहाल गाने की तरह ही फिल्म होरी भी जबरदस्त हिट रही। इसके जरिए हिंदी सिने जगत को जैकी श्राफ और मीनाक्षी शेषाद्री के रूप में दो नए नायक -नायिका मिले। और रेशमा के तौर पर एक नई गायिका भी। जो पाकिस्तान की होते हुए भी हिदी फिल्म प्रेमियों के लिए अपने बीच की सी थी।
फिल्म हीरो में सबसे ज्यादा प्रभाव रेशमा के बैंक ग्राउंड में बजने वाले गीत - बड़ी लंबी जुदाई ने ही छोड़ा था। एक तरह से यह गीत भारतीय समाज में जुदाई या यों कहें विरह का प्रतीक बन गया। हीरो के बाद दमादम मस्त कलंदर ... जैसे गाने की लोकप्रियता ने भी लोगों को चौंकाया कि आखिर इसकी गायिका कौन है। रेशमा का नाम उभरने पर लोगों को आश्चर्य होता कि कोई विदेशी राजस्थानी लोकगीत का उच्चारण इतने अच्छे तरीके से कर सकती है। तभी लोगों को पता चला कि रेशमा वास्तव में मूल रूप से राजस्थानी पृष्ठभूमि की ही है। देश विभाजन के बाद रेशमा का परिवार पाकिस्तान में बस गया। रेशमा का जीवन वृत्तांत इस बात का उदाहरण है कि कला व संगीत को सीमा में बांध कर नहीं रखा जा सकता।
तारकेश कुमार ओझा,
खड़गपुर ( प शिचम बंगाल)
संपर्कः 09434453934
लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें