नोबेल पुरस्कार विजेता अमृत्य सेन ने कहा है कि 2002 में गुजरात में हुए दंगों की तुलना 1984 में दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों से नहीं की जा सकती है। दरअसल इंफोसिस प्रमुख एन आर नारायणमूर्ति ने कहा था कि गुजरात में हुए दंगे नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के मार्ग के बीच नहीं आने चाहिए। सेन ने नारायणमूर्ति के इस विचार को खारिज करते हुए यह बयान दिया।
सेन ने हालांकि इस तथ्य को ‘‘अत्यंत शर्मनाक’’ बताया कि 1984 के दंगों के लिए जिम्मेदार लोगों को न्याय के कटघरे में नहीं लाया गया लेकिन उन्होंने सिख विरोधी दंगों और गुजरात में हुए दंगों में अंतर बताया। सेन ने तर्क दिया कि चुनावों में लड़ रहे मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और राहुल गांधी समेत कांग्रेस नेता सिख विरोधी दंगों के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। किसी ने उन पर इसका आरोप नहीं लगाया जबकि गुजरात में जब दंगे हुए तो उस समय नरेंद्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे।
उन्होंने एक निजी समाचार चैनल को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि सिख विरोधी दंगे कांग्रेस के सिद्धांत के अनुरूप नहीं हैं। सेन ने कहा कि गुजरात में मुसलमानों के साथ किए जाने वाले व्यवहार ने यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या उनके साथ दूसरे दर्जे के नागरिकों जैसा बर्ताव किया जाता है। उन्होंने कहा, ‘‘ यह समस्या लगातार बनी हुई है।’’ उन्होंने साथ ही कहा कि नारायणमूर्ति उनके बहुत अच्छे दोस्त हैं लेकिन वह इस मामले में उनसे सहमत नहीं हैं। यह पूछे जाने पर कि हाल में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम मोदी की लहर दिखाते हैं या ये परिणाम कांग्रेस के खिलाफ लहर का नतीजा हैं, सेन ने कहा, ‘‘ मुझे लगता है कि शायद देश में कांग्रेस विरोधी लहर है और ऐसा इसलिए है क्योंकि शायद पार्टी थकी हुई है।’’
सेन ने कहा, ‘‘ ऐसा शायद इसलिए हैं क्योंकि मोदी के बारे में एक बड़ी बात यह है कि कांग्रेस में जब नेतृत्व की समस्या का समाधान नहीं होता है तो किसी मजबूत नेता को इसका लाभ होता है।’’यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें लगता है कि कांग्रेस को राहुल गांधी को औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर देना चाहिए, सेन ने कहा, ‘‘ उनकी अपनी कोई रणनीति होगी। चुनाव जीतने का वादा करके चुनाव नहीं जीता जाता। मुझे नहीं पता कि चुनाव जीतने के लिए इस समय कांग्रेस की रणनीति क्या है।’’
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