भारत ने आज स्वदेश में विकसित, 350 किमी की मारक क्षमता वाली परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम पृथ्वी द्वितीय मिसाइल का ओडिशा के चांदीपुर स्थित एक परीक्षण रेंज से सफल प्रायोगिक परीक्षण किया। रक्षा बल द्वारा समय समय पर किए जाने वाले प्रायोगिक परीक्षणों के तहत आज पृथ्वी-द्वितीय को दस बज कर करीब पांच मिनट पर यहां से लगभग 15 किमी दूर स्थित एकीकृत परीक्षण रेंज (आईटीआर) के परिसर तीन से दागा गया। इससे पहले पृथ्वी द्वितीय को एक सचल प्रक्षेपक से यहां लाया गया था। इस अत्याधुनिक मिसाइल के प्रक्षेपण को पूरी तरह सफल बताते हुए आईटीआर के निदेशक एम वी के वी प्रसाद ने कहा कि परीक्षण के दौरान सभी तय मानकों को पूरा किया गया।
सूत्रों ने बताया कि इस प्रक्षेपास्त्र को उत्पादन भंडार से चुना गया और विशेष रूप से गठित रणनीतिक बल कमान (एसएफसी) ने इसके प्रक्षेपण की कार्रवाई को अंजाम दिया। पूरी प्रक्रिया पर प्रशिक्षण अभ्यास के तौर पर रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिकों ने नजर रखी। उन्होंने बताया कि डीआरडीओ के रडारों, इलेक्ट्रोऑप्टिकल ट्रैकिंग प्रणालियों और ओडिशा के तट पर स्थित टेलीमेट्री स्टेशनों की मदद से इस मिसाइल के पथ पर नजर रखी गई।
सूत्रों ने बताया कि बंगाल की खाड़ी में इस प्रक्षेपास्त्र के लक्ष्य पर निगरानी के लिए समीप ही एक पोत पर भी दल मौजूद थे। एक रक्षा सूत्र ने बताया कि वर्ष 2003 में भारत के रणनीतिक बल कमान में शामिल किया गया पृथ्वी देश के प्रतिष्ठित आईजीएमडीपी (एकीकृत निर्देशित प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम) के तहत डीआरडीओ द्वारा विकसित किया गया पहला प्रक्षेपास्त्र है और अब इसकी प्रौद्योगिकी साबित भी हो गई है।
उन्होंने बताया पृथ्वी द्वितीय का प्रक्षेपण एसएफसी के नियमित प्रशिक्षण अभ्यास का हिस्सा था, जो डीआरडीओ के वैज्ञानिकों की निगरानी में हुआ।
अधिकारी ने बताया कि ऐसे प्रशिक्षण किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने की भारत की परिचालन संबंधी तैयारी का स्पष्ट संकेत देते हैं। साथ ही ये परीक्षण भारत के सामरिक शस्त्रागार के इस प्रतिरोधक अस्त्र की विश्वसनीयता भी स्थापित करते हैं। पृथ्वी अपने साथ 500 किग्रा से 1,000 किग्रा तक आयुध ले जाने में सक्षम है। इसमें तरल प्रणोदन वाले दो इंजन हैं और अत्याधुनिक जड़त्वीय दिशानिर्देश प्रणाली (एडवान्स्ड इनर्शियल गाइडेन्स सिस्टम) का उपयोग किया गया है। इस प्रक्षेपास्त्र का आखिरी सफल प्रायोगिक परीक्षण इसी जगह से सात अक्टूबर को किया गया था।
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