कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को झटका देते हुए उच्चतम न्यायालय ने 1984 के सिख विरोधी दंगा मामले में उनके खिलाफ तय किए गए आरोप रदद करने का उनका आग्रह खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति ए के पटनायक की अगुवाई वाली एक पीठ ने पूर्व सांसद को राहत देने से इंकार कर दिया। सज्जन कुमार ने निचली अदालत और दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेशों को चुनौती देते हुए उनके खिलाफ तय किए गए आरोप रद्द करने का आग्रह किया था, जिसे पीठ ने ठुकरा दिया।
पीठ ने मामले में अन्य आरोपियों वेद प्रकाश पियाल और ब्रहमानंद गुप्ता का आग्रह भी खारिज कर दिया। निचली अदालत ने जुलाई 2010 में सज्जन कुमार, ब्रहमानंद गुप्ता, पेरू, खुशाल सिंह और वेद प्रकाश पियाल के खिलाफ हत्या और दंगा फैलाने सहित विभिन्न आरोप तय किए थे। ये आरोप 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद फैले दंगों के दौरान सुल्तानपुरी इलाके में एक व्यक्ति की हत्या के सिलसिले में थे।
आरोपी खुशाल सिंह की मामले के लंबित रहने के दौरान मृत्यु हो गई। कुमार का आग्रह खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश की पुष्टि की और कहा कि आरोप तब तय किए जा सकते हैं जब संदेह के चलते अदालत को ऐसा लगे कि यह समझने के लिए पर्याप्त आधार हैं कि आरोपी ने अपराध किया है। उच्च न्यायालय ने भी पियाल और गुप्ता का उनके खिलाफ आरोप तय किए जाने को चुनौती देने का आग्रह खारिज कर दिया था। बहरहाल, उच्च न्यायालय ने सज्जन कुमार, पियाल और गुप्ता के खिलाफ साजिश रचने के अतिरिक्त आरोप तय करने से इंकार करते हुए कहा था कि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिससे पता चले कि उनके विचार मिलते जुलते थे।
पूर्व में सीबीआई ने निचली अदालत में कहा था कि आरोपपत्र हालांकि छह व्यक्तियों को मार डालने की घटना के संबंध में है। लेकिन वह आरोप को केवल सुरजीत सिंह की हत्या तक ही सीमित रखे हुए है, न कि अन्य मतृकों के बारे में, जिनके मामले की सुनवाई हो चुकी है। निचली अदालत ने भी मामले में आरोपियों के खिलाफ दो समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने के अपराध में आरोप तय किए थे। वर्ष 1984 में फैली हिंसा के कारणों की जांच कर रहे न्यायमूर्ति जी टी नानावती आयोग की सिफारिश पर वर्ष 2005 में दर्ज किए गए दंगा मामलों में सीबीआई ने सज्जन कुमार और अन्य के खिलाफ जनवरी 2010 में दो आरोपपत्र दाखिल किए थे।
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