केंद्र सरकार ने उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति और तबादले के लिए प्रस्तावित न्यायिक नियुक्ति आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का गुरुवार को फैसला किया ताकि पैनल के स्वरूप से सामान्य कानून के जरिए छेड़छाड़ न की जा सके। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने इस आशय का फैसला किया। न्याय पालिका और विपक्षी भाजपा की मांग को मानते हुए कानून मंत्रालय ने स्थाई समिति की उस सिफारिश को मान लिया कि भविष्य में किसी बदलाव से बचाव के लिहाज से प्रस्तावित आयोग के स्वरूप और कामकाज का संविधान में उल्लेख होना चाहिए।
प्रस्ताव के मुताबिक संविधान का नया अनुच्छेद 124ए आयोग के स्वरूप और अनुच्छेद 124बी आयोग के कामकाज की व्याख्या करेगा। इस समय प्रस्तावित आयोग के स्वरूप की व्याख्या न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2013 में है, जिसे मानसून सत्र के दौरान पथक संविधान संशोधन विधेयक के साथ राज्यसभा में पेश किया गया था।
संविधान संशोधन विधेयक के मुताबिक एक आयोग होगा लेकिन विधेयक यह नहीं कहता कि इसका अध्यक्ष भारत का प्रधान न्यायाधीश होगा। विधेयक में आयोग के स्वरूप का भी उल्लेख नहीं है। राज्यसभा ने संविधान संशोधन विधेयक को तो पारित कर दिया, लेकिन मुख्य विधेयक न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2013 को स्थाई समिति के विचारार्थ भेज दिया।
न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति और तबादले की सिफारिश करने के लिए प्रस्तावित आयोग के गठन की व्याख्या करता है। कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि हमने विधेयक को सबके अनुकूल बनाने के लिए समझौते किये। हमने सबकी मांगों को पूरा किया है। अब सरकारी संशोधनों के साथ विधेयक को लोकसभा में पेश किया जाएगा।
कुछ न्यायविदों और भाजपा ने आशंका व्यक्त की थी कि कोई भी भावी सरकार आयोग के स्वरूप के साथ छेड़छाड़ कर सकती है, जिससे संतुलन बिगड़ सकता है। उन्होंने कहा कि संविधान संशोधन करना चूंकि आसान लक्ष्य नहीं है इसलिए भारत के प्रधान न्यायाधीश का आयोग के अध्यक्ष के रूप में उल्लेख संविधान संशोधन विधेयक में होना चाहिए।
एटार्नी जनरल जी ई वाहनवती ने संसदीय समिति के समक्ष अपनी बात रखते हुए दावा किया था कि संसद अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग करते हुए आयोग के स्वरूप और कामकाज को संविधान के नये अनुच्छेद में रख सकती है ताकि सरकार के लिए किसी सामान्य कानून के जरिए आयोग के स्वरूप से छेड़छाड़ करना मुश्किल हो।
भारत के प्रधान न्यायाधीश के अलावा आयोग में उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीश, कानून मंत्री और दो प्रख्यात नागरिक होंगे। प्रख्यात नागरिकों का चयन एक समिति करेगी, जिसमें प्रधानमंत्री, भारत के प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष के नेता शामिल होंगे। कानून मंत्रालय में सचिव (न्याय) आयोग के संयोजक होंगे। कानून मंत्रालय ने संसदीय समिति की उस सिफारिश को स्वीकार नहीं किया है, जिसमें कहा गया है कि 24 उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति और तबादले के लिए राज्य स्तर का पृथक न्यायिक नियुक्ति आयोग बने।
संसदीय समिति ने यह सिफारिश भी की थी कि आयोग में सात सदस्य होने चाहिए और इसमें दो की बजाय तीन प्रख्यात नागरिक शामिल किये जाने चाहिए। सूत्रों ने कहा कि सदस्यों की संख्या विषम होने से किसी फैसले में टाई (पक्ष और विपक्ष में बराबरी की संख्या) की स्थिति होने पर संभावित गतिरोध से बचा जा सकेगा।
समिति ने कहा था कि तीन प्रख्यात लोगों में से एक सदस्य या तो महिला हो या फिर अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग का (रोटेशन पर) हो। मंत्रालय ने आयोग के सदस्यों की संख्या तय करने का फैसला चयन समिति की बुद्धिमत्ता पर छोड़ा है। विधेयक मौजूदा कालेजियम प्रणाली को समाप्त करने का प्रस्ताव करता है, जिसके तहत फिलहाल न्यायाधीशों की नियुक्ति होती है।
न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक के संशोधनों का प्रस्ताव कैबिनेट द्वारा मंजूर किये जाने पर सरकार को उम्मीद है कि विधेयक संसद के आगामी सत्र में पारित हो जाएगा।
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