पिछले दो दशक से उन लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जो सम्मान पाने और देने के जबर्दस्त भूखे हैं। देश का कोई कोना ऎसा नहीं बचा है जहाँ सम्मान, अभिनंदन और पुरस्कारों ने मुग्धकारी माहौल स्थापित नहीं किया हो। शालों, साफों, साड़ियों, उपरणों, पुष्पमालाओं, पगड़ियों, प्रतीक चिह्नों से लेकर जाने क्या-क्या ओढ़ाया और दिया जा रहा है सम्मानों और अभिनंदनों के नाम पर।
सम्मान और अभिनंदन का अर्थ अब सिर्फ दूसरों को खुश करने के लिए ही रह गया है। कुछेक लोगों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश सम्मान और अभिनंदन कैसे होते रहे हैं उनके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। सम्मान कौन कर सकता है, अभिनंदन कौन कर सकता है, किसे है हमारे मूल्यांकन का अधिकार। और कौन -कौन हो सकता है दूसरों को अभिनंदन और सम्मान करने का पात्र। इससे किसी को कोई सरोकार नहीं है। सम्मान-अभिनंदन पाने वाले भी खुश, और देने वालों से लेकर देखने-पढ़ने वालों तक सारे खुश।
एक जमाना था जब आदमी को सम्मान देने, अभिनंदन करने से पहले सौ बार सोचा जाता था और जाने कितनी कसौटियों पर परखा जाने के बाद सम्मानित किया जाता था। उस जमाने में सम्मान और अभिनंदन का मोल था। आज सबसे ज्यादा मिट्टी पलीत अगर किसी की हुई है तो वह सम्मानों और अभिनंदनों की ही। कुछ पुरस्कारों, अलंकरणों, सम्मान और अभिनंदनों को छोड़ दिया जाए तो आजकल यह परंपरा चल पड़ी है। हालात ये हो गए हैं कि हर कोई सम्मान पाना चाहता है। कोई सीधे रास्ते से पाने के लिए उतावले हैं तो कोई बेकडेार से छीन लिए जाने के लिए आतुर हैं। कहीं औपचारिकताएं निभायी जा रही हैं तो कहीं दबावों में रस्म अदायगी का हिस्सा हो चला है।
हालात कमाबेश सब मामलों में एक जैसे ही हैं। सम्मान और अभिनंदन का महत्त्व तभी है जब देने वाला और पाने वाला, दोनों पात्रता रखते हों। किसी एक के भी अपात्र होने की स्थिति में वह सम्मान नहीं समझौता ही कहलाएगा। पात्रता का निर्धारण करना हाल के कुछ वर्षों में टेढ़ा हो गया है। हर कोई अपने आपको सुपर पात्र मानता है।
किसी को भी सम्मान देने और अभिनंदन करने वाला वही व्यक्ति हो सकता है जो सम्मान-अभिनंदन पाने वाले से ज्ञान, अनुभवों में बड़ा हो। जहाँ सम्मान की बात आती है वहां यह देखना जरूरी है कि जिस कार्य या सेवा के लिए सम्मान दिया जा रहा है अथवा अभिनंदन किया जा रहा है, उसे क्षेत्र विशेष का विशेषज्ञ या अनुभवी ही यह सम्मान दे सकता है। सम्मान का महत्त्व तभी है जब पूरी तरह मूल्यांकन की कसौटी पर खरा उतरने के बाद मिले। इसी प्रकार सम्मान देने वाला व्यक्ति अपने क्षेत्र का सर्वोत्तम विद्वान, हुनरमंद और अनुभवी, आयु में बड़ा हो। आयु के मुकाबले क्षेत्र विशेष में ज्यादा मेधावी व्यक्ति भी सम्मान देने का पात्र होता है लेकिन होना चाहिए संबधित विषय का ज्ञाता।
आजकल सभी जगह सम्मान और अभिनंदन के नाम पर एक साथ कितने सारे लोगों को उपकृत कर दिया जा रहा है। सम्मान और अभिनंदन पाने वाले और देने वाले, सभी फ्रीस्टाईल हो चुके हैं। जिसकी जब इच्छा होती है, मौका पाकर सम्मान पा लेता है। जो किसी को उपकृत करना चाहता है, किसी न किसी भावी स्वार्थ के लिए जिस किसी को खुश करने की इच्छा हो, सम्मान और अभिनंदन का रामबाण नुस्खा अपना लेता है। न सम्मान और अभिनंदन पाने वालों में पात्रता देखी जा रही है, न देने वालों का कोई खास वजूद है।
अब लोगों को खुश करने और खुश रखने का एकमात्र ईलाज हो गया है सम्मान और अभिनंदन। कइयों के लिए तो सम्मान और अभिनंदन पाना ही जिन्दगी का लक्ष्य बन चुका है। ये लोग माँग-माँग कर सम्मान पाने के आदी हो चुके हैं। इस मनोवृत्ति के लोगों की बढ़ती जा रही भीड़ को देखते हुए अब किसी न किसी तरह सम्मान देकर खुश करने का दौर परवान पर है। अब तो भीड़ जमा करने का मंत्र ही हो गया है सम्मान-अभिनंदन। लोग इसी सुकून को पाने के लिए भीड़ का हिस्सा भी बनने लगे हैं।
सही मायने में उसी सम्मान और अभिनंदन का अर्थ है जो योग्य हाथों से लिया जाए। उसी सम्मान-अभिनंदन का महत्त्व है जो योग्य लोगों को दिया जाए। वरना ये सम्मान और अभिनंदन ठीक वैसे ही हैं जैसे किसी शादी-ब्याह के बाद लोगों को उपहार में बाँटें जाते हैं।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com
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