असली इंसान वही, जिससे मिलने पर खुशी हो - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 8 दिसंबर 2013

असली इंसान वही, जिससे मिलने पर खुशी हो

वैसे आजकल आम धारणा हो गई है कि इंसान को इंसान से मिलने पर भी आत्मीय खुशी नहीं मिलती, जब तक कि उसके संबंधों में लोभ-लालच, भीख, स्वार्थ या कोई काम नहीं हों। काम पड़ने पर तो कोई किसी को कुछ भी दर्जा दे सकता है। मगर आमतौर पर अब वैसे लोग दिखने में कम ही आते हैं जिनका सान्निध्य पाना सुकून भरा हुआ करता था, इनके पास जाने पर लगता था कि किसी अनिर्वचनीय आनंद की प्राप्ति हो रही है अथवा मन प्रसन्न हो उठता था। कुछ दशक पहले की ही बात है। हर क्षेत्र में ऎसे ज्ञानी और अनुभवी लोग हुआ करते थे जिनके पास जाने में दिली खुशी का अनुभव होता था।  उस जमाने के अनपढ़ किन्तु गुणी लोगों के आत्मीय व्यवहार का भी कोई जवाब नहीं था। हर किसी को उनके पास जाने पर अनुभव होता था कि वे उनके अपने ही हैं। फिर जाने मनु प्रजाति को ऎसा क्या ग्रहण लग गया कि आजकल बड़े-बड़े लोगों के पास जाना, उनके साथ दो पल गुजारना भी घृणास्पद लगता है और जी चाहता है कि कब दूर भाग जाएं।

लोगों की रोजमर्रा की जिन्दगी से जुड़े जरूरी काम न हों तो लोग इनके पास जाने का नाम तक न लें मगर हालात ये हो गए हैं कि कई घृणित और मनहूस लोगों के पास मजबूरी के मारे जाना पड़ता है। आजकल लोग दूसरे लोगों से कतराने लगे हैं। इसका मूल कारण यह है कि हर आदमी दूसरे को अपना शिकार या मुर्गा मानकर चलने लगा है। इसमें स्वार्थ प्रधान हो गए हैं तथा संबंध गौण। न कुटुम्ब के संबंध रहे हैं न परिवार या समाज, अथवा क्षेत्र के, सब जगह लगता है कि जैसे पैसों के संबंध हावी हैं और इनके आगे सारे मानवीय मूल्यों और आदर्शों भरे संबंध पूरी तरह गौण होकर नाकारा स्थिति में आ पड़े हैं। आजकल बड़े-बड़े और लोकप्रिय कहे जाने वाले लोगों और साहबों की हालत ये है कि इन्हें दिल से कोई नहीं चाहता लेकिन विवशता के कारण मेहमानों की तरह नवाजने की मजबूरियां सामने हैं। यह जमाना दिखावे, दोहरे-तिहरे चरित्र और आडम्बरों-पाखण्डों का है जिसमें दिल और दिमाग दोनों की धाराएं एक ही रास्ते चलती रहें, यह कतई जरूरी नहीं है बल्कि जरूरी यह हो चला है कि चाहे जिस तरह का भी अभिनय करना पड़े, एक-दूसरे को भरमाते हुए आगे बढ़ते रहो।

दोनों ही पक्षों को पता है कि ये कितने नंगे, भूखे और आतुर हैं, मगर जहाँ बात स्वार्थों और अभिनय की आती है वहाँ कैसी लाज-शरम। दूर की बात क्यों करें, हमारे अपने इलाके में, अपने आस-पास भी ऎसे खूब सारे लोग हैं जिनके बारे में कहा-सुना जाता है कि वे बड़े ही निकम्मे, नुगरे नालायक, अक्खड़ और घृणित आदमी हैं जो सीधे मुँह किसी से बात नहीं करते, अहंकार इतना कि हम चौड़े और बाजार सँकरा, उनके पास जाना मतलब अपना टाईम और मूड़ दोनों बरबाद करना ही है। इस किस्म के लोग इन दिनों हर गलियारे में फब रहे हैं जिनके पास जाने पर खुशी मिलने की बात तो दूर रही, घृणा और अप्रसन्नता ही पल्ले पड़ती है। ऎसे खूब सारे बड़े लोगों की अहंकारी और घृणित मानसिकता के मारे नीचे के लोग तथा सारे संपर्कित हैरान-परेशान होकर तनावों में जीते हैं लेकिन आसुरी वृत्तियों से भरपूर तथा जाने किस जन्म के भाग्य से बड़े बन बैठे इन लोगों से हर कोई त्रस्त रहता है और जी भर कर बददुआएँ देता रहता है।

इन तमाम किस्मों के वीभत्स रस वाले सदा शोकग्रस्त और मनहूस रहने वाले लोगों से दूरी बनाए रखने में ही भला है क्योंकि इनके संपर्क में आते ही अपना आभामण्डल भी किसी न किसी रूप में प्रदूषित होने लगता है। दुर्जनों से दूरी भली। तभी कई वाहनों के पीछे लिखा होता है - कीप डिस्टेंस .....।






---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

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