प्रधानमंत्री को नरेंद्र मोदी की चिट्ठी और विपक्ष के तमाम विरोध को देखते हुए केंद्र सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा विरोधी बिल के ड्राफ्ट में बदलाव का फैसला किया है। नए बदलाव के मुताबिक हिंसा के बाद अब केंद्र राज्यों की सिफारिश के बाद ही कोई कार्रवाई करेगा। इससे पहले के ड्राफ्ट में हिंसा पर केंद्र और राज्य दोनों की जिम्मेदारी तय की गई थी।
बदलाव के बाद ड्राफ्ट में अब हिंसा के बाद जिम्मेदारी बहुसंख्यक समुदाय की नहीं मानी जानी चाहिए। पहले के ड्राफ्ट में जिम्मेदारी बहुसंख्यक समुदाय की तय की गई थी। बदलाव के बाद बिल में प्रावधान किया गया है कि हिंसा रोकने में नाकाम रहने पर स्थानीय अफसर की जिम्मेदारी मानी जाएगी। जबकि पहले हिंसा रोकने में स्थानीय अफसर की कोई जिम्मेदारी नहीं तय की गई थी।
इसके पहले मोदी ने पीएम को लिखा कि सांप्रदायिक हिंसा बिल से समाज बंटेगा। मोदी ने संसद में सांप्रदायिक हिंसा विरोधी बिल लाए जाने के समय पर भी सवाल उठाया। उन्होंने बिल के मसौदे पर सवाल उठाते हुए कहा है कि यह संघीय ढांचे के खिलाफ है। मोदी ने लिखा कि ये बिल असल मकसद के लिए नहीं बल्कि वोटबैंक की राजनीति का हिस्सा है।
मोदी ने पीएम को लिखा कि केंद्र ऐसे कानून बनाने में व्यस्त है जो राज्य सरकारों का मामला है। अगर ये कानून लागू हुआ तो समाज बंट जाएगा और हिंसा बढ़ जाएगी। मोदी पीएम से निवेदन किया कि इस बिल को पेश करने से पहले सभी राज्यों और संबंधित लोगों से चर्चा की जाए। मोदी के मुताबिक सांप्रदायिक हिंसा बिल गलत इरादों वाला, कमजोर मसौदे वाला और मुसीबत बढ़ाने वाला है। वहीं पीएम ने कहा था कि बिल पर आम सहमति बनाने की कोशिश होगी। सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि बिल इसी सत्र में पेश करेंगे।
बिल को लेकर शिवसेना ने मोदी का समर्थन किया है। शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि नरेंद्र मोदी ने जो मुद्दे इस बिल पर रखे हैं, उसको शिवसेना का समर्थन है। सीपीआई ने शुरुआती बिल का समर्थन करते हुए इसे संसद में रखने की मांग की है। इससे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तमिलनाडु की सीएम जयललिता भी इस प्रस्तावित बिल का विरोध कर चुके हैं। दोनों का मानना है कि इस बिल के लागू होने से राज्य के मामलों में केंद्र का दखल बढ़ जाएगा।
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