10 दिसंबर को मानव-अधिकार-दिवस मनाया जाना क्या उचित है ????? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

10 दिसंबर को मानव-अधिकार-दिवस मनाया जाना क्या उचित है ?????

human rightsमानव अधिकार दिवस पर में कुछ लिखने का साहश करता हूँ ,कुछ आपको सोचने के लिए मजबूर भी करूंगा।  मनवा अधकार दिवस क्यों मनाया  जाता है।  मानव अधिकार दिवस के बारे में गूगल में बहुत कुछ है। विश्व के विद्वानो ने ,देश के विद्वानो ने क्या -क्या  लिखा ???? सब कुछ लिखा लेकिन इस लिखे शब्दो,विचारो को कितने लोगो ने पढ़ा कितने लोगो ने इसकी नक़ल कि लेकिन में कि बात यहाँ आती है कि मानव अधिकार दिवस पर कितने लोग अपने विचार धारा में परिवर्तन लाते है कितने लोग मानव होने का अपने आप पर गर्व करते है। हम मानव अधिकार दिवस के बारे में कुछ नक़ल करते हुए अपनी बात आप तक पहुचाने का प्रयास करेगे।

विश्व के समस्त देशों के नागरिकों को अभी पूर्ण मानव अधिकार नहीं मिला है। अफ्रीका के अनेक देशों एवं संयुक्त राज्य अमरीका के दक्षिणी राज्यों में अभी भी किसी-न-किसी रूप में दासप्रथा, रंगभेद तथा बेगारी मौजूद हैं। भारत में हरिजनों तथा अनेक परिगणित जातियों को व्यवहार में समता और संपत्ति के अधिकार नहीं मिल सके हैं। दो तिहाई मानव जाति का अभी भी आर्थिक शोषण होता चला आ रहा है। उपनिवेशवाद के कारण एशिया, अफ्रीका तथा लैटिन अमरीका के अनेक अविकसित राष्ट्रों का बड़े साम्राज्यवादी राष्ट्रों द्वारा आर्थिक शोषण हो रहा है। इसी दिशा में मुक्ति तथा राष्ट्रों और नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ सचेष्ट हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ की ओर से प्रति वर्ष 10 दिसंबर को मानव-अधिकार-दिवस मनाया जाता है। सन् 1945 में अपनी स्थापना के समय से ही संयुक्त राष्ट्रसंघ ने मानव अधिकारों की अभिवृद्धि एवं संरक्षण के लिए प्रयास आरंभ किया है। इस निमित्त मानव-अधिकार-आयोग ने अधिकारों की एक विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की जिस संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसंबर, 1948 को स्वीकार किया। तीस अध्यायों के मानव अधिकार घोषणापत्र में उन अधिकारों का उल्लेख है जिन्हें विश्वभर के स्त्री-पुरुष बिना भेदभाव के पाने के अधिकारी हैं। इन अधिकारों में व्यक्ति के जीवन, दैहिक स्वतंत्रता, सुरक्षा एवं स्वाधीनता, दासता से मुक्ति, स्वैच्छिक गिरफ्तारी एवं नजरबंद से मुक्ति, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायाधिकरण के सामने सुनवाई का अधिकार, अपराध प्रमाणित न होने तक निरपराध माने जाने का अधिकार, आवागमन एवं आवास की स्वतंत्रता, किसी देश की राष्ट्रीयता प्राप्त करने का अधिकार, विवाह करने का और परिवार बसाने का अधिकार, संपत्ति रखने का अधिकार, विचार, धर्म, उपासना की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण सभा करने की स्वतंत्रता, मतदान करने और सरकार में शामिल होने का अधिकार, सामाजिक स्वतंत्रता का अधिकार, काम पाने का अधिकार, समुचित जीवनस्तर का अधिकार, शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार, समाज के सांस्कृतिक जीवन में सहभागी बनने का अधिकार इत्यादि शामिल हैं। वैकल्पिक रूप से संयुक्त राष्ट्रसंघ अनेक संगठनों एवं संस्थाओं का निर्माण कर धरती पर इन अधिकारों को चरितार्थ करने के लिए प्रयत्नशील है।

अब यदि कहा जाये कि आप ही तय करे के मानव अधिकारो कि सौ में कितने लोग मानव सेवा के लिए तैयार है।  कितने लोग मानवता कि रक्षा करते है।  यदि मानव में मानवता होती तो आज हमें मानव अधिकार दिवस मनाने कि क्या आवश्यक्ता न होती।  लेकिन बतर्मान समय में हर डग डग पर मानवता का हनन हो रहा है।   यदि हैम अपने घर -परिवार में अपने बच्चो ,बीवी के अधिकारो कि रक्षा -सुरक्षा नहीं कर प् रहे तो अन्य या दूसरे मानव कि क्या रक्षा करेगे।  लेकिन जनता में दिखावा। समाचार पत्रो कि सुर्खियो में, इंटरनेट शोसल मिडिया में, चैनलो पर मानव अधिकार दिवस पर विचारधारा प्रसारित होगी ,नेताओ ,सामाजिक कार्य कर्ता अपने विचार देगे, मुझ जैसे बुद्धहीन अपने विचार लिखकर आपको पढ़ने के लिए मजबूर करेगे ???? आप यदि इस विचारो को पढ़ते है और आप चिंतन करते है तो मेरा लिखना ठीक है अन्यथा पढ़ कर ,विचारो को हवा में फैला देना मन आत्मा को कष्ट देगा ,संविधान या क़ानून बनाने बालो के साथ अन्याय होगा।  यदि हैम प्यासे को पानी पिलाने कि क्षमता रखते है, निर्धन ,गरीब कि मदद करते है , पीढित कि मदद करते है तो हमारा मानव अधिकार दिवस मनाना उचित है।  यदि हैम अपने माता -पिता कि मदद न करे और समाज सेवा कि बात करे तो यही मानव अधिकार का उलघन है समाज विरोधी , क़ानून विरोधी व धर्म विरोधी मानव है।  घर परिवार समाज व देश सेवा ही मानव अधिकार दिवस है।  इसको साल में एक दिन नहीं प्रति दिन मानव अधिकार दिवस है।    जरूरतमंद पीड़ितों को सहायता पहुचाने की दृष्टि से मध्यप्रदेश में सितम्बर, १९९५ में मानव अधिकार आयोग का गठन किया गया। मध्यप्रदेश, मानव अधिकार आयोग का गठन करने वाले अग्रणी राज्यों मे से एक है। मध्यप्रदेश  मानव अधिकार आयोग, मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण के लिए कार्य करता है। जय हिन्द जय भारत





santosh gangele

 [ लेखक -संतोष गंगेले -अध्यक्ष गणेश शंकर विधार्थी प्रेस क्लब मध्य प्रदेश ]

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