चार राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद जहां कांग्रेस बैकफुट पर है वहीं उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ दल समाजवादी पार्टी (सपा) भी इन चुनावों से सबक लेते हुए कांग्रेस से दूरी बनाती दिख रही है। पार्टी रणनीतिकार नहीं चाहते कि बेलगाम होती महंगाई, भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों को लेकर जिस तरह से बाकी राज्यों की जनता ने कांग्रेस को नकारा, वैसा ही उत्तर प्रदेश में उसके साथ हो। यही वजह है कि केन्द्र सरकार के लिए कई बार संकटमोचक साबित हुई सपा ने लोकसभा में तेलंगाना को लेकर सरकार का रुख नहीं बदलने पर उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को अपना समर्थन देने का संकेत दिया है। पार्टी महासचिव रामगोपाल का रुख शीतकालीन सत्र के दौरान कांग्रेस पर सख्त ही बना हुआ है। सियासी गलियारों में इस बात की चर्चाएं जोरों पर हैं कि अब अगर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार किसी संकट में फंसी तो सपा उसकी बैसाखी नहीं बनेगी।
सपा के विरोधी हालांकि कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी को राज्यसभा भेजने के मामले का तर्क देकर इसे सपा का सियासी ड्रामा करार दे रहे हैं, लेकिन फिर भी जिस तरीके से पार्टी लोकसभा चुनाव को लेकर अपने प्रत्याशियों में फेरबदल कर रही है और केवल जीत को ही पैमाना मान रही है, उससे साफ हो गया है कि पार्टी मुखिया मुलायम सिंह उम्र के इस पड़ाव पर इस बार अपना सबसे बड़ा सियासी दांव चलने को बेकरार हैं। मुलायम तीसरे मोर्चे के सहारे अपने राजनीतिक नाव को किनारे लाना चाहते हैं। वह जानते हैं कि इस बार उनके पास बेहतर मौका है, जब कांग्रेस का विरोध जनता के बीच कहीं ज्यादा है और नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने वाली भाजपा से रूठे लोग उनके पक्ष में खड़े हो सकते हैं। यही वजह है कि मुलायम उत्तर प्रदेश में सिर्फ जीत को लक्ष्य कर रहे हैं और किसी भी कीमत पर जाने को तैयार हैं।
मुलायम ने इसका नमूना पार्टी की ओर से सुलतानपुर लोकसभा सीट से अतीक अहमद को प्रत्याशी बनाकर दे भी दिया है। जबकि उप्र विधानसभा चुनाव के दौरान अखिलेश ने डीपी यादव को पार्टी में केवल इसीलिए शामिल नहीं होने दिया, क्योंकि उनका अपराधिक इतिहास था और पार्टी की छवि पर इसका बुरा असर पड़ता। लेकिन 2012 की नीतियां वर्ष 2014 के करीब आते बदलती नजर आ रही हैं। यही वजह रही कि एनआरएचएम घोटाले में जेल काट रहे व जनमंच के अध्यक्ष बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या कुशवाहा को भी पार्टी ने धड़ल्ले से गाजीपुर से लोकसभा का प्रत्याशी बना दिया है। जबकि बाबू सिंह कुशवाहा के भाजपा में शामिल होने पर सपा नेता खुद भाजपा को कोसने का मौका नहीं छोड़ रहे थे।
सियासत के जानकार मुलायम को न सिर्फ लक्ष्य हासिल करने के लिए पहलवानी वाले दांवपेंच लगाने में माहिर बताते हैं, बल्कि विरोधियों को उनके ही दांव से चित्त करने में पारंगत भी कहते हैं। सपा पर छोटी पार्टियों को तोड़ने का हर सम्भव प्रयास करने और जीत के लिहाज से दागी लोगांे को भी पार्टी में शामिल कर प्रत्याशी बनाने के आरोप लग रहे हैं। विधानसभा में चार विधायकों वाली डॉ. अय्यूब के पीस पार्टी के तीन सदस्यों मलिक कमाल यूसुफ डुमरियागंज, अखिलेश सिंह रायबरेली व अनिसुर रहमान मुरादाबाद को न सिर्फ पार्टी से अलग करा दिया बल्कि विधानसभा अध्यक्ष ने अलग दल की मान्यता भी दे दी थी। अब लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी इन नेताओं की अपने क्षेत्र में ताकत का अपने पक्ष में भरपूर इस्तेमाल करेगी।
चर्चाएं इस बात की भी हैं कि अब सपा का अगर लक्ष्य कौमी एकता दल के मुख्तार अंसारी और अफजल अंसारी हैं जो पूरे सत्र आजम खां और विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय के इर्द-गिर्द ही घूमते देखे गए। सपा के सूत्र खुद इस बात से इनकार नहीं कर रहे हैं लोकसभा चुनाव आते-आते कई और प्रत्याशियों का टिकट काटा जा सकता है। जाहिर है सियासत का भविष्य जीत के आंकड़ों से तय होता है और मुलायम इस बात को अच्छी तरह जानते हैं।
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