विशेष : नामवर जी संन्यास लें.. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 9 दिसंबर 2013

विशेष : नामवर जी संन्यास लें..

दूसरी परम्परा के उद्घोषक, प्रतिगामी विचारपोषकों के विरुद्ध देश के कोने-कोने तक पहुंच प्रगतिशीलता का परचम फहराने बाला डाॅ. नामवर सिंह अब क्या ‘शव साधक’ बन गए हैं! आनंद मोहन व पप्पु यादव जो हिंदी क्षेत्र ही नहीं, संपूर्ण देश में सामाजिक सद्भाव के शत्रु, रक्तपात, अपराध और दबंगई के पर्याय माने जाते हैं को महिमामंडित करने वालों की कतार में नामवर जी का पुरोहित बन जाना, आश्चर्य से ज्यादा पीड़ादायक है।
    
जब उम्र के कारण या प्रसिद्धि के शिखर तक जा पहुंचने की वजह से अहंकार जनित संस्कार के कारण वे सही निर्णय ले पाने में असमर्थ हो गए हैं तब अच्छा हो कि वे संन्यास ले लें। नामवर बनने में उनकी अपनी योग्यता और क्षमता को नकारा नहीं जा सकता है लेकिन सच यह भी है कि कम्युनिस्ट पार्टी और प्रगतिशील लेखक संघ ने उन्हें इस लायक बनने में भरपूर सहयोग प्रदान किया। भारतीय साहित्य में ध्रुवतारा बनने की बजाय इस तरह के कारनामें से कहीं वे अनगिनत तारे में एक की संज्ञा नहीं ले लें।

इतिहास ‘सीकरी’ की ओर मुखातिब साहित्यकारों से निर्मित नहीं हुआ है। लोभ-लाभ, यश, दंभ से मुक्त चिंतकों ने ही इतिहास रचा है। क्या नामवर जी इसे, यानी अपनी ही चिंतनधारा को भूल गए या तिलांजलि दे दी है! ऐसा तो नहीं माना जा सकता है कि ‘भारत रत्न’ पाने की चाह में सचिन तेंदुलकर की तरह वह भी सर्वव्यापक बनकर उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रचारक के वेष में खरबपतियों की कतार में अपना नाम शुमार कराना चाहते हैं! यह दुःखद एवं निंदनीय है।






(राजेन्द्र राजन)
संरक्षक
विप्लवी पुस्तकालय, गोदरगावाँ
मो.- 9471456304 / 9263394316

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