केंद्र सरकार अगले आम चुनावों की प्रक्रिया शुरू होने से पहले अपने 50 लाख से अधिक कर्मचारियों के वेतन मान बढ़ाने के लिए सातवें वेतन आयोग का गठन कर सकती है. सूत्रों के मुताबिक वित्त मंत्रालय आयोग के गठन के लिए एक कैबिनेट प्रस्ताव पर काम कर रहा है, जिस पर अगले कुछ सप्ताह में विचार किया जा सकता है. माना जा रहा है कि आम चुनाव से पहले आयोग के गठन का सरकार का इरादा साफ है, क्योंकि इसने इस संबंध में अनुदानों के लिए दूसरी अनुपूरक मांग में 3.5 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है जिसे संसद के शीतकालीन सत्र में मंजूरी दी गयी है.
इस साल सितंबर की शुरुआत में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने घोषणा की थी कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आयोग के गठन को मंजूरी दे दी है. घोषणा के मुताबिक, आयोग को दो साल में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी और इसकी सिफारिशें एक जनवरी, 2016 से लागू की जायेंगी. घोषणा के बाद आयोग के गठन के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष कोई औपचारिक प्रस्ताव नहीं रखा गया है. परंपरा के मुताबिक, आयोग का गठन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज की अध्यक्षता में किया जाता है. आयोग के अन्य सदस्यों में विशेषज्ञ व अधिकारी शामिल होते हैं.
सरकार ने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (इपीएफओ) द्वारा संचालित कर्मचारी पेंशन योजना 1995 (इपीएस-95) के तहत न्यूनतम पेंशन 1,000 रुपये प्रति माह निर्धारित करने का प्रस्ताव मंजूर किया है. सरकार ने 15,000 मासिक तक के मूल वेतन पाने वाले कर्मचारियों का भी इपीएफ काटने का प्रस्ताव मंजूर किया है. अभी अधिकतम 6,500 रुपये प्रति माह तक मूल वेतन पाने वालों को ही इपीएफओ योजना का लाभ मिलता है. कहा जा रहा है कि इन दोनों निर्णयों से सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ेगा, क्योंकि सरकार को इपीएस-95 के तहत पेंशन सब्सिडी के मद में अधिक योगदान करना होगा.पेंशन योजना इपीएस-95 के लिए नियोक्ता मूल वेतन व महंगाई भत्ता समेत मूल मजदूरी का 8.33 प्रतिशत अंशदान करते हैं, जबकि केंद्र अपने बजट से मूल वेतन का 1.16 प्रतिशत अंशदान करती है. एक हजार रुपये न्यूनतम पेंशन तय करने के निर्णय से इपीएस-95 के तहत 35 लाख से अधिक पेंशन भोगी तत्काल लाभान्वित होंगे. दीर्घकाल में, वेतन सीमा बढ़ाने के निर्णय से पांच करोड़ से अधिक लोग लाभान्वित होंगे.
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